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"है"
कविता
हमसफ़र
भुलक्कड़ नहीं है वो
विधुर पुरुष
विधुर पुरुष 2
प्रेम
हाँ वही इश्क करना है मुझे
औरत का सफर
"हाँ... ज़िद है"
होने को साकार, फिर एक बार ...
८४ जूनी बाद मिला है जीवन
"तेरी-मेरी दोस्ती
दुःख होता है
हाँ, यही तो जीवन है
याद है तुम्हें
सुनो एक बात कहता हूं (भाग - 2)
मां ने मुझको जन्म दिया,पर पिता ने मुझको पाला है ।
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है
कोई दिल में जब उतरता है
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
आज दिवस है काकोरी का
कवि हो जाना
#सावन_है_आया
है खोफ मंजर फैला हुआ
मुंबई शहर अलबेला है
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
सैनिक है नमन आपको
अरमान सजा रखा हैं
हाँ इश्क़ में तेरी मेरी एक ही राशि है
अब आया है पन्द्रह अगस्त
बस अच्छा लगता है।
क्या फर्क पढ़ता है
हैरत नहीं कि अब जान बेहतर है
स्त्री कमज़ोर नहीं होती है
गिरकर ही संभलता है इंसान
चित्र पर आधारित प्रतियोगिता
महल और झोपडी
नानी
नानी
किरदार
कोविड आया है....
ये कलयुग का इंसान है
अक्सर भूल जाते है लोग
मन में कुछ जिज्ञासा है
मन में कुछ जिज्ञासा है
जब कलम चलती है
असंभव कार्य संभव करती हैं बेटियाँ
ईश्वर,अल्लाह सब माँ !
बेटे बहादुर होते हैं
दर्द
हाँ, वो प्यार करती है
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
कलयुग है ये
सोशल मीडिया का बुखार है छाया
तुम्हें कब मना किया है
यादें तो यादें हैं
दोस्ती क्या है
क्यों लगता है मैं बहू से बेटी ना बन पाई
कौन है जो सही है?
यही सच है
पर हमें भी लिखना है
अदृश्य बेड़ियाँ
अपना क्या है
हम उस देश के वासी हैं
वक्त करवटें बदलता है
एक खत इच्छा के नाम
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
हिंदी क्या है??
यही है रत्नागर
हिंदी है अभिमान
यह जिंदगी है
एक नज़रबंद कैदी
हिंदी है पहचान हमारी
हमारा अभिमान है हिंदी
हिंदी महज भाषा नहीं है
हिंदी है हिन्द की शान
हिंदी
मैं हूँ हिन्दी सज रही माथे पर मेरे बिंदी
हिंदी हैं हम
कुछ बात तुम्हें सुनाते हैं
इंसान आज जमी पर आया है।
हिन्द के वासी हम , हिंदी है अभिमान ...
दिल के सांचे में अश्क ढलता है
बस मुझेअच्छा लगता है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
क्या है आज के अखबार में
दिल से दोस्ती तक
ब्रजमंडल में ग्रीष्म
क्या लिखू क्या ना लिखू
खुद में खूबसूरत है हम
रिश्ते
दर्पण की भी सीमा है
मुफ़लिस
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
हां मै एक औरत हूँ
मत करो जीवन नष्ट ये अद्भुत वरदान है
दिल चाहता है
गुरु
क्या है भारत
बेटियां नूर है
जीवन अपना है...
जिन्दगी
दिल चाहता है
दिल में
मूक -निमंत्रण
जाने ये कैसी है मीडिया
ये मजदूर नही है, सुनहरे भारत का अभिमान है
तुझमे हुनर है
क्या तुम्हें याद है?
हर पुरुष पैदा स्त्री ही होता है
मुझे तू अपना सा लगता है
बहुत कुछ है हमारे बीच
तू मुझे अपना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
जब कोई धोखा देता है
मुझसे पूछो
हाथों में आ जाती है कलम
नारी स्वतंत्रता...
हम पास तो हैं पर साथ नहीं
कहाँ कठिन है ज़िंदगी
मुस्काती है ज़िन्दगी
ये फूफा भी कमाल करते है
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में
मैंने जीवन जीना सीखा है
जो असलियत है.......
ये बेटियाँ हमारी
कौन कहता खामोशी में बात नही होती
मुझे तू अपना सा लगता है
बदल लिया है
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
हक दुश्मन से मांग रहा है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
नशा है
जिन्दगी की राह
यह आदि है या अंत
व्वक्त
अच्छा लगता है
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
सचमुच फिसलन बहुत है
तब गांव हमें अपनाता है
ज़िंदगी तो बस एक खुली किताब हैं
ये जो मोहब्बत है
प्रेम
ये नयन
वो तो जान है मेरी ...
अब कोई नही है
वो कौन है
ऐ चाँद तेरी क्या बात है....
जीना पड़ता है
जब जन्म लेती है "बेटी"
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
नादान हथेली
इन सबका रंग लाल है
कफ़न में लिपटकर आना है
यथार्थ रूप भाग-५
एहसास को समझूँ
दीपोत्सव
नारी ही नारी की सूत्रधार है!
गीत है संगीत है
सुन लो ना
दीप हैं हम (गीत)
शिक्षक महान है।
पानी पर चलता है क्यों
ज्यों-ज्यों बड़ी होती है बेटी
दिल दर्द से भर जाता है
आवाहन करती है ये वसुंधरा
वक़्त
कुछ बातें
किताबें
बहरी क्यों सरकार आज है
हम लड़के हैं।
ख्वाबों का दरख़्त
घर
ज़िन्दगी सबकी बदलती जा रही है
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
जहां तक उम्मीद है
अन्नदाता
सबकुछ तो तय हैं ..
मुझे वो नज़रें बदलनी हैं
मुस्काती है ज़िन्दगी
मुझे याद है
मुझे तू अपना सा लगता है
कुछ एहसास हैं भिन्न
हैवान की हैवानियत
हैवान की हैवानियत
मुझे तू अपना सा लगता है
ये तज़ुर्बा कुछ और है
ये वो शाम है
जिंदगी ऐसे ही चलती है
#अभिलाषाएं जाग रहीहैं
वो अनजान है।
हाँ मैं थोड़ी बदल गईं हूँ
आज भी पीछा करती हैं
यादें
सांता क्लॉज आया है
ऐसा एक ख़्याल है
कोरोना का दर्द
अपनों को अपना हाल बताना मुश्किल हो जाता है
2020 तुमने सिखलाया भी है बहुत कुछ
देखो देखो नया वर्ष है आया
हुक्मरान आए हैं,
पिता तब बहुत रोता है
आती रहती हैं
इसी में तो भला है
हाँ हम आम लोग हैं।
जो अपने है उनको पराया ना कर
आती रहती है
जान बैठे हैं
इकरार
जनवरी की ठंड
नारी को प्रणाम है
जब कोई बात दिल में घर कर जाती है
शहीदो के नाम दिया जलाते है
सैनिक संभालते हैं ख़ुद को
जन गण मन
देश मेरा महान है
देख ये कौन चलें हैं
एक दीया शहीदों के नाम करते हैं।
तेरे इश्क में डूबे डूबे से हम हैं
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
#तुम पुरूष हो....
चेहरा
एक दूसरे के पूरक है हम
सियासत जरूरी है।
मुझे कुछ कहना है
प्रेम पेड़ के मानिंद है
हे माँ तू मेरी जन्नत है,
हर वक्त बस है धोखा...
खुश है वो देखो कितना..
क्युं आँख तेरी भर आयी है ...
दिल खोल के लुटा देती है..
ऋतुराज आया
ऋतुराज आया
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है
वीणावादिनी
भारत के वीर सपूतों को नमन
कोई शहर बाकी है
आज प्रेम दिवस है
बहुत उम्मीद है
हम सिर्फ तेरे हैं
ऋतुराज आया
ऋतुराज बसंत है आया
बारिश हो रही है
दूर है
क्या तेरा भी है नाम कोई?
