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कवितानज़्म
तौर-तरीके तर्ज़ेअमल उस्लूब-ए-वफ़ा-ए-वतन हम नहीं समझे महफूज़ रहे कैसे हमारी तहज़ीब-ओ -तमद्दुन हम नहीं समझे हुक्मरानों से ज़्यादा उन की हुक्मरानी पर था ऐतराज़ उसको बे-लिबास फिरने लगा यायावर संत दफ़अतन हम नहीं समझे @"बशर"