कवितागीत
रक्षाबंधन
अमर प्रेम की स्वर्णिम गाथा,
ये राखी का त्यौहार है।
सबसे पावन, सबसे न्यारा,
ये भाई-बहन का प्यार है।।
बांध के डोर कलाई में,
माथे पर तिलक लगाती है
लगे वीरन को उमर हमारी,
बेहना दुआएं देती है।
भाई की हरदम रक्षा करता,
ये चमकीली तार है।
मोल नहीं इस बन्धन का,
ये है कच्ची डोर नहीं।
रखवाला लाज की बहना के,
भाई है कोई और नहीं।
यह तो ऐसा अनुपम नाता है,
जिस पर बलिहारी संसार है।
पता है कीमत उस भाई को,
जिसकी न कोई बहना है।
मैं नहीं कहता हूँ इसको,
ये सारा जमाना कहता है
दूर रहे या पास हो बहना,
भाई के घर का श्रृंगार है।।
जयप्रकाश श्रीवास्तव
24-8-2023