ज़िन्दगी है उड़ती चिड़िया
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
ग़ज़ल-इश्क़ की हद जानता है
बच्चा एक अकेला
"मुझे मेरा वो गाँव याद आता है"
वाह वाह क्या बात है
इसी का नाम ज़िन्दगी है
तेरा साथ है
"मेरा प्रेम नयन नीर निश्छल सा है"
"काली नैयना मदहोश शाम लगती है"
बहुत बोलती हैं ये आंखे तुम्हारी
येदिलकर रहा है तुम से ही बातें
कहती है आज की नारी
मैंने तो मांगा है बन्धन पिया
मुझसे प्यार है और नहीं भी
तुमसे है प्यार
कोई तो खास है
आपके ढेरों उपकार हैं माँ
मां तू है ममतामयी
रूह आसमान में रहती है
नारी तू ही शक्ति है
नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं
नारी पूर्ण है
माँ की एक अलग दुनिया हुआ करती है।
धागे पहले उलझते हैं
चाँद छुट्टी परहै
घर का द्वार खुला है
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है
समर्थन
चाँद आज छुट्टी पर है
प्राण वायू श्याम है
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
सियासत....
दिल ही तो जाने है
✍️अनजान चेहरा सा हैं, मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,
"क्यो प्यासा रह जाता है"?
सफ़र यादों का ❤
कविता जन्म लेती है तब,जब
रिश्ते
होली विरह गीत
जिंदगी ही तो है।
"एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
यूँ तो मेरा क़त्ल हुआ है।
उत्सव
मतवाले होली के *
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
कुछ कुछ होता है
ये बच्चे अच्छे होते हैं...
ज़िन्दगी भी क्या है
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
इस मोड़ से जाते हैं
इसी का नाम है ज़िन्दगी
मोहब्बत सी हो गई है, तेरे एक इंतजार में...
मजा बहुत आता है।
कृष्ण ही कृष्ण है
भारत देश और इंसान
है ऐसा कोई
कोरोना बोलो तुम्हे कब है जाना
ठानी है हमनें
आम और सच
हालात
कोरोना को हराना है
माँ ऐसी ही होती है
माँ का चेहरा देखा है
ममतालय
फूल सदा मुस्काता है।
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
मील के पत्थर
आज प्रेम दिवस है
क्या धरती बस इंसान की है ?
वह फूल कांटा ही चुभाता है
जी चाहता है।
दिल एक तिजोरी है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
फिर मन करता है
हे कृष्ण! कितना आसान है
महकता सा ख्वाब है
# बहुत घुटन है
उम्मीद की लौ
जो कुछ नहीं करते बहुत कुछ करते हैं
क्या यही जिंदगी है?
आशाएं
यह सृष्टि मेरी ही तो है
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
ज्ञानी हर एक है
अब शौक नहीं है।
क्यूंकि तू ग़म है...
अधूरा सा प्यार था।।
यथार्थ रूप भाग 7
✍️बेहिसाब है,यह खुशियां तेरे एक मुस्कुराहट में।।
मित्रता दिवस (Freindship Day)
मौसम है सुहाना
✍️इंसान को भी जीना सिखा देता है।
अखण्ड भारत का संकल्प
इस मोड़ से जाते हैं
दरवाजे बन्द मिलते हैं
✍️गम भी जिंदगी को कितना कुछ सिखा देता है।।
वे साँसे हैं हमारी
हाँ, यही तो जीवन है
सचमुच फिसलन बहुत है
हैवानियत की हार।
लहज़ा
✍️किसी को किसी से भी प्यार हो जाता है।
यह जिंदगी है
बस इसी का नाम तो है जिंदगी
बेटियों का महत्व
जिंदगी ऐसी ही है
संगीत साधना है
ख्वाब
प्रेम मधुरसम मस्ती है
घनी है रात
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
अगन जलाये हैं...
परिवर्तन कहीं आस-पास है
अब में ही सिमटा है
मेरे घर में माँ आयी है
माँ जाने क्या कहती है
चलों लम्हें चुराते हैं
शब्द जानते हैं
खुशनुमा शाम हैं
कहीं खो जाना है
जीवन संघर्ष है
ज़िन्दगी दौड़ हैं
✍️You were the only one, my father
जीना ही जिंदगी है
" वाकई " 🍁🍁
हैं कोई बात
मेरे नयना बरस रहे हैं
ऐसा था, मौसम...
खो गया है मेरा प्यार
आसान नहीं हैं, किसी के साथ जीना
तुम्हें कैसे समझाऊं...
बाल कविता होली में मची है धूम
जिदंगी, मुझको तुझसे प्यार है
लोग बदल जाते हैं
उमंग
गीत... हो रहे हैं लोग
सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
क्या रखा है वक्त गवाने [प्रथम भाग]
खोमोशी कुछ कहती है
ये बात आख़िरी है।
मैं ज़िन्दा हूं, बेजान हूं।
ये पूजा ये गायन क्या है?
ठंडी क्या आफत है भाई
भारत रत्न
जुबां खामोश कहती है !
हम तन्हा हो जाते हैं -कविता
कुदरत कुछ कहती है
कुदरत कुछ कहती है
गुनगुनी धूप
कोई लैला बुलाता है
आजकल मेरे महबूब सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं
हर किसी के हाथ में अब आंच है।
अब भी समय है "इंदर" सुधर क्यूँ नहीं जाते
कुछ लोग यूँ ही परेशान हैं
मरते किसान नहीं, मर रही हमारी आत्मा है।
क्या अच्छा है?
क्या अच्छा है?
सब जायज़ दिखाई देता है
सुकून मग़र बशर भरपूर है
कामयाबी हमारी राहे-हयात का इक ख़ूबसूरत मरहला है
साथ तिरे सारा ज़माना है
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
शामो-सहर रोजो-शब आज और कल बदलते हैं
कुछ भी नहीं है बशर बात नई जिंदगी में
खून नस्ल-ए-आदम का बहा है
तू है अनमोल रतन
तू है अनमोल रतन
चाल बशर उक़ज़ा की मतवाली है
तू ही सही है
दिल्ली दूर है
मतलब की बातें करते हैं
शेर-ओ-सुख़न से दूर रहते हैं
किसीको पता कहाँ है
ख़ुद को मना लेना बेहतर है
किसीको जीना आ जाता है बशर
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
जुदा सबकी फ़नकारी है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
बारिशों की झड़ी लगी है
कच्चे घरों को कौन बचाने वाला है
पल-पल तिल-तिल मरता है आदमी
दश्त हरा पानी छू-कर होता है
और बशर इस जहां में क्या रखा है
ऊंची हो जाती है दीवार कभी कभी
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
ख़ुदा का अपना कोई मज़हब नहीं है
दिल-ए-नाशाद तक़दीर बनाना चाहता है
बशर सब -कुछ जान लेता है
मोहता है सबका मन
मुफलिसी ने बेनक़ाब कर रखा है
मानाके मौसम तेरे शहर का दिलकश और सुहाना है
**रात बाकी है**
सियासत से ही सियासत की काबू में रखना माया मुमकिन है
ख़ामोश रहकर बशर वो अश्आर हज़ार कह देते हैं
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
ऐ जिंदगी ख़्वाब तिरे तमाम सदा मुकम्मल नहीं होते हैं
बंदे तेरा अंदर कहाँ है
जिंदगी मिली है जीने के लिए
हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त में हबीब के कभी बसर करने का इरादा भी नहीं है
किस्तों में अदा होती है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
कौम गूंगी, बहरी, अंधी हो जाती है
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
महब्बत महब्बत होती है
खुशबुएं नदारद बशर
दीपक जगता बुझता रहता है
शख़्स जो बे-हद खास होते हैं
खाली हाथ जाना है
जिस की सोच जैसी है
थोड़ी-सी हसरत होती है
हमारा ही हाथ है
अमन का रास्ता बातचीत के द्वार से होकर गुजरता है
है गुफ़्तगू भी लाज़िम राब्तों के वास्ते!
