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कवितानज़्म
आदमी आज अधर्मी हो गया है नाता इन्सानियत से खो गया है! मतलबपरस्ती का गोरखधंधा है बन्दा ज़मीर बेच कर सो गया है! आदमियत का मज़हब उसका और ही कुछ गज़ब हो गया है! कबीले जात गोत पंथ मज़हब मज़हब में ही मज़हब हो गया है! © डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر