कवितानज़्म
माटी को माटी में मिलने से डर लगता है
मौत अटल है मग़र मरने से डर लगता है!
टूटकर बिखर न जाएं ये नाज़ुक पंखुड़ियां
सोच कर फूल को खिलने से डर लगता है!
फ़ानी है मिट जानी है हर शय आनी-जानी
फिरभी ये रैनबसेरा जाने क्यूँ घर लगता है!
मुसाफ़िर कहीं औरके हयाते मुसाफ़िरत में
येजीवन तेरा बशर बसइक सफ़र लगता है!
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر
*फ़ानी- नश्वर, मुसाफ़िरत- सफ़र