कवितानज़्म
वक़्त चुप -चाप खोद रहा होता है तुरबत इन्सान की
बेसबब बढरही होतीहै जुर्रत और उन्मत्त इन्सान की
खाली हाथ आना चुप - चाप खाली हाथ चले जाना
कुदरत ने तय करके रखी हुई है क़िस्मत इन्सान की
उसरत में ही जीना और मरना है फ़ितरत इन्सान की
इतनी-सी ही है बस कैफ़ियत-ए -हैसियत इन्सान की
मन्सूबे हैं बेशुमार हसरतें और ख़्वाहिशें हैं बे-हिसाब
छोटी-सी है मग़र "बशर" येह मुसाफ़िरत इन्सान की
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर'