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यादें - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

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यादें

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' यादें '


वर्तमान को अतीत में बदलते देर नहीं लगती. यह जीवन का एक सत्य है.

प्रायः, हमें लगता है कि जैसे हमारे पास बहुत समय है.

प्रतीत होता है समय, बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है.
दिन, महीने, ऋतु परिवर्तन, वर्ष के विभिन्न त्योहार क्रम से आते-जाते रहते हैं, किन्तु वर्ष बीतते भी देर नही लगती..

नया साल दस्तक दे देता है..

बहुत जल्दी ही समय व्यतीत होता चला जाता है..!
शैशव, बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था.. और फिर, वार्धक्य का प्रारम्भ..! यही जीवन का क्रम है..


बचपन में माता पिता हमारा पालन पोषण करते हैं.
स्कूल, कालेज की शिक्षा.. नौकरी, विवाह आदि, समय धीरे-धीरे बढ़ता रहता है.

एक समय पर हम अनुभव करते हैं कि बीते समय की यादें ही हमारे पास शेष बची हैं..!

उन्ही यादों के सहारे जीवन आगे चलता रहता है.
हम अपने माता-पिता के साथ बीता समय याद करते हैं. अक्सर जीवन का एक बड़ा समय हमें उनके बिना जीना पड़ता है..!

बच्चे, जो प्रायः, अध्ययन के लिए और फिर जीविका के लिए घर से बहुत दूर चले जाते हैं. कभी दूसरे प्रदेश, कभी सुदूर - विदेशों में, उनके परिजन और वे स्वयं, यादों के ही सहारे एक दूसरे से जुड़े रहते हैं.


यादें ही हैं जो शायद सदैव हमारे साथ बनी रहती हैं. जब तक स्मृति शेष है..!!

हमारे कुछ अपने, परिचित मित्र, बन्धु -बान्धव, जो अब इस संसार में नहीं हैं, हमसे यादों के माध्यम से ही जुड़े रहते हैं.

बहुत सी यादें अच्छी होती हैं. , किन्तु कुछ दुखद यादें भी होती हैं..


मनोविज्ञान का एक तथ्य है कि हमारा सब - कांशस मन दुखद स्मृतियों को भुलाने की चेष्टा करता है..
कभी-कभी जीवन में समायोजन के लिए यह आवश्यक भी होता है.

प्रायः यादें ही, कभी-कभी हमारे जीवन का सम्बल बन जाती हैं. यादें ही ऐसी हैं, जिन्हें हम से कोई छीन नहीं सकता..! यही हमारे पास शेष रह जाती हैं.

यादें, निस्संदेह हमारे लिये बेशकीमती हैं.



कमलेश वाजपेयी

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