कवितालयबद्ध कविता
यादों का सफर
कभी कभी, फुरसत के पल में
कुछ यूं बिचरे लम्हे याद आते हैं।
आंखों में भर आती हैं वो बातें,
पुरानी यादों के धूल उठा जाती हैं।
कोई कसक मन में चुभती है,
कई दर्द सरेआम रोने को दिल करता है।
फिर होंगी साथ वो शामें,
खुशियों की वो चादर,
गम जो थे हमारे हिस्से,
वो भी बन जाएंगे यादों के किस्से।
बारिश की बूंदें, चांद की मुलाकातें
हमने संजोई थी जो सपने उसमें
शिकवे शर्तें हमारी होंगे जितने
उनमें बढ़-चढ़कर यादों के बादल घिरेंगे,
फिर भी ये बेबस बरस ना सकेंगे।
फुर्सत मिली जो, आएंगे यादें,
न संभलेंगे हम फिर, बिखर भी ना सकेंगे।