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आगरा
महाभारत काल का आगरवन कालांतर में आगरा कहलाया।
आगरा बहुत समय तक मुगलों की राजधानी रहा इसलिए यहाँ कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण हुआ,जो आज देश की धरोहर हैं।
आगरा दर्शनीय स्थलों में से एक है,यहाँ ताजमहल के अलावा,एत्माद्दौला, फतेहपुर सीकरी, आगरा का किला,जामा मस्ज़िद, चिनी का रोज़ा,मोती मस्ज़िद,बीवी का मकबरा,अकबर का मकबरा,सिकंदरा आदि अनेकों दर्शनीय स्थल हैं।
आगरा का सबसे प्रसिद्ध आयोजन है, ताज महोत्सव। इसका आयोजन 18-27 फरवरी के बीच होता है।
इसका उद्देश्य रचनात्मक कला एवं कलाकारों को बढ़ावा देना है और उनके संबंधित कौशल के प्रदर्शन में उनकी सहायता करना है। देश के कला, शिल्प, संस्कृति, भोजन और परंपराओं के विभिन्न प्रकार यहां प्रदर्शित होते हैं। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों द्वारा शास्त्रीय / अर्द्ध-शास्त्रीय / बॉलीवुड / लोक संगीत और अन्य पारंपरिक प्रदर्शनों का आयोजन इस समारोह में होता है। लखनऊ से चिकन के कारीगर, भदोही से हस्तनिर्मित कालीन बनाने वाले, सहारनपुर से लकड़ी पर नक्काशी करने वाले, खुर्जा से प्रसिद्ध मिट्टी के बर्तन, वाराणसी से सुंदर रेशमी साड़ियाँ, राजस्थान का सपेरा नृत्य, उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध नौटंकी और महाराष्ट्र का लावणी नृत्य सभी अपने उत्कृष्ट काम को प्रदर्शित करने के लिए यहाँ आते हैं।
दशहरे से पहले प्रतिवर्ष यहां राम बरात का आयोजन किया जाता है। इसे 'बरात' या भगवान राम के विवाह जुलूस के रूप में मनाया जाता है। सीता का महल 'जनकपुरी' एक स्थल पर स्थापित किया जाता है जहां 'बरात' आती है। जुलूस का मुख्य आकर्षण है रंगीन और सजी हुई झाँकियाँ।
आगरा के बाहरी इलाके में कैलाश मंदिर में भगवान शिव के सम्मान में कैलाश मेले का आयोजन किया जाता है। अगस्त या सितंबर के महीने में श्रावण माह के तीसरे सोमवार को आयोजित यह भगवान शिव के शुभ दर्शन को 'लिंगम्' के रूप में दर्शाता है। आगरा और आसपास के इलाकों से बड़ संख्या में भक्त इस मेले में शामिल होने के लिए आते हैं।
यहां का शीतला मेला एक पारंपरिक मेला है जो जुलाई में आगरा के निकट मौ सड़क पर होता है।इस मेले को बच्चों के लिए एक छोटा सा आनन्दोत्सव भी माना जाता है।
यमुना नदी के किनारे और ब्रजक्षेत्र के समीप होने के कारण यहाँ की भाषा मुख्य रूप से बृजभाषा ही है किंतु राजस्थान के समीप होने के कारण खानपान पर बृज व राजस्थानी प्रभाव अधिक है।यहाँ के भोजन में तलाभुना और तीखा मसाला होता है।बेडई ,खस्ता कचौरी, बरूले के अलावा यहां के पंछी का दालमोठ-पेठा बहुत प्रसिद्ध है। इसका भारी मात्रा में निर्यात भी होता है। पेठे भी इतने प्रकार के की गिने ना जा सकें।
आगरा में हस्तशिल्प बहुत ही प्रसिद्ध है। यहाँ संगमरमर के पत्थरों पर सुंदर आकृतियाँ उकेरी जाती हैं। गहने, तोहफे एवं अन्य चीजों को सुरक्षित रखने के लिए कुछ विशेष प्रकार के बॉक्स बनाए जाते हैं। जरदोजी से बनाए गए कपड़े पर्यटकों के मध्य बहुत ही लोकप्रिय हैं। सदर बाजार, किनारी बाजार, राजा-की-मंडी में विभिन्न प्रकार की आकर्षक और मनोहारी चीजें देखी जा सकती हैं।
यहां का दयालबाग मन्दिर भी बेजोड़ हिन्दू वास्तुकला का प्रतीक है।इस मंदिर को राधास्वामी पंथ के सातवें गुरु साहेब जी ने शहतूत का पेड़ रोप कर नींव डाली थी।इस मंदिर के निर्माण में वर्षों लगे।
पूरा दयालबाग एक कस्बे के बराबर है।दयालबाग में यूनिवर्सिटी , इंजीनियरिंग कॉलेज भी है।
आगरा चमड़े के काम के लिए मशहूर है।यहाँ के बने जूते-चप्पल बांटा कम्पनी में भी जाते हैं और विदेशों में भी निर्यात होते हैं।जूतों के अलावा अटैची,बेल्ट आदि भी बनती हैं।
मुग़ल बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण यहाँ की संस्कृति भी गंगा-जमुनी तहज़ीब की है।
यह प्रसिद्ध शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की यह जन्मस्थली है।इनके अलावा नसीर अकबराबादी, चांद अकबराबादी आदि कई शायरों की जन्म व कर्मस्थली है आगरा।