Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
सफ़र की सूझती है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सफ़र की सूझती है

  • 11
  • 1 Min Read

धंधा अगर मंदा हो तो इधर उधर की सूझती है
धंधा जोरों पर हो तो थककर घर की सूझती है

धंधा अगर मधम हो तो मनोरंजन की सूझती है
धंधा गर चौपट हो तो फिर सफ़र की सूझती है

© dr. n. r. kaswan 'bashar' بشر

1663935559293_1726246329.jpg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg