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एक बुरा ख्वाब - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

एक बुरा ख्वाब

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एक बुरा ख्वाब 
सब सो रहे हैं, ये, वो, इधर- उधर सब सो रहे हैं,ये क्या हो रहा है ?
पूरा जगत सो रहा है ! मैं जगाना चाहता हूं।अरे बहरो, अंधो,गूंगो उठो। तुम्हें बताना चाहता हूं,वह जिसे तुमने इतनी आसानी से ख़तम कर दिया, उसे बनने में क्या क्या कुर्बान हुआ था।मां ने अरमानों से नौ महीने उसे गर्भ में सहेजा था।अपनी कम उसकी अधिक सुरक्षा की थी।जब नन्हीं परी ने इस दुनिया में आंखें खोली,बाबा ओसारे से अंगना तक नाच रहे थे।

उसकी शिक्षा के लिए मां ने अपने सारे ज़ेवर बेचे दिये थे। पिता ने रात दिन ओवरटाइम किया था। अपनी बीमारी को छुपाया था। सूख कर कांटा हो गए थे। अपने लिए कुछ खरीदा हो ,याद नहीं पड़ता। कभी वह ज़िद्द करती तो कहते, तू डॉक्टर बन जाएगी, तब खरीद कर देना।
उसने भी दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा और मां- बाबा के सपने को पूरा किया।
आज उसकी डिग्रियां भीगी हुई हैं उसके खून से, और यह देश नींद में ग़ुम है! जगाना चाहता हूँ इसे,हां, झिंझोड़ कर जगाना चाहता हूं।उस अकेली पर चार -चार हैवान टूट पड़े हैं।
फूल सा जिस्म राख़ में तब्दील करने जा रहे हैं। क्या तुम्हारे कानों के पर्दों तक उसकी मर्मांतक चीखें नहीं पहुंच रहीं? हवस.... इतनी हावी ?
कसूर क्या है उसका ? यही की वह एक लड़की है? क्या तुम्हारी मां लड़की नहीं , या कि तुम्हारी बहन नहीं ? छोड़ दो, मत करो, तार-तार उसकी अस्मत को,मत फूंको उनके अरमानों को जो उस से बंधे हैं,घर पर उसकी राह तक रहे हैं। !!!
 उठो जागो।
ओह! एक बुरा खराब था!
मेरे देश में तो नारी की पूजा की जाती है!!

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दादी की परी
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