कविताअतुकांत कविता
मेरे आम के पेड़ पर अब आम नही लगते।
ना ही कोई चिड़िया बैठकर चीं चीं करती है।
कोई कोयल भी नही कूकती अब
बांसुरी बजाने वाला भी नही रहा कोई।
वो खाट बिछाकर बाबा ताया के हुक्के की गुड़गुड़ भी नही सुनाई देती।
अब बच्चे भी आम की डालियों पर नही झूलते
उस आम के पेड़ के बराबर में नीम का पेड़ भी था।
उस जगह बस अब एक गड्ढा बच्चा है।
अब मेरा आम का पेड़ बिल्कुल अकेला हो गया है।
पर उस पर आम अभी भी लगते हैं।
इस इंतज़ार में की कोई सड़कर गिरने से पहले उन्हें अपनी टोकरी में जमा कर लेगा।
पर उसे क्या पता अब आम की गिनती होती ही कहाँ है।
अब तो पढ़े लिखे अनपढ़ का जमाना है। जो बीस के बाद ट्वेंटी गिनते हैं।
और बिल्कुल आम के पेड़ की तरह हो गए हैं।
जिनके पास आम हैं लेकिन उन्हें प्रयोग में लाने वाला कोई नही।
बिल्कुल सही कहा है नेहा ने। आम तो बस आम ही हैं। - नेहा शर्मा