कविताअतुकांत कविता
हिस्सा तुम ही तो थे मेरा
फिर क्यों बंटने की बात की।
देखा है कभी
जमीन और आसमान को
दोनों अलग - अलग दिखते हैं।
दिखते हैं ओर - छोर मिलते हुए
पर मिलकर भी मिलते नही।
तुम्हे क्या चाहिये यह तो सब जानते हैं।
मुझसे पूछो मुझे क्या चाहिये।
आत्मिक शांति
इन सबसे परे
बिल्कुल इस खुले आसमान की तरह
सुनो मुझे धरती के बारे में बात नही करनी
यह तो बेवफा है
मिलती ही नही कभी आसमान से।
हाँ तुम्हारी तरह है यह भी
बहुत सा शोर लिए। - नेहा शर्मा ©