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कवितानज़्म
तूफ़ाँ गुज़र जाते हैं लहरें थम जाती हैं ज़लज़ले रुक जाते हैं ठहरने का मज़ा भी तभी है जब हम भटक कर थक जाते हैं @"बशर"