कहानीलघुकथा
कभी ख़ुशी कभी गम*
वर्तमान आभासी संसार की देखादेखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक मीट में आदेश निकाल दिया, "सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। "
माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए ? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं, " बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को।
उनको याद कर मेरी रूह काँप जाती है। कितना नुक्सान किया मैंने जन धन का। "
ताप्ती फ़टाफ़ट चम्बल गम्भीर आदि बहनों को याद दिलाती है। नटखट रेवा को सब दिलासा देती हैं, " देखो दीदी , अब आपका निर्मल जल व्यर्थ नहीं जा रहा है। अरे आप तो अब गुजरात की प्यास बुझाकर साबरमती का सहारा बन गई हो, इसी बहाने। और कई पड़ोसियों की भी ललचाई नजरें तुम पर हैं। हमारी सिंधु बहन पर पूर्व ही कब्ज़ा जमाए बैठे हैं।"
तभी महाकाल की प्यारी नन्हीं क्षिप्रा आ टपकती है, " मैं बहुत गुस्सा हूँ आपसे दीदी। ताप्ती दी ने सब बता दिया है मुझे। आप भले छुपाती रहो। आपने मुझे उज्जैनी आकर रोगमुक्त किया। और पुनः श्रृंगार कर दिया। सरकार द्वारा हम सब को सुविधानुसार मिलाया जा रहा है। अब तो दुःख भरे दिन बीते रे बहना। "
ताप्ती सबको चुप कराती है, " दीदी गंगा माँ को ज़रूरी बात करनी है।"
नर्मदा आँसू पोछ संयत हो सुनती है। माँ कहती हैं
हैं, " बिटिया, मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। मैं तो समझती थी, तुम ह्रदय प्रदेश को सम्भाल रही हो। अपनी मौसी ब्रह्मपुत्रा के बारे में सोचो ज़रा, कितनी जहालतें सहती हैं। मुझ मैली को राम देख रहे हैं ना। तुम्हारे सिर पर तो मेरे राम के इष्टदेव का हाथ है। अच्छा सोचो तो सब अच्छा ही होगा। और हाँ, एक खुशखबरी ध्यान से सुनो। कोलकाता में मेरी एक उपासक,भवानी सी अपनी फ़ौज लिए जुटी है। वह एक दिन हमारे गम घटाकर खुशियों में चार चाँद अवश्य लगा देगी।
अच्छा , अब तुम सब सुकून से सो जाओ। ये रातें ही तो राहत की लोरी गाती है, हमारे लिए।
इधर नेट भी ज़रा कमज़ोर हो रहा है। " गंगा मैया ने सबको आश्वस्त किया।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित