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मज़हब ही में मज़हब हो गया है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मज़हब ही में मज़हब हो गया है

  • 5
  • 2 Min Read

आदमी आज अधर्मी हो गया है
नाता इन्सानियत से खो गया है!

मतलबपरस्ती का गोरखधंधा है
बन्दा ज़मीर बेच कर सो गया है!

आदमियत का मज़हब उसका
और ही कुछ गज़ब हो गया है!

कबीले जात गोत पंथ मज़हब
मज़हब में ही मज़हब हो गया है!

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر

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