कविताअन्य
हज़ार खूबियों के बीच,कुछ कमियाँ नज़र आती हैं,
लेकिन खूबियाँ नहीं,कमियाँ ही गिनी जाती हैं
देकर संदूक खिलौनौ का,खिलौना जो एक उठा लिया,
खिलौने तुमने दिए या नहीं फर्क नहीं पड़ता,
लेकिन खिलौना उठाकर तो भाई,गुनाह ही कर दिया
हाँ में सर हिलाते रहोगे,तो अच्छे ही कहलाओगे
ज़रा से चूके,ओर गलती से न में गर्दन हिल गई
तो सबसे बुरे कहलाओगे
तुम सही तुम सही कहते रहना,गलत को भी
तो तुम सबके लिए सही जाने जाओगे,
ज़रा सा कहकर देखना गलत को गलत,
फिर पता चलेगा,कितना अपनापन पाओगे
यह दुनिया,बस उँगली उठाना जानती हैं,
सही क्या है गलत क्या है कोई नहीं सोचता,
बस दुसरों को नज़रों से गिराना जानती हैं
अपनी कमियाँ कोई न देखे,
कमियाँ बस दूसरों की गिनाना जानती हैं
"मैं" का कीड़ा इस कदर काट रहा है सभी को
तभी तो अपनी नहीं दूसरों की कमियाँ नज़र आती हैं
कुछ कमियों के पीछे हज़ार खूबियाँ अकसर छुप जाती हैं|
©भावना सागर बत्रा की कलम से