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कवितानज़्म
महंगी है दाल उसमें दाने काले हैं बहोत निवाले हैं कम और खाने वाले हैं बहोत! शबो -रोज तंगी वाले कैसे निकाले कोई निकालें हैं बहुत पर आनेवाले हैं बहोत! © 'बशर' bashar بَشَر.