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कवितानज़्म
क्या हम और क्या इसतरह ख़ामोश रहना हमारा जब आंखें ही कर गईं बयाँ हाले -दिल दिल सारा ज़माने की ज़िल्लत ओ रुस्वाई हम करके गवारा किसी सूरत किये जा रहे थे बसर कर के ख़सारा @"बशर"