Poetess, Beautician, Ayurveda consultant ,Beauty expert
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London is the capital city of England.
कविताअन्य
84 जूनी बाद मिला है,
जीवन ये अनमोल।
हार मानकर मुश्किलों से,
खुदको न तराजू में तोल।
ओ बन्दे,रोता हुआ आया था,
क्या रोता हुआ ही जाएगा।
उठ,खड़ा हो,आगे बड़
क्या जीवन में नाम नहीं कमाएगा।
छोड़दे दुनिया
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कविताअन्य
हज़ार खूबियों के बीच,कुछ कमियाँ नज़र आती हैं,
लेकिन खूबियाँ नहीं,कमियाँ ही गिनी जाती हैं
देकर संदूक खिलौनौ का,खिलौना जो एक उठा लिया,
खिलौने तुमने दिए या नहीं फर्क नहीं पड़ता,
लेकिन खिलौना उठाकर
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कविताअन्य
ब्याह के आई तो रिश्तों के तराज़ू में तोली जाती है ।
चूक जाए फर्ज़ो से, संस्कारों पर उंगली जाती है ।
घर की राजकुमारी सी जो मायके में थी,
नौकरों की तरह ससुराल में रहे,
फिर भी न संभाली जाती है ।
मांगे
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कविताअन्य
मेरी कोई परिभाषा नहीं,
मैं निस्वार्थ भाव से आता हूँ
मुझे सभी ने भुला दिया,
जहाँ दौलत है बिक जाता हूँ ।
न हूँ बेटे के लाड प्यार में,
न बेटी के मोह में नज़र मैं आता हूँ
अब परवाह मेरी किसको है,
मतलब से जहाँ
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कहानीसंस्मरण
"पिता-नासमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ"
मैैं अकसर घर के आँगन में कुर्सी लगाए बैठा बच्चों को खेलते
देखा करता हूँ।
मेरी बीवी मुझे बुद्धु/नासमझ कहती है।क्योंकि
अकसर मैं उसका कहना बड़ी आसानी से मान जाया
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स्त्रियों के त्याग और बलिदान के बारे में सभी बोलते हैं , पुरुषों की इस मामले में अक्सर अनदेखी कर दी जाती है। आपने उस कमी को बाखूबी उकेरा है और वह भी बेहद खूबसूरत ढंग से।
कविताअन्य
ज़िंदगी कभी कभी बहुत निराश होती हूँ तुझसे,
और सवाल करती हूँ तब सिर्फ खुदसे ।
के क्या कभी मैं ये महसूस कर पाऊँगी,
कि जिसके लिए मैं जीती हूँ,अपनी ज़िंदगी
वो समझेगा मुझे।
या बस गिनेगा मेरी गलतियाँ हमेशा
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कविताअन्य
"हाँ वही इश्क़़ करना है मुझे"
जो निस्वार्थ हो, बेहिसाब हो,लाजवाब हो।
जो निस्वार्थ हो, बेहिसाब हो, लाजवाब हो।
हाँ वही, हाँ वही इश्क़ सीखना है मुझे।
दर्द की गहराईयों से,तन्हाईयों की भीड़ से,
चुप्पी
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