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प्रेम की परिभाषा - Bhawna Batra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

प्रेम की परिभाषा

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मेरी कोई परिभाषा नहीं,
मैं निस्वार्थ भाव से आता हूँ
मुझे सभी ने भुला दिया,
जहाँ दौलत है बिक जाता हूँ ।

न हूँ बेटे के लाड प्यार में,
न बेटी के मोह में नज़र मैं आता हूँ
अब परवाह मेरी किसको है,
मतलब से जहाँ कोई पुकारे
वहीं पहुँच मैं जाता हूँ ।

कहाँ अब पहले वाले दिल से,
रिश्ते निभा मैं पाता हूँ
जिस और का पलड़ा भारी हो,
मैं वही झुक जाता हूँ ।

जज़बातों की मेरे जहाँ होती कोई कदर नहीं
तो मैं भी तुम्हारे रिश्ते,तुम्हारे जज़बात
बिखेरकर पीछे हट जाता हूँ ।

बस एक सवाल अंत में,तुम सभी से करना चाहता हूँ
क्यों भुला दिया मुझको तुमने,
क्या याद नहीं मैं आता हूँ
क्या तुम्हारी गलतफहमियां हावी होती है मुझ पर,
क्यों मैं उन पर हावी नहीं हो पाता हूँ|

©भावना सागर बत्रा की कलम से

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