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भटक कर थक जाते हैं - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

भटक कर थक जाते हैं

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तूफ़ाँ गुज़र जाते हैं लहरें थम जाती हैं ज़लज़ले रुक जाते हैं
ठहरने का मज़ा भी तभी है जब हम भटक कर थक जाते हैं
@"बशर"

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