कविताअतुकांत कविता
हाँ हम सब आम हैं।
हम सभी उन गलियों से निकले हैं
जहां आम की गुठलियों को सफेद होने तक खाया जाता
जहां गर्मियों की छुट्टियों में नानी के घर जाने की शिकायत लगाई जाती।
सर्दियों में बड़े स्वेटर को मोड़कर पहना जाता।
यह सब आम लोग ही तो करते हैं।
हाँ हम सब आम ही तो हैं।
शनिवार को स्कूल की छुट्टी के वक़्त खुश होते हुए घर आना।
बारिश में गंदे पानी मे जूते चप्पल लेकर छप छप करना।
त्योहार पर मिठाई बनाते वक्त माँ से छुपकर मिठाई खाना
माँ का ये कहना कि मिठाई भोग के बाद ही मिलेगी। झुठन मत फैलाओ।
स्कूल न जाने के लिए बहाने बनाना
यह तो हम सबने ही किया है।
फिर हम आम ही तो हैं।
खास कबसे हुए?
नल की हत्थी को गिनकर पानी भरना।
सबसे बोरिंग काम से बचकर निकलने की कोशिश में नाकाम होना।
और यह सब पढ़कर बचपन में घूम आना।
हम आम लोगो ने ही तो किया है।
बड़े होकर बचपन को भूल जवानी में कदम रख तो दिया।
आम से खास होने का नाटक कर तो लिया।
पर छोटे छोटे सामान पर बारगेनिंग आज भी करना
टेंशन में आने पर नाखून चबाना या घर के चक्कर लगाना।
मुसीबत आने पर भगवान को याद करना।
आम आदमी ही तो करता है।
हाँ हम सब आम है एक दूसरे की नज़र में।
खास बस ईश्वर है जिसने हमें बनाया।
फिर क्यों हम सब एक दूसरे को नीचा दिखा रहे हैं।
क्यों एक दूसरे से राज छुपा रहे हैं।
क्यों जिंदगी को कठिन बना रहे हैं।
और क्यों एक दूसरे से ऊपर उठने की होड़ बना रहे हैं।
आखिर आम हैं तो आम ही रहो ना। - नेहा शर्मा