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जीवन तेरा बशर बस इक सफ़र लगता है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जीवन तेरा बशर बस इक सफ़र लगता है

  • 3
  • 2 Min Read

माटी को माटी में मिलने से डर लगता है
मौत अटल है मग़र मरने से डर लगता है!

टूटकर बिखर न जाएं ये नाज़ुक पंखुड़ियां
सोच कर फूल को खिलने से डर लगता है!

फ़ानी है मिट जानी है हर शय आनी-जानी
फिरभी ये रैनबसेरा जाने क्यूँ घर लगता है!

मुसाफ़िर कहीं औरके हयाते मुसाफ़िरत में
येजीवन तेरा बशर बसइक सफ़र लगता है!

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر
*फ़ानी- नश्वर, मुसाफ़िरत- सफ़र

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