कहानीलघुकथा
शीर्षक -अनुभव
मेरे पिता की मृत्यु के पश्चात , मां अकेली हो गईं। मैं इकलौती संतान हूं। मेंरे विवाह को दो वर्ष ही बीते थे कि पहाड़ टूट पड़ा। मेरे पति बहुत नेक इंसान हैं, उन्होंने मां से आग्रह किया कि वे हमारे साथ ही रहें।वे मान गई और हम उन्हें अपने साथ ले आए।
अगले वर्ष मैं उम्मीद से थी। मैं निश्चिंत थी कि मां हैं,मुझे सलाह देने वाली ।दोस्तों से मैने कहा, मां सब संभाल लेंगी। मां ने कहा, मैं और औरतों की तरह तुम्हारे बच्चों का बोझ नहीं उठाऊंगी। मैंने अपने बच्चे पाल लिए, मेरा अपना भी जीवन है, और मैं उसे भरपूर जीना चाहती हूं।सुनकर मुझे बुरा नहीं लगा। मैं भी चाहती थी मां वह सब कुछ करें जो वे अब तक नहीं कर पाई थीं।किन्तु बच्चों के लिए बोझ शब्द.....वे ऐसी तो न थीं !
वर्ष बीते उनमें कोई बदलाव नहीं आया। वे अपने तक सीमित रहतीं।मेरे तीन बच्चे हुए। दो बार जब मुझे उनकी मदद की बहुत सख्त जरूरत थी ,मेरी दो मेजर सर्जरी हुईं, तब बच्चों की देखभाल करने के लिए मुझे उनकी सचमुच ही ज़रूरत महसूस हुई। इन दोनों अवसरों पर उन्होंने मुझे लगातार जताया कि उन्हें कितनी परेशानी से गुजरना पड़ा ,मेरे बच्चों ने उन्हें कितना तंग किया ,वे पूरा समय रोते हैं ,और यह कि अब बच्चों को संभालना उनके बस का नहीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मैं आइंदा उनसे उम्मीद न रखूं।
इन बातों को बरसों बीत चुके हैं।अब
मां बूढ़ी हो गई हैं । वे अपनी खुद की देखभाल नहीं कर सकतीं ।अब मैं उनकी देखभाल करती हूं।
यहां तक कि उन्हें चलने - फिरने के लिए भी सहारे की जरूरत होती है।
अभी कुछ दिन पहले मां ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा कि, उन्हें महसूस होता है कि मेरे बच्चे उन्हें पसंद नहीं करते, खास करके मेरी किशोर बेटी तो उनसे कभी बात भी नहीं करती।
मैंने अपनी बेटी से बात की ,बेटा तुम्हें कुछ समय नानी को देना चाहिए,उनसे बातें करो,हंसी मज़ाक करो। बेटी ने साफ शब्दों में कहा, मां ,मैं नहीं जानती कि नानी का प्यार क्या होता है ।उनसे हमें कभी भी स्नेह और ममता नहीं मिली।मेरे लिए वे एक अजनबी से अधिक कुछ नहीं।मगर उनकी इज्जत और उनकी देखभाल उसके लिए आप निश्चिंत रहें,वह हमारा कर्तव्य है हम पूरा करेंगे,मगर...
मेरे बच्चे जिन्हें उन्होंने बोझ कहा था.... वे उनकी देखभाल करना अपना कर्तव्य मानते हैं,काश उन्होंने अपने नाती - नातिन को बोझ न समझा होता !
मेरे बड़े बेटे का अपना कारोबार है।वह अत्यंत व्यस्त रहने के बावजूद भी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कोताही नहीं करता ।
दूसरा बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर है। दोनो शादीशुदा , खुशहाल जीवन जी रहे हैं। वे दोनों बहुत ही होनहार हैं, शानदार हैं। वे दूसरों की इज्जत करते हैं। हम सब एक ऐसा परिवार हैं,जो एक दूसरे के लिए जीता है। मेरे बच्चे, मेरे पति, मेरी मां मेरी दुनिया हैं।ऐसा हम मानते हैं।मेरी मां नहीं।
वे अपने को बिल्कुल अकेला मानती हैं। मैं भरसक उनकी देखभाल करती हूं ।उन्हें परिवार के हर उत्सव में शामिल करती हूं ।मेरे बच्चे उनके साथ विनम्रता से पेश आते हैं ।उनकी इज्जत करते हैं। मगर वे अभी भी अधिकतर समय अकेले बिताना पसंद करती हैं।
मैं चाहती हूं कि कोई भी अपने बच्चों को अपने माता पिता या सास-ससुर के हवाले तभी करें जब वे उनकी देखभाल करना बोझ न मानते हों। मैंने इस अनुभव को
जीया है,मेरे बच्चों ने महसूस किया है। मैंने कहा ना, वे उनकी इज्जत करते हैं, मगर उनसे प्रेम नहीं करते ।उनसे लगाव महसूस नहीं करते।
बच्चे वही करते हैं, जो देखते हैं ।बच्चे वही देते हैं, जो पाते हैं। मैंने इस जीवन को जीया है,अनुभव किया है।