आगाज़े-सफ़र कर रहा है तू
कुछ तो बेहतर है
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है
सालती है बशर हमको येह ख़ामोशी औलाद की
कौन सका है बखान
किस क़दर है बशर जरा देखिए दिलका विश्वास उनका
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
दिल का बुरा नहीं बशर आदमी वक़्त का मारा है
अनल, जल धूल, सलिल जज़्ब है सब तुझमें
औलाद की ख़ातिर सबकुछ कर जाता है आदमी
फासले राब्तोंकी असलियत बता देते हैं
आदमी परेशान-सा रहता है
तैयार हैं छोड़नेको घरबार हमतो
राब्तों का रास्ता नहीं मिलता
किस तवील-ओ-कद का है इन्सान
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
बीते हुए दिन बशर अब अक्सर बेहतर लगने लगते हैं
वो हमसे पूछे कितना है क़रीब मेरा
गुड़िया है मोमकी या बनी फौलाद की
कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी है
बेनाम शहीदों को क्याक्या हुए थे हासिल ईनाम याद हैं
जी भरकर ख़्वाब देखो आपही की रात है
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
कामिल कोई शय नहीं है इधर बशर जमाने की
अश्आर तेरा काम लिखना है
गैरों से दोस्ताना अहबाब से रक़ाबत रखते हैं
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
किरदार इन्सान का ज़ीस्त में असली सरमाया होता है
जान है तो जहान है
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
उम्रे-ए-तमाम शबे-तन्हाई है
लोगों के जज़्बात बदलते हैं
गैरों की खूबियां ढूंढ लेता है
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
तहखानों में छुपा रखा है
नसीब से मग़र कमही मिला है
झरोखे यादों के
रक्षाबंधन गीत
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
अहबाब फ़िक्र-ए-मुसबत वाले क़िस्मत से मिला करते है
मजा तो दर्दे-जिगर छिपाने में होता है
साहिल पे उफ़ान आता है
चलो चांद पे बसते हैं
चांद पर बसने की बात करते हैं
राखी के धागों में है पिन्हा बहन-भाई का प्यार सलामत
ख़ाकसारी में भी बशर उन की बड़ी शान होती है
निगाहें आज तक टिकी हैं बशर उसी तरफ़ मुंतज़िर तुम्हारी
जरूरियात भी कम है
हयात जीना अलग बात है
रिश्ते याद तो आ जाते हैं
ये हसरतें मुंतज़िर हैं किस बात की
कोई नहीं है क़रीब मिरे
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ
ज़ीस्त से जिंदगी-भर से यूं खेलता रहा है बशर
किसी की दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
अना के मरीज़ की बशर दवा क्या है
लोग खुदा बदल लेते हैं
मेरे वतन में खुदा बहोत हैं
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
बे-शुमार मसर्रतें होती हैं मयस्सर जरा-सा मुस्कुराने से
धूप में जले हम छांव के होते हुए
मुकम्मल सब काम होते हैं
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
यौम-ए-हिंदी मुबारक
छोड़ गया है मुझे
जबर्दस्ती नज़र आती है
कोई और काम आ गया है
*बेमानी है बे-मतलब बोलना*
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
हयात क़ज़ा की मोहताज बनकर रह गई है
अच्छे -भले लोग बशर बीमार हो जाते हैं
*है दस्त-याब हर-शय*
छोटा बड़ा गिलास देखते हैं
*बड़ा सरल है किसीसे खुश रहना*
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
*कठिन है बिन कुछ कहे कुछ कहना भी*
बुलन्दियों को छू लेना बड़ी बात नहीं है
याद का नहीं है असर तो और क्या है
*मुश्क़िल डगर है तो क्या*
*अपने तो बस नाम के होते हैं*
*मुझ को मिरा जलाल-ए-जमीर काफी है*
*खिलता है चमन बरसात के बाद*
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
दूसरों को देते हैं ज्ञान
किरदार जिंदा रहता है
*दश्त का भी दस्तूर होता है*
*नज़रिया बड़ा हो जाता है*
*ज़हर पिए जा रहे हैं*
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है*
*है तसव्वुर के भी पार बशर*
*सफ़र नहीं है आसान मोहब्बत का*
करते नहीं हैं याद हमको हबीब हमारे
वो अब हमसे नाराज़ नहीं है
*याद आते हैं*
*सफ़र बाक़ी है*
*समझाने लगे हैं लोग *
*हक़ सबको है*
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
*कुछ गीला पड़ गया है*
जिंदगी ही सिखाती है सबक जिंदगी के
सहर-ए-वस्ल जाती क्यूँ है
*उसका ख़्याल सबका ख़्याल रखता है*
जिंदगी बेहाल होती जा रही है
*मुस्कुराने में क्या जाता है*
*मेहनत और मशक़्क़त की चलती है*
*वज़न इल्म का उठा सकते हैं नहीं*
क़ुदरत ने करिश्माई ताक़त बख़्शी है
खुला है ख्वाजा का दरवाज़ा
*जिंदगी तजुर्बात सिखाती है*
अपनी भी ग़ैरत है अना है
आदमी ने ज़हर घोला है
अहबाब भी हैं
जरुर अन्त होना है संसार का
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
मतलब कोई और निकालता है
सबका अपना ज़माना होता है
सांप सूंघ जाया करते हैं
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
*उस्ताद से बड़ा चेला हो गया है*
*जीने का तरीक़ा बड़ा आसान है*
*दुनिया अपनी मिल्कियत नहीं है*
कहाँ सुनता है
यह कैसी दोस्ती की है
*तोलने की ज़रूरत क्या है*
*मेयार ए बुलंद के मिज़ाज क्या हैं*
*कलम दवात के सहारे हैं*
*सलाम अच्छा है*
*शराब ने डुबोया है* म
*खो जाता है आदमी*
*ज़बान है उर्दू*
जीने की हसरत है
"बशर" किरदार तेरा कितना महान है
छटपटाता रहता है आम इंसान
'बशर' को चालबाजियां कहां आती हैं
*जमाने का होता है हाथ फ़ितरत-ए-इन्सा बनाने में*
चलो अदला-बदली करते हैं किरदारों की
हरसू बेइंतहा रौशनाई है
वुजूहात हमारे अंदर जज़्ब होती हैं
*धनदौलत जिंदगीमें सच्चे अहबाब होते हैं*
उजालों के भी अदब हुआ करते हैं
रौशनाई के भी अपने उसूल ओ अदब हुआ करते हैं
*शायरों का यही हाल होता है*
बच्चे डरने लगे हैं
बची हुई यादाश्त है
अधिकांश होते हैं गुमराह
*सीने में धड़कता क्या है*
शर्माते हैं
वो कुछ और पढते हैं
*दिल अपनी कहता है*
*कदमों में जमाना होता है*
*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है*
*लम्हों की मुलाक़ातें हैं*
*मुसाफ़िर बनकर रहना है*
*भीतर भरा समंदर है*
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
दुश्वारियां सिमट जाती हैं हयात से
*जिंदा अपने उसूल हैं*
उसीकी नज़र-ए-नायत दिखाई नज़र आती है
सफ़र से गुजरता हर कोई है
बुलंदी पर बने रहना और बात है
ख़ूबसूरत झूठ है हयात तेरी
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं*
इंसान
*कलमदवात बदल जाते हैं*
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
आंखें कराती हैं पहचान
मौसम-ए-बहार का नशा तरी है
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
*चैनकी नींद सो जाता है*
सबब अच्छा है
ख़ुलूस किस शय का नाम है"
क्या लिखा जा सकता है???
*हयात रूकी हुई है*
*नींद है तो ख़्वाब नहीं*
रवैया क्या है तुम्हारा
किस मुकाम पर आ गए हैं हम
बचकर रहने का तरीक़ा है
*भरम अच्छा है*
इश्क़ में 💫
*सराबों से आब चाहता है*
*मुस्कुराना है मुश्क़िल बहोत*
दर्द की दर्द से शिफा किए बैठे हैं हम
तुमसे मोहब्बत है 😍
*दुश्मनी सस्ती हो गई है*
आदमी ही आदमी के काम आता है
अपना कातिल 🔪
जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने
मसाइल कुछ अयाँ नहीं हैं
वक़्त अपना सफ़र करता है
दूर है तेरा घर अभी
खामियाँ हर कहीं होती हैं
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
दूरका वास्ता रखता है
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
मौसम-ए-सर्द में बर्फबारी आम बात है
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
आदमजात के किरदार का सूरत-ए-हाल और है
दरिया का किनारा बाक़ी है
नवविहान का स्वागत है
आमाले-कमाल तेरा तुझपर है
पूछो तो यही कहता है बशर
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
मेरे सिवा कौन चलता है तेरे साथ
सुनते हैं कि साल बदल गया है
यादों की क़ैफ़ियत-ए-दिलबरी है
तुम साथ तो दे दो 💫
कद काठी किरदार की बड़ी हो गई है
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
तन्हाइयों की हैं बशर मजबूरियाँ बहुत
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
दिलों में गर्माहट बहुत है
मौसमे -सर्द है
जान में जान आ जाती है
दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है
सुख़न जो ख़ामोशी से अयाँ होता है
मां -बाप भी बंट जाते हैं
सच और हक़ की सब बात करते हैं
मेरी लाज है तेरे हाथ
उसकी बनाई तस्वीर अलग है
हुदूदे-ग़म हम पार कर आए हैं सारे
सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं
तेरेसे भी बेहतर शख्सियत हैं
हौसलें बुलंद हैं
हौसलें बुलंद हैं
खामोशी
मुतमईन रहो 🤭
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
फ़रेब भरे हैं प्यार में
तेरे दिल की 💞
संस्मरण --खुली आंखों से देखा स्वप्र भी सच होते हैं
यारब हमको तेरीही हिफ़ाज़त है
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
मर्जी से देता है
वक्त बुरा था ⏱️
दर्द जिगर में होता है
बर्फ़ पर घर बसाने लगे हैं
हम सब इम्तिहान में हैं
बशर की औक़ात क्या है
रंगों में रवानी है
न होने का रोना है
तिरे शहर में क्या क्या नहीं होता
तिश्नगी बढ जाती है
बदनामी शोर मचाकर आती है
बदनामी बड़ा शोर मचाकर आती है
राज लिखे जाते हैं
सब तो है मालूम उनको
अधूरा फ़साना याद है
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
अलग अपनी पहचान रखते हैं
मंजिल से फिरभी दूरी है
जिंदगी क्या है
इल्ज़ाम 🔪
विश्वास के दीप जलाए हैं
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाता है
नुस्खे बे-हिसाब रखते हैं
'बशर' नादान है
तुमसे ज्यादा नहीं है खास कोई
जो हमें भूल जाते हैं
काफ़िले किसीके वास्ते रूकते नहीं है
पल पल गुजारा सुहाना याद आता है
अच्छी क़ाफ़िया-पैमाई है
प्यास क्या है तिश्नगी क्या है
दिमाग से पैदल बेबात की बात करता है
देखा है हर जख़्म भरते हुए
जिंदा भी हैं के मरगए इतनी तो ख़बर रखो
रूठने से रिश्ते गहरे होते हैं
लोग अपनी ज़रूरतों को याद रखते हैं
ताकीद परेशान करती है
मशक़्क़त से गुजरी है हयात अपनी
संजीदगी अगर कहीं होती है
राब्तों में दम नहीं है
मछलियों को बहुत गुमान हुआ है
हमने मान लिया कि यही सही है
बेचैन रहती है रात हमारी
ज़िन्दगी नए नए रंग बदलती है
तेरा लहू लहू तो मेरा लहू क्या है
तुम काबिल हो ❤️
इन्सान बेसबब परेशान रहता है
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं
आसमान पाना चाहता है
कहनेको अश्आर नहीं है
ख़ामोशियों में शोर पुरज़ोर होता है
हौसला खुदही का काम आता है
बचपन याद आता है
दिल से दूरी थोड़ी हैं
फरिश्तों को सुना है पलटते हुए अपनी बात से
जाने तू कहाँ है माँ
जवानी हमने रूठने मनाने में गुजारी है
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
सूना है फ़लक महताब के बग़ैर
बाप औलाद से डरता है
आंसू आंखों से बाहर नहीं आ पाते हैं
आसमानों से बाते करने लगे हैं
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
इन्सान तो आख़िर इन्सान होता है
आज की बात है
फिर भी बचा रह जाता है ।
मैंने हिम्मत बहुत दिखाई है
चेहरों की सिलवटों में हमने पढी हैं
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
सपनों का महल बनाते हैं
इतना तो होश है
वक़्त गुज़र जाता है
मस'अला तो मसर्रतों का है
बीते वक़्त को रोता है
उसीको हम देखते हैं
अहल-ए-करम देखते हैं
अक्लमंदी काबिलियत का नाम है
"बशर" खुद को धोका देता है
तुम्हारा येह जमाना नहीं है
अंदेशा ए फुर्क़त का मलाल आता है
भुलाने के काबिल हैं
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
जंग मनों के भीतर चलती है
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
तदबीर बताते हैं
पौधा सूख जाता है
ना हम को कोई शिकायत है
आजाद मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है
हबीब मेरे बेहद नाराज़ भी हैं
है कोई बशर फ़रिश्ता मग़र
'कविता'
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
झूमती है कहकशाँ
तरस गए हैं तेरे सुनने को मधु बैन
अवसर जो तेरे पास है
हैरत नहीं होती है
जानवर आदमी से प्यार करता है
लोग जवानी में मर जाते हैं
भोली सूरत बुलाती है वापस घर हमको
बस तू ही तू है ❤️
जिंदा रहना है
इतना सा ही तो फ़र्क है
दुश्मन तुम्हारे अंदर बैठा है
डरने जैसा कुछ भी नहीं है
अक्ल आती है ठोकर खाकर
फ़सादी के पास होता दीमाग आधा है
रुपय्या बचा कहाँ है
सच से परेशानी है
सब्र का फल मीठा होता है
ज़ीस्त है बशर जीकर जाएगी
तेरी मुस्कुराहट 😊
खुदको खोना पड़ता है
अपने हमसफ़र भी हम हैं
बशर तू कहाँ फिदा है
मुस्कुराहट का क्या राज है
शराब हदें भूल जाती है
जितनी बड़ी जंग होती है
तेरे दिल से मेरे दिल 💞💞
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
उधार की है ये जिंदगी
बहुत जल्द दूर हो जाते हैं
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
खो सा गया 😇😇
फ़ितरत हमारी है
कांटों में गुल खिलता है
महाशिवरात्रि
सूरत से भी बढ़ कर होता है स्वावलंबन
बताए तो सही हुई क्या है ख़ता हमसे
राब्ते निभाते भी हैं
तेरा नाम लिख दिया ✍️
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
और फिर वो भी सो जाते हैं
अनसुनी सदाएं रह जाती हैं
वफ़ा करने वाला तन्हा क्यूँ है
बदहालियों में भी ख़ुशहाल है
क़यामत की बारी है
कुछ भी बदल सकते हैं
बेटी के घर लाया गया है
हरबात जबानी पूछने लगे हैं
गैरों की कहानी पूछने लगे हैं
मसर्रतें हयात से ख़फा रहती हैं
अल्हम्दुलिल्लाह ❤️
हमने सबने ही खुदको मारा है
पथिक कि राह
हौसला मग़र है
जिंदगी लाजवाब है
जरा भी नहीं मलाल करते हैं
किरदार बड़ी चीज है
पीरी में सब साफ नज़र आता है
दुआसे बढ़कर दवा क्या है
खुदको नाशाद करता है
तू ही सही है
आसान नहीं है
फकीरों ने ✨✨
तन्हाई की ख़ामोशी से गुफ़्तगू होती है
बशर तेरी कहानी इब्रतनाक है
बाद-ए-आज कल भी होते हैं
इन्सान की रगों में खून काला बहने लगा है
मुकद्दर है 'बशर' का परेशाँ होना
ना सताया कर 🥹
आलिम सालिम फ़ाजिल का साथ है मंज़ूर
तीर्थ है इक सैर
हद होती है
मतलब निकल जाए तो कदर कौन करता है - sumit arya shayari - शायरी
बुराई में सियासत दिखाई देती है
परिंदे के दिल से कफ़स निकालना है
आईने से डरते हैं
इन्सानियत पर सबका अधिकार होता है
बेटा उसके लिए फ़रिश्ता है
तेरी नज़र पे है तू क्या देखता है मुझमें
पहूँच कोई नहीं रहा है
कुदरत का शाहकार लिए फिरते है
नींद को आने में देर हो जाती है
हम फिर भी सलामत हैं
ख़ामोशी से हमें डर लगता है
लोग अपने ऐब जिंदा रखते हैं
उलझने बढाना कौन चाहता है
आवाज़ वही है
आईने में मिलने वाला है
भीड़ बे-शुमार है
हौंसले काम आते हैं
भुलाये जा रहे हैं
ऊपर वाला सब देखता है
अकेले कैसे जिया जाता है
हयात इक ख़ूबसूरत ख़्वाब है
मैं साहित्य हूं भारत का
जिंदा ख्वाहिशों से जिंदगी की कहानी है
हम हैं कि मानते नहीं
वस्ल की उम्मीद बाक़ी है
बशर किताबी बातें कहता है
हिंदुस्तान नज़र आता है
राब्तों से राब्तों का विश्वास मर रहा है
है बशर तैयार
रात काटी जाती है
चांद का नूर 🌙
हर कोई आम खाना चाहता है
ज़हर पीना पड़ता है ग़म खाना पड़ता है
रातों की नींद गंवाई है
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
रातों की नींद गंवाई है
सामने वाले का कद छोटा दिखता है
सवाल तहज़ीबो-तमद्दुन का है
वो लड़की नहीं है वो एक तितली है
इसे समझाये कोई
मस्अला क्या है
पास आ रहा है
तुम,से है,हमें मोहब्बत, ये बात और है
गिरना फिसलना खुद को उठाना पड़ता है
फिर रहे हैं दर बद्दर, तुम, दर दर से पूछ लो
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
लौटेगा यकीन है वो जिद्द पे अड़ा हो, बेशक
वो अब पूछते हैं हाल, कमाल ही तो है
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
मदमस्त चली पुरवाई है
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
जिंदगी मुसलसल रहगुज़र है
आसमां से आती है मौत कैसे
आदमी परेशान रहता है
कोई भी चीज खास नहीं है
शिकवा है ना शिकायत
हमारी बेकदरी का है मलाल उनको
जीने केलिए मरना पड़त है
क़ीमत शय है ये एहसास
ऐतिबार कोई एक तोड़कर जाता है
हिम्मत बुलंद है जहां
जिंदगी क्या चीज़ है मौत से इंसान डरता नहीं
मेरे कुछ फर्ज़ है
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर
बेमिसाल है ये जात आदमी की
अदीब हो गया है
जिन्दगी इम्तिहान लेती है
अपना बेगाना पहचान लेती है.
मोहब्बत का रास्ता 💫
हुजूम दुश्मनों का हमारे अंदर है
भाईचारे से है हमारी हस्ती
दिल के काशाने में है
किरदार हमें हमारे कर्म से मिला है
दौलत से परखने लगे हैं
बिछड़ते हैं फितरते-अना और सवाले नाक से
तू बना दे 💫
मिटा देती है तीरगी
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
इंतज़ार की बातें महज़ किताबी हैं
पलमें सदियां जीकर जाते हैं
मुश्क़िल है जगह पाना लोगों के दिल में
ज़रूरत क्या है
हयात का आदमी अज़ीम किरदार होता है
हाथों की लकीर बनाकर रखती है
नहीं पता सच की कैसे सफाई देते हैं
चर्चे 😍
जीना ला-हासिल है
सोता ही नहीं है आदमी आठों पहर
जनता जनार्दन है बिखरी हुई
सही शख़्स ही मानता है
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में
जोर आता है निभाने में
ज़रूर कोई दम है
सच्चे अहबाब मिलना ख़ूबसूरत ईनाम है
शब -ए-ग़म बदनाम हो गई है
ज्यादातर बेबात सोचते हैं
मुकद्दर को बदलने की ख़्वाहिश रखते हैं
अपना घर तो अपना घर होता है
मेरा नाम नही 🥵
खुद के साये से भी हैं महरूम
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
दाल में कहाँ कहाँ काला है
नींद रात-भर आती नहीं है बशर
मजदूर दिवस
बुरे को दोज़ख भी कम है
खुदको जाना बना कलंदर है
खुशी के पास कामयाबी की कमान है
सुना दोगे तो मिट जाते हैं
हरहाल में हिट जाते हैं
वक़्त ए तकलीफ़ नज़र आते हैं
मनसे फ़कीर होना बड़ी बात होती है
व्यापकता असीमित हो जाती है
तहरीर कहीं नज़र न आई
आजमाइश उसूल-ओ-ईमान वालों की ही होती है
धुआं 🔥
अपना कहने को जी चाहता है
जंगल जोगी का ठिकना है
जीने के लिए मरना पड़ता है
बदल गया है जमाना हमारा
उम्मीद पर सारी दुनिया टिकी है
सपने देखना ज़रूरी है
फ़ितरत में होती है
इन्सान की औक़ात उसकी गैरत में होती है
सारा खेल लकीरों का है यार
भीतर से कितने रीते हैं हम
परेशान कर गया 💔🥀
इन्सान बस खुश रहा करे
ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की
रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
सुगम सरल डगर कहते हैं
मुश्क़िल है घरको घर करना
सियासत कमाल है
खुदको धोखा देना आसान है
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
हासिल सुकूने-क़ल्ब बहुत जहं होता है
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
बहुत कुछ खोना पड़ता है
अभी जिंदा मेरा बचपन है
बंदे हम काम आने वाले हैं
किरदार अमर कर जाते हैं
इन्सान है ना-फ़रमाँबरदार
वो मेरा है
आज किसी का दिल टूटा है
जमाने गुज़र जाते हैं तकरार में
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
मां की बदौलत हम हैं
दर-हक़ीक़त ये है कि मां की बदौलत हम हैं
जिंदगी बंद द्वार खोलने को तैयार है
बोलूं तो, बीते हुए काल-खंड से सीखा हैं.......
मिलती नहीं खुशी होती है
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
है शिफ़ा मग़र मां की दुआ में
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
बशर हैं सब अग़्यार यहाँ
माँ के हाथ का साया है
उनका क्या करें जो दिल में समाए हैं
ज़िन्दगी को ठहरा हुआ देखा है
उसके नहले पे दहले हैं
अभ्यागत"....तुम आए जब से, हो उदासीन.....
क्या है इरादा
बेमानी होने लगता है बारबार सुना गया भी
फ़क़ीरी तक पीछा करती हैं
बर्बाद ज्यादा हुआ बचा कम है
*भीतर बहोत उथल-पुथल मचाते हैं
शुक्र है सिर्फ़ महसूस करता है
जीवन" ओ तू जरा साथ तो चल.......
रोशन चेहरा तेरा ☺️
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
भूल गया है नाम मिरा
मुश्क़िल है उसकी पहचान
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
तुमने रुख़सार पर अपने ये जो तिल लगा रक्खा है
बाक़ी हैं कुछ किस्से अभी अनकहे
बचाने के प्रयत्न हज़ार करते हैं
बर्बादियों की ओर जाती हैं
मनों के मिलने से घर बनता है
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
कब्रें पड़ीं हैं खाली लाशों से भर कर
ख़्वाहिशों के रस्तों से उफ़क तक जाना है
भँवर से निकलना मुश्क़िल होता है
अपने घर में ही रहता है
अमीर लोग मदीना देखते हैं
सपने का प्रतिबिंब हृदय पर अब-तक छाया......
घरतो अपना घर है फिरभी मग़र बुलाता है
अपना ना रहे साथ तो याद आती है
जी रहे हैं
जायका चखने में कोई हर्ज नहीं है
पता उसको भी है अपनी जात का
गैरौं से कौन नाराज़ होना चाहता है
ये जिंदगी, जिंदगी नहीं है
अहबाब की पसंद का हो ख़्याल जहां कमाल वहाँ है
मतलब-परस्त लोगों का रिश्ता बेमानी होता है
ख़बर में आते हैं
किनारों से ही खिसकती है ज़मीन अक़्सर
रास्ते भी हैरान रह गए
जज़्बातों की उम्र हुआ करती है
हुनर ये मिलता है उसी को
फ़जूल हुआ स्कूल जाना
ज़िन्दगी बेज़ारी बेचैनी से लबरेज है
अपनी हैसियत ओ औक़ात याद रख
है पार करना भवसागर तैर कर
नेकी क़बूल हो गई है खुदा के घर
धोखे खाने का आदि जो हो गया है
ये तो दिलों का सौदा है बशर
तेरे बग़ैर जीकर मैंने क्या मरना है
ऐ मंज़िल मिरी रुक जा जरा
सुब्ह भी दोपहर लगती है
धर्म जात और परिवार की परवाह है
रूतबा उसकी पहचान नज़र आता है
तुझे लड़ना भी खुद है
अच्छा करूं यह मेरा धर्म है
बार -बार बुरा करे वो बेशर्म है
साथ अपनी कब्र लिए फिरते हैं
यादें हैं हर वक़्त पास थोड़ी हैं
इश्क़-ए-हिज्र ही अब मिरी इबादत हो गई है
आदमी अकेला है
इक ज़माना अपने आप में हर शख़्स है
बे-सबब बे-हिसाब रश्क है
आवाज़ को ख़ामोशी से समझा जा सकता है
मंज़िले-मक़्सूद कुछ नहीं है खाक के सिवा
येह सब सपने लगते हैं
मज़हब की क़ुरबानी जायज़ हो सकती है
चेहरे पे लगाते हैं चेहरे
चेहरे पे लगाते हैं चेहरे
अच्छे बुरे हालात होते है
पढ़े नहीं जाते हैं लिखे हुए अल्फ़ाज
रिश्तों का रंग घुलने में वक़्त लगता है
आप पर हमें ऐतबार है
कर्मों का ही सिला मिला है मुझे
तमाशाई सभी बवाल के हैं
पहुंचता कहींभी नहीं है
मनहूस जगह है जमाने केलिए
वही दूर हैं जो सबसे क़रीब हैं
मन में होना ज़रूरी है
भीतर बाहर जमाल ही जमाल है
ख़ूबसूरत रास्ता रहता है
आग बरस रही है आसमान से
जून की उसके नसीब में नहीं है
मदहोशी जैसे हो गए हैं
क़ुदरत हमारी तस्वीर ए हयात तराशती रहती है
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया
कलभी अपना है गर आज अपना है
हरकोई हरकिसी से बेगाना है
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
रूह फिर लौट आती है
जमाले-ख़्याले-मुसबत कमाल रखते हैं
जीत के क़रीब होता है
इसी का नाम नसीब होता है
जिंदगी मे क्या है
मैं ख़ुद डॉक्टर हूं" - यमुना
हिज्र-ओ-वस्ल का सिलसिला रहता है
रोटी भी तमाशा दिखाई देती है
कर्मों का असर किरदार पर दिखता है
चलने वालोंको ही मंज़िल मिला करती है
अपनों से जख़्म खाये हैं
चांद ही की ईद हो जाती है
चांद ही की ईद हो जाती है
तेरे बाद 💔
आने जाने के दरमियाँ ज़ालिम ज़माना पड़ता है
पता ही नहीं जिंदा हैं कि मर गए हम
वक़्तही कहां लगता है
खून पसीना बहाना पड़ता है
बदले हुओं से मिलने को तैयार नहीं हैं हम
जमाने को बदलने का कारण होते हैं
मुमकिन नहीं मुलाक़ात है
बेकाबू कर 🙏
खुदगर्ज लोग सिखा जाते हैं
पता ही नहीं कौन हबीब है कौन रक़ीब है
दुबारा कौन कमबख़्त चाहता है
आप खुद हैं
तुम में और मुझ में कौन है बेहतर?
चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की
सच तो सच होता है
वही तुम पर फिदा है
दोज़ख से कम नहीं हुआ करता है
हम उसकी ही फ़रियाद करते हैं
किसीको सहना अलग बात है
सलाहियत कम होती है
कानों में घोला गया ज़हर ला-'इलाज है
जितना ये सफ़र मेरा है उतनाही तेरा भी है
हम अपना विश्वास लिखते हैं
हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं
चाहने वाले ही शामिल होते हैं
नज़रिया हर कहीं बदल सकते हैं
बेरंग अपने 🥹
कुछ पल 🥹
अधूरी ना छोड़ो 🥀
रिश्ते निभाना अलग बात है
मिथ्या जगमें खो जाते हैं
खुशियाँ भी फिर मर जाता हैं
कुछ कदमों की ही हैं बात........
होता है स्वाभिमान
बुरे वक़्त से क्यूं घबराता है
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
इश्क़ 💔🥀
उभरे हम नहीं हैं
साफ़गोई वाले शख़्स बड़े दिलफेंक होते हैं
फुटपाथ मखमली बिस्तर हो जाता है
सबसे बड़ा सरमाया होता है
हरेला आने वाला है,
जोशो-जज़्बे का हुनर होता है @
भरोसा ही शिफ़ा है किरदार का
लोग अपना रंग दिखाने लगे हैं
सिफ़त हज़ार अवगुणों पर भारी है
अक़्सर दिल दुखाते हैं
नागवार वहम तिरा सरासर नाहक है
बिनआग के ही आग जला देते हैं
भगवान भी प्रतीक्षा में घर के बाहर खड़े हैं
खुदसे किनारा होकर भगवान को प्यारा हो जाता है.
ख़बर नहीं के वो मौत की क़तार में है
दीनो-ईमान वाले यहाँपर अक़्सर नाखुश रहते हैं
फरेबियों का यहाँ इंतज़ार करते हैं
वक़्त मुझे बताए जा रहा है
तू भी मेरी कमज़ोरी है
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
आसमानों तक साथ चलने की दुवा करने में लगे हैं
जूता ज्यादा साफ़ है
सारी क़ायनात बेकार लगती है
कमियाँ निकाल रहे हैं हमारे किरदार में
नाकाम मोहब्बत 🥹
अहसासों की नई नई मज़ार होती हैं
पांवोंतले ज़मीन होती है
ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है.
बस गया है एक उसी का नाम
पहाङी हूँ,पहाङ चढे-उतरे है,
वापस घर लौट कर भी जाना है
ख़ूबसूरत अनमोल और खास होते हैं वो लोग
जुस्तजू बाक़ी है
मुक़द्दर हर-पल लिखा जाता है
ग़लती देखने वाले की भी होती है
ना तो नाकाबिल औलाद हराम का खा खाकर शर्माती है! @"बशर"
औक़ात और गैरत का दर्जा क्या है
जेरो-ज़र पर नज़र रखता है @"बशर"
थक गए हैं आराम करते करते
बिन मुहब्बत गुजारा नहीं है
अच्छा चाल-चलन दिल में समा जाता है
क़ाबिलियत पर ग्रहण लग जाता है
मुश्क़िल काम में दिलचस्पी कमाल होती है
कोशिश करना ही मायने रखता है
घर के दीवारो- दर के दायरे में कैद है
साथ तन्हाई का ही बेहतर है
साथ तन्हाई का ही बेहतर है
मन नहीं भरता 🥰
नादानी में जिंदगी तन्हा होती है
जिस्मों से इश्क़ 🥀
आनेवाले हैं बहोत
कितने लोग वो देखते हैं जो उन से छुपाया जा रहा है! @"बशर"
चराग़ फिर भी जला करते हैं
हौसला हो तो आसमान कम पड़ जाता है
दिल ही सोने का है
अपने वालदैन की वज़ह से हैं
न हबीब का कोई पयाम है
उस से क्या जुदा होना
तू मिला हैं 🥹
शुक्रिया आपका 🥰🥰
Pehchano mujhe
मिसाल 🥀🥀
क्या बहिश्त में भी भूखे रहना पड़ता है
ज़िन्दगी जीने का नाम है कोई सजा नहीं
याद आते हैं
बुराई मिटाने से मतलब है
हम सब किराएदार हैं
मुसाफ़िरखाना संसार है
उम्र-ए-तमाम शब-ए-तन्हाई है
बात ही कुछ ऐसी है
आँखें दिखा रहा है
तुम हों 💖
चांद 🌙
इत्तेफ़ाक और कहीं होता है
तू दीवानी हैं 🥰🦋
कलम की ताक़त क्या है
उम्मीद से प्यार मर भी जाता है
तक़दीर से 🦋🙌
जी-तोड़ मेहनत मशक़्क़त करता है
एहसास
दम निकला हैं 🥀🥹
ख़ुश रहना बेहद आसान और सरल है
दिल पर कोई गहरी बात लग जाती है
पता किसीकी औक़ात लग जाती है
खुदा से भी नहीं डरता है
अपनी ज़रूरत तक अपनाते हैं
तालीम की ज़रुरत ही है!
जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है
वक़्त का काम है जवाब बताना
सरमाये लगते हैं
पराये होकर भी अपने लगते हैं
हैनहीं रिहाई की रज़ा तेरी
ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं
मसरूफ़ियां क़ीमती हैं
जननी
मुस्कुराना औरभी ज्यादा मुश्क़िल है
मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है
उठा रखा आसमान है
यादों का सफ़र
सफ़र की सूझती है
तुझे पहचानू मैं 🥹
हमको ही है नहीं ख़बर हमारी
सूरज भी उफ़क पर उतर आता है
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
लानत है औलाद की आलमगीरी में
लानत ओ ज़लालत है औलाद की शौहरत और अमीरी पे
भटक कर थक जाते हैं
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
उड़ी हुई है नींद हमारी वस्ल-ओ-मुलाक़ात में
आंखों में बड़े - बड़े सपने रखते हैं
बिगड़ी बात बन जाती है
कुछ हादसात भी ज़रूरी हैं
तुझ बिन दुनिया वीरान लिखते हैं
हयात ए डवाँ-डोल का मीज़ान लिखते हैं
चिंतन मनन वांछित से आधा हुआ है
घर में रह कर घर ढूंढता रहता है
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
इश्क़ हमारा 😇✌️
जगमगाता है अक़्सर घर बेटियों वाला
कोशिश की आस काम आती है
अक्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
'अक़्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
बचपन अक़्सर याद आता है
बचपन अक़्सर बहुत याद आता है
तेरे अहसास के मयकदे जाते हैं
गर्द ओ गुबार-ओ-गर्द बाक़ी है
इन्सान वही होता है
दिलजलों की कानाफ़ूसी और सरगोशियां खा जाती है
खाली हाथों ही आना पड़ता है
रुह ने भरी है परवाज़
शामोसहर गरीब के घर आम होती है
आईने को ज़रूरत नहीहै आईना साबित करने की
काबे में भी वही है काशी में भी वही है
याद सताती है
गुरु एक याचना है मेरी
औक़ात होना ज़रूरी है
"बशर" खुद फिर रोता है
प्यारा जहां में हिंदुस्ताँ हमारा है
ठोकरें खाता है उतनी ही ज्यादा अक्ल आती है
रेगज़ारों की हमने भी खाक छानी है
बिगड़ी क़िस्मत संवारी है
अपने आपसे भी रहता है नाराज़ आदमी
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
मंज़िल भी दूर है और वक़्त बहोत कम
उस्ताद-ओ-मोअल्लिम हमारे मां-बाप के बाद है
तिश्नगी बुझती नहीं सामने समंदर है
अपना हमदर्द समझते हैं
अक़्सर परेशान रहा करते हैं
पापड़ बिलवाती है
मलामतें बड़े-बड़ों को बेपर्दा बेनक़ाब कर देती हैं
सिरे चढाना अलग बात है
मंहगा पड़ता है उल्टी नाव खेना
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
जीना भी क़यामत है
हरशय फ़ानी है इस क़ायनात में
बाहर की दुनिया सारी खारा समंदर है
जान चली जाती है निभाते निभाते
तन्हा और दोस्तों संग वक़्त बिताने में फ़र्क होता है
गांव आजभी है दिल में मेरे बसा हुआ
दरिया के संग बहते हुए किनारें हैं हम
बच्चा बातें सारी आज समझता है
भीतर दिखाई भी देती है सुनाई भी देती है
भीतर दिखाई भी देती है सुनाई भी देती है
दर्दे-दिल ने बड़ा आघात भी सहा है
अपने पराये का पता लग जाता है
हज़ार किन्तु लगाये हैं इक हां के साथ
फ़ानी दुनिया में रखा क्या है
फूल झड़ना तो दूर पत्थर से बरसते हैं
लाजवाब लगता हूं 🔥🔥
अपनी रातें काली करनी पड़ती हैं
बंद कलियाँ खिलती हैं
अब जी चाहता हैं मेरा 🤐🤐
उनकी हैं मुंतज़िर कबसे हमारी आंखें
आशिक़ी अक़्ल के बोझतले दम तोड़ जाती है
आते हैं कैसे जाते है कैसे चांद सूरज और दिन-रात
पहचान अपनी बनानी पड़ती है
बेसबब जिंदगी बीती जाती है
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
मज़हब ही में मज़हब हो गया है
भोली सूरत के चेहरों पे मासूमियत ऐसी है
रुस्वाई की किस को फ़िक्र है
असामान्य काम को अंजाम देने के लिए तैयार करती है
वक़्त कहाँ है
इतनाकुछ करने को है
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
सुकूंन से बसर करना हमारे बस में है
आपके नाप के नहीं रहे हैं
उससे न जा सकाहै आजतलक कहीं कोई बचकर
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़माना क्या कम है रक़ाबत केलिए
ख़ुलूस से दुश्मन को भी अपना बनाया जा सकता है
हकीक़त पर शक है
दौराने-हिज्रे-ए-यार की बेपनाह याद आती है
शक्ल ओ सूरत उधार की ली हुई है
मोहतरमा 🤩
ख़ुद-दारी को अपना ईमान समझता है
झूठ सच लगता है
हसरतें कहीं जाती नहीं हैं
रास्ते निकल जाते हैं
शर्बत ए सुकूँ भीतर है बाहर खारा समंदर है
रंग ला रही है मेहनत इन्सान की
आईना सदा हक़ीक़त अयाँ करता है
अक़्ल के अंधों को कुछ नहीं दिखाई देता है
हम जीतकर भी हार जाते हैं
याद रह जाती है
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
वोह तबीब ओ हबीब तेरे हर मर्ज की दवा जानता है
दुनिया सारी हमारी आनी-जानी लगती है
माटी के पुतले को बनाने वाला कूज़ा-गर स्वयं भगवान है
चंद रोज की मेहमान है
बेज़ारी में कितना ही वक़्त गुजारा है
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
मेरे नुक़सान से तुझको नफा क्या है
जुदाई से हरसूरत वस्ले-यार बेहतर है
मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की
क्या मर्द अपने प्यार केलिए मर सकता है
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
कहीं पहूँच नहीं पाता है
जीना सियासत की बिसात है तो है
जा ही रहा है उसे भूल जाइए और जाने दीजिए
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
मरनेपे पता लगताहै क्या फ़र्क पड़ता है
कमाल के जां- ओ- जिगर रखते हैं
मुसीबतें खुशियों पर तारी रहती हैं
किरायेदार उस के मकान में है
खुद केलिए सच्चा रहने वाला दूसरों केलिए झूठा नहीं हो सकता
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
हमारी उनसे वस्लो-मुलाक़ात ही दवा है
पता ही नहीं लगने देते इस्तेमाल करते हैं के चाहते हैं
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
हमें इंतज़ार है इकत्तीस दिसम्बर आने की
हरबार हरजगह एकजैसे रहते नहीं हैं लोग
बच्चों की ज़िम्मेदारी है
मुस्कुराना छूट जाता है
फ़रियाद बाक़ी रहे जाती है
तुमसे जो प्यार कर बैठे हैं 😍
तस्लीम करनाही मुश्क़िल है
वो देखने की कोशिश नहीं की जो उससे छुपाया गया है
सदाओं में है ख़ामोशी
सदाओं में है ख़ामोशी
जो हमारे ख़्यालों में है हमारी तक़दीर में नहीं
कल था न आज है 'बशर' ये ज़माना आपका
तेरा भगवान राजी है
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
वो ना आने पर अड़ी हैं
हमको मालूम है जात-ओ-औक़ात हमारी
झूठ के पांव नहीं होते मग़र चलता खूब है
रक़ीब दूसरों के घर की रौशनाई से जलता खूब है
बनीहुई है हालत हमारी कंगाल की
वो समझते हैं कि दुनिया बपौती है उनकी
नहीं है मसला दाना-पानी दो जून का
मनोरथ जिनके कमज़ोर होते हैं
सोच और कर्म से हासिल की जाती है
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
ज़िम्मेदार है आदमी खुद अपने हाल का
अदावतों पर उतारू हो रहे हैं
सुनहरी हरशाम रुपहली हरसहर देखते हैं
फूल गुलाब का 🥀
अपने तुम्हारे कितने अपने हैं
इन्सां ने अपनी ज़मीं और घर बदला है
इन्सान कहाँ है
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
तेरी अदाएं 💕
मरने से ज्यादा ज़िंदगी सताती है
मुझे प्यार आता है तो बेशुमार आता है
इक कसक सी हयात में रह जाती है
बहाना है इबादत
मर मर कर जीना सरासर बेमानी है
हम नहीं दिखा रहे होते हैं अक़्सर वो हम होते हैं
अपने दांत भी जीभ को काट देते हैं
सब शौक़ ही मरने लगे हैं
एक निहायत अच्छा इंसान है
इन्सान का इम्तिहान हालात लेते हैं
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
मौसम के मिज़ाज बदल रहे हैं
उजाले उनको सताने लगे हैं
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
सनम 💓
बच्चे आजकल कब किसीको सजदा करते है
प्यार आया हैं 💓
खुद को हया आती है
अपने ही दगा दे जाते हैं
जीवन तेरा बशर बस इक सफ़र लगता है
लोग दिल वाले नहीं हैं
बोझ खाली जेबका इस क़दर भारी होता है
इन्सान ग़लत रस्तेपर चल पड़ता है अक़्सर
हयात मौका देती हैकि आप खुदको नया जन्म दे पायें
छोटी-सी है मुसाफ़िरत इन्सान की
उसी जगह के होकर रह जाते हैं
इन्सान सच्चा बिगड़ रहा है
बादल कभी टिकसका है आस्मानों में
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
हमको हमारा खुदा मिल गया है
किरदार जिंदा रहता है
इश्क़ में फरहाद को है सब क़बूल
अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए
किसीका इन्कार थोड़ा इसरार मांगता है
कहानी
हैप्पी वाला बर्थडे
रस्सी जल गई पर बल नहीं गया
हां मुझे बहुत डर लगता है..
अन्नदाता से.छल
निर्णायक मंडली
गुनहगार
पति परमेश्वर
माँ की सीख
बोलती प्रकृति
तेज़ धूप
"प" से "म" तक
सेतु,,,,,,कहानी भाग,,,1
एक बुरा ख्वाब
अनुभव
ये तो होना ही था
आपसी तालमेल
लोकल ट्रेन के डिब्बे के अनुभव
इंसाफ़ होता है
बीच का दरवाज़ा
आबोहवा
क्यूँ बुलाते चाय पर ?
देशहित
रूहानी रिश्ता
"वो है तो सही ना "
तुम बच्चे भी!
ठिठुरन
ख़ुद ही बिछ जाता है
ममतालय
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
पड़ोसी पौधे
पड़ौसी पौधे
बोलती प्रकृति
माँ बनती नहीं , होती है
जो बोया वो पाया
उस्ताद
निर्णय
पवित्रालय
पवित्रालय
परिवार
प से म तँक
भूतों का मेला
बावरा बंदा
जन्म जन्म का साथ है
होली दिवाली
श्राद्ध
मैं तारा बनूँगी
हाजी नाजी
नमस्ते इण्डिया
अभय दान
तुग़लकी फ़रमान
प्रेम की इति
हम सब एक हैं
मेरी माँ है न
बुढ़ापे का दर्द
एक डोर नाज़ुक सी
चाँद तेरे रूप अनेक
बुढ़ापे का दर्द
किलकारियां
किलकारियां
किलकारी
चाँद तेरे रूप अनेक
हसरत की हक़ीक़त
ऑटो
पाँती प्यार की
अबे ये तो अंधा है
वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन डे
अलविदा
अर्धांगिनी
हसरत की हक़ीक़त
इस घर में मां की ममता बसी है...
सेवा का मेवा
Indian हर जगह rock करते हैं।
टिप टिप बरसे पानी
मेरे साजन हैं उस पार
डाकिया
भूली बिसरी यादें
प्रभु तेरे रूप अनेक
पड़ौसी पौधे
कान्हा जी की छठ्ठी
मासूम बचपन
टिप टिप बरसे पानी
किलकारियां
मुझमें संस्कार है पर आप मैं नहीं???
हस्तिनापुर की कहानी
ब्रह्म नाद ऊं
अंतर
बन्नी मेरी अपटूडेट
हसरत की हक़ीक़त
दाग अच्छे है
हैपी mothers डे माँ
कभी खूशी कभी गम
ऐसा कौन आ रहा है
नीली चुनरिया
"विपन्न तिथियाँ"
"आधा मुनाफा"
और भी हैं राहें 💐💐
"बीजारोपण"
कठपुतली
"पलाश के फूल"
लालसा 💐💐
चिट्ठी आई है
"💐💐खाली क्षण "
पराई होती हैं बेटियां
" तुम्ही से शुरू तुम्ही पर खत्म"
"मीठी फांस "💐💐
ममतालय
" हवा में खुशबू "
"दिल दीवाना "💐💐
मुस्काते चेहरे
" अभी देर नहीं हुई है " 💐💐
"सिरीज़-मिनी " 💐💐
"बरसात की वो रात "💐💐
"हिप-हिप हुर्रे " 💐💐
खिचड़ी
ड्यूटी तो ड्यूटी है
" पकौड़े " 💐💐
" दो बेटों वाली मा " 💐💐
तिरंगी ड्रेस
ये क्या है
" जाति - भेद " 💐💐 भाग 1
Naak Kat Jaayegi
रिश्ते बन भी सकते हैं
करामाती नुस्खा
"खौली पास "डायरी के कुछ अंश
" यादें खट्टी-मीठी " 💐💐
" बाढ़ " 💐💐
" बड़े दिल वाला " 💐💐
" सुलभा-ताई "💐💐
तीसरा नेत्र
रिश्ते बन भी सकते हैं
तिरङगा हमारी जान
ये क्या है
बेटियाँ और नदियाँ
ये साँसे हैं हमारी
खो गया है मेरा प्यार
खिचड़ी
एहसास
अपनी अपनी ड्यूटी
छाह खो गई
" इतिहास " 💐💐
सफ़र वेन का
बस खट्टा मत होने दो
कल आज व कल
डर के आगे जीत है
कभी खुशी कभी गम
संग दिखाए रंग
विरासत
मेरे पापा
मिलन उत्सव
मील के पत्थर
अर्धांगिनी
हाँजी ना जी
लागा चुनरी में दाग
नाचो पर दूर दूर
" वो कौन है "💐💐
"नन्ही मिनी की रूमानी दुनिया " 💐💐
लिपटती लताएं
" अपना गाँव अपना देश " 🍁🍁
," शहर अच्छे हैं " 🍁 🍁
" बेबी चांदनी " 🍁🍁
" एक पिता ऐसा भी " 🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ...एक 🍁🍁
"महानायक"🌺🌺
"महानायक"🌺🌺
“पंजाब से आये हैं..”
दूसरा जनम
लिंसा-चिकोरी
लेख
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय अंतिम भाग
वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं विवाह
हार जीत
सोने का पिंजरा
प्यार क्या होता है?
मेरे नगपति मेरे विशाल
हिंदी क्या है
विदेश में हिंदी हिंदी का विदेश
किसी का कभी ना दिल दुखाउँ
पहला सुख आलसी काया
मुफ्तलाल, फोकटचंद्र.....
दुनिया का आखिरी इंसान
सच ही तो क्रांति है
क्या 1 लीटर पानी से पेड़ उगाया जा सकता है ?
ज़रा रुकिए जी
अति से बचे
वर्तमान समय में कन्या पूजन की सार्थकता
यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
सोने का पिंजरा
बिहार चुनाव :मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है
विजयादशमी का सामाजिक महत्व
चोका लगाया है
यै शायर नहीं शोषक हैं
भरोसे का बाज़ार
लोकल ट्रेन के एक्सपीरिएंस
संताड़ी/संताल/सांथाल जनजाति
भरोसा
सूर्योपासना का अनुपम पर्व: छठ महापर्व
" चाय भी क्या चीज़ है "
" चाय भी क्या चीज़ है "
आ अब लौट चलें
बेचारे अन्नदाता किसान
उपेक्षा/उपासना
पुस्तक परिचर्चा:कुंवर नारायण सिंह
उत्तर प्रदेश
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मेरा राज्य मध्य प्रदेश
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जय माँ तुलसी
क्रिसमस/ बड़ा दिन
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ढूंढा करते हैं तुम्हें
# मेरा शहर
जय किसान
#मेरा शहर
मेरा शहर
नव वर्ष पर मेरे संकल्प
लाभकारी व्यवसाय
तेरी साड़ी सफ़ेद क्यों ?
पतंग और हम
पतंग और हम
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भारत देश के त्यौहार
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