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तहरीर कहीं नज़र न आई - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

तहरीर कहीं नज़र न आई

  • 80
  • 1 Min Read

हैरतअंगेज हमको बशर दास्तान दरपेश आई
किताबे-हयात जब उस ने पूरी पढ़ कर सुनाई

न था कहीं कोई लफ़्ज नहीं थी इबादत कोई
सब वरक़ थे सफा तहरीर कहीं नज़र न आई

© "बशर" بشر.

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