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तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे

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बेपनाह बेइंतिहा तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे
ग़रीब पर बेसबब बेशुमार ग़ुरबत का कहर कोई कैसे सहे

इन्सान को इन्सान का उठाना पड़ता है बोझ यहाँ "बशर"
बे'असर बे -ख़बर मु'आशरे को कोसे बग़ैर कोई कैसे रहे

© 'बशर' بشر.

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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