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कवितानज़्म
बिजली बारिश ओले शर्दी- गर्मी आंधी और तूफान है चट्टान बन कर खड़ा है जो इन्सान उस की पहचान है मानाके चलरहे हैं ज़मीनपर तमामतर कारोबार उसके ज़ौक़-ए-परवाज़ के लिए मग़र उसे खुला आसमान है @ डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر