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आज शिक्षकों की व्यथा - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

आज शिक्षकों की व्यथा

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बच्चों को जी भर देखना चाहता हूँ
अपनी आँखों के सामने
मन भर बातें करना चाहता हूँ
अपने मन को समझाने का,
भरपूर प्रयत्न करता हूँ
फिर भी मेरा मन नहीं मानता है
खूब रोता है, बहुत बिलखता है
शायद उसे वर्तमान हालात का पता नहीं!!

सफल होने वाले अपने जिगर के टुकड़ों की
पीठ थपथपाना चाहता हूँ
सफल बच्चों को गले से लगाकर
बहुत स्नेह, आशीर्वाद प्रदान करना चाहता हूँ
पर, आज हूँ मजबूर, बेबस हालात के समक्ष।।

आर्थिक स्थिति महामारी से पूर्व भी
मन को तोड़ने की भरपूर कोशिश करती थी
और आज इस मोड़ पर खड़ा हूँ,
महामारी की वजह से कि
अपनी वर्तमान परिस्थिति को
शब्दों में वर्णित कर पाने में असमर्थ हूँ।।

देश का भाग्य निर्माता कहा जाता है
हम शिक्षकों को, और आज
देश का भाग्य निर्माता भी
अपने भाग्य को लेकर
चिंतित है, व्यथित है।।

पलकों की कोर पूर्णतः भीग जाती हैं
जब प्राइवेट शिक्षकों की वर्तमान दशा की
ओर नज़र डालता हूँ,
उस वक्त मन चिंता रुपी नदी में डूब जाता है।।

इस स्थिति में भी अपने मन को टूटने नहीं दूँगा
हार नहीं मानूंगा हालात के समक्ष
तब तक लड़ूँगा जब तक साँसें शेष हैं
ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करता रहूँगा
जब तब हूँ धरा पर।।


©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

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