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कवितानज़्म
किसी मज़हब को बचाने के लिए इन्सान की क़ुरबानी कैसे जायज़ हो सकती है हां मग़र इन्सान को बचाने केलिए मज़हब की क़ुरबानी वैसे जायज़ हो सकती है @"बशर"