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पिता "नसमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ" - Bhawna Batra (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

पिता "नसमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ"

  • 206
  • 10 Min Read

"पिता-नासमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ"

मैैं अकसर घर के आँगन में कुर्सी लगाए बैठा बच्चों को खेलते
देखा करता हूँ।
मेरी बीवी मुझे बुद्धु/नासमझ कहती है।क्योंकि
अकसर मैं उसका कहना बड़ी आसानी से मान जाया करता हूँ।
वो समझती है के मैं नासमझ हूँ पर अकसर मैं मेरे बच्चों और
बीवी दोनो की खुशी के आगे हार जाया करता हूँ।
जब कभी वो गुस्से में मुझे बहुत कुछ सुना देती है तो अकसर मैं
ये सोचकर चुप हो जाया करता हूँ|के शायद घर की भागदौड़ में
वो थक चुकी होगी|पर क्या वो समझती है के बाहर के काम से,बोस की डाँट से,बच्चों,बहन,माँ,पिता, उसके
और परिवार की
ज़िम्मेदारियों के तले मैं भी दबकर रह जाया करता हूँ।
वो मुझे अकसर बाज़ार से आते वक्त बहुत से काम बता
देती है,मैं दिन भर का थका हारा वो काम निपटाता हुआ घर
आया करता हूँ।ओर फिर भी वो मुझे ताने सुना देती है।

कहती है
वो मुझे नासमझ,जबके कोशिश कर मैं हर ज़िम्मेदारी निभाया करता हूँ।
हाँ मैं नासमझ हूँ शायद मगर प्यार समझता हूँ-2
कभी कभी बच्चों और उसकी इच्छाएँ पूरी करने के लिए मैं
अपने सपने भुलाया करता हूँ।पिता,पति,बेटा,भाई हर फर्ज़
निभाया करता हूँ।हूँ तो आदमी ही आखिर पूरे
घर की
ज़िम्मेदारी है मुझ पर .....अरे!कहॉ मैं भी अपनी ज़िम्मेदारियों से जी चुराया करता हूँ।

तोड़कर अपने सपने करता हूँ अकसर सबकी ख्वाहिशों को
पूरा|कभी भूखा प्यासा भी रहना पड़ जाता है मुझे|
काम में व्यस्थ मैं अकसर रोटी खाना भूल जाया करता
हूँ।अकसर कहते सुनता हूँ लोगों को के औरत के हाथ में घर की
बागडोर होती है।
कहाँ मैं भी इस बात से पलटा हूँ बस
इतना ही कहना है के तुम्हारी ख्वाहिशों को पूरा करने में

अकसर मैं भी हाथ बड़ाया करता हूँ।
जब भी लोग परवरिश की बात करते हैं बच्चों में तो अकसर मैं
तुम्हारी ममता के आगे छोटा पड़ जाया करता हूँ।
पर हकीकत बस इतनी सी है के तुम्हारे बिना नहीं हूँ मैं, तो मेरे बिना भी नहीं हो तुम।
जब भी कोई सवाल करता है
मुझसे तुम्हारे बारे में, तो सारी बागडोर तुम्हारे नाम कर
अपने
आप को गैर ज़िम्मेदार बताया करता हूँ।
के तुमसे ही घर सभंला है मेरा पर हकीकत तो यही है दिल में
अकसर मैं भी दर्द छुपाया करता हूँ|
इतनी सी कहानी है मेरी आदमी हूँ इसलिए परिवार की खुशी में
मुस्कुराया करता हूँ-2।


©भावना सागर बत्रा की कलम से
फरीदाबाद ,हरियाणा

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

स्त्रियों के त्याग और बलिदान के बारे में सभी बोलते हैं , पुरुषों की इस मामले में अक्सर अनदेखी कर दी जाती है। आपने उस कमी को बाखूबी उकेरा है और वह भी बेहद खूबसूरत ढंग से।

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 4 years ago

सुंदर

दादी की परी
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