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कवितानज़्म
सोच अल्फ़ाज और तिरी आवाज़ ख़ामोश होगए हैं सबकेसब आज अभी अभी बेज़ान हुआ है ज़िस्म अभी अभी रुह ने भरी है परवाज़ © "बशर" بشر