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कवितानज़्म
हैरतअंगेज हमको बशर दास्तान दरपेश आई किताबे-हयात जब उस ने पूरी पढ़ कर सुनाई न था कहीं कोई लफ़्ज नहीं थी इबादत कोई सब वरक़ थे सफा तहरीर कहीं नज़र न आई © "बशर" بشر.