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कान्हा जी की छठ्ठी
"मां,इस बार हम बुआ के घर की कान्हा की छठी की धूमधाम नहीं देख पाएंगे,न ?" नन्हें कौस्तुभ ने मृणालिनी का आंचल खिंचते हुए पूछा।
मृणालिनी भी कल से यही सोच- सोच कर उदास थी। अपने घर मना नहीं सकते ,कोरोना की वजह से कहीं जा नहीं सकते। बरसों पहले इसी दिन बाबा गुजर गए थे।कौस्तुभ की बात पूजाघर में बैठी सरिता जी ने भी सुनी एक निर्णय लेकर उठीं।
" जिस तरह बुआ के घर कान्हा की छठी मनाई जाती है और नामकरण किया जाता है ,ठीक उसी तरह हम भी मनाएंगे।"
"मगर मांजी,इस दिन ...."
"हां,हां जानती हूं हम इस दिन उत्सव नहीं मना सकते मगर भक्तिभाव से कान्हा की पूजा तो कर सकते हैं। उनका नामकरण तो कर सकते हैं।"
"अब अगर मगर कुछ नहीं,कