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भरोसे का बाज़ार - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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भरोसे का बाज़ार

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भरोसे का बाज़ार
भरोसा हो तो कोई कीमत मायने नहीं रखती एक सिक्का भी लाख टके का हो जाता है। कबीर की नगरी संत कबीर नगर के नरायनपुर पशु बाज़ार में लाखों के कारोबार की गारंटी वाला यह सिक्का चलता है। यह अनूठी परंपरा 7 दशक से जारी है। नरायनपुर पशु बाज़ार में संत कबीर नगर के नहीं आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में किसान पशुओं की खरीद बिक्री के लिए आते हैं। 25 एकड़ में यह निजी बाज़ार हर गुरुवार को लगता है। खरीद की बातचीत से पहले खरीददार पशु मालिक को एक सिक्का देता है जब तक यह सिक्का उसके हाथ में है, कोई तीसरा हस्तक्षेप नहीं कर सकता। सौदा नहीं पटा ,तो सिक्का वापस ,पट गया तो शाम तक कीमत अदा कर ग्राहक सिक्का वापस ले लेता है। इस बीच वह इसी सिक्के की गारंटी पर मेले में उसी पशु को बेच भी सकता है। जब तक किसान को धनराशि नहीं मिल जाती, पशु को बाहर ले जाने की अनुमति नहीं मिलती।
कोरोना संक्रमण काल से पहले यहां 8000 से अधिक पशु आते थे। व्यवस्था के लिए भूमि मालिक प्रति पशु ₹200 लेते हैं। पशुओं के लिए पानी, लदान और सुरक्षा की व्यवस्था करते हैं। जिला पंचायत को सवा लाख रुपए राजस्व भी मिलता है। 2013 से बाजार गुरुवार को लग रहा है इससे पहले रविवार को लगा करता था।
1949 में साधु शरण मौर्य ने 25 पैसे के सिक्के से इस परंपरा की नींव डाली।उनका उद्देश्य पशुओं के कारोबार में धोखा घड़ी खत्म कर सही कीमत और भरोसा बनाना था।उनका प्रयास सफल रहा। यहां भरोसा नहीं टूटता।अगर कोई तोड़ता है तो जुर्माना लगाकर उसका बाज़ार में आना प्रतिबंधित कर दिया जाता है।यह विश्वास ही है कि कोरोना काल में भी हर सप्ताह 2500 से अधिक पशु यहां लाए जाते हैं।

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