कविताअन्य
ज़िंदगी कभी कभी बहुत निराश होती हूँ तुझसे,
और सवाल करती हूँ तब सिर्फ खुदसे ।
के क्या कभी मैं ये महसूस कर पाऊँगी,
कि जिसके लिए मैं जीती हूँ,अपनी ज़िंदगी
वो समझेगा मुझे।
या बस गिनेगा मेरी गलतियाँ हमेशा चंद
लोगो के बीच खड़े होकर और आजीवन
मुझे यही सवाल सोचने पर मजबूर करेगा,
कि क्यों चाहा मैंने उसे जिसे मेरी खुशी,
मेरी इज़्जत मेरी चाहतो से कोई फर्क नहीं पड़ता।
कभी कभी सोचती हूँ तो समझ आता है,
कि ऐसा भी नहीं है वो जैसा मैं सोच रही हूँ,
शायद उलझ गया है कुछ रिश्तों में जो
अपनी अपनी जगह बहुत खास है ।
जैसे उलझ जाते हैं कुछ पुराने एक साथ
रखे खुले धागे किसी डिब्बे में ।
मगर फिर सोचती हूँ कि अगर उलझा भी है
तो सुलझ जाएगा और सुलझाएगा हर उस
धागे को जिसका अपना,अपनी जगह एक
अलग ही वजूद है ।
मगर फिर ये भी महसूस होता है कि उसकी
नज़र में हर धागे का वजूद है बस एक धागा
छोड़कर वो हूँ मैं ।
जिसके वजूद की उसे परवाह ही नहीं,
क्रोशिया का धागा हूँ जैसे कोई,कि कभी कभी
ज़रूरत पड़ने पर ही निकाला जाता हूँ।
वो हर रिश्ते के साथ ऐसे खड़ा हो जाता है अकसर,
जैसे जानता हो कि उसके बिना ये शख्स
कुछ नहीं कर पाएगा ।
जैसे कपड़ा सीने वाले को मालूम हो कि
कौन से रंग का धागा कहाँ लगाया जाएगा।
मगर मुझे वो हर जगह ये एहसास कराता है,
जैसे मैं कोई बेकार धागा हूँ कभी कभी
इस्तेमााल होने वाला।
हाँ वही क्रोशिया का धागा ही हूँ शायद
लेकिन मुझे यकीन है खुद पर इस धागे की तरह,
कि जिस दिन इसकी कीमत जान जाओगे तुम,
तुम्हें मुझसे बहतर कोई धागा नज़र नहीं आएगा ।
क्योंकि मैं वो बुन सकता हूँ जो कोई और नहीं ।
और अगर तुम चाहते हो कि तुम मुझे बुन सको,
तो शायद तुम्हें हर धागे को उसकी सही राह,
और उसके अपने फर्ज़ कि उनकी ज़्यादा
ज़रूरत कहाँ है वो बतानी होगी वरना?????
वरना तो तुम ये क्रोशिया का धागा यूँ खो दोगे
जैसे कभी तुम्हें ये मिला ही न हो ।।
और काश तुम मेरी हर कविता, कहानी, नज़्म को पढ़ने में रुचि रखते तो शायद इस क्रोशिया की बुनाई का रास्ता भी ढूँढ पाते।मगर अफ़सोस कि तुम इस धागे को बहुत जल्द खो दोगे।शायद टूट जाएगा ये धागा और तुम्हें भनक भी न लगेगी।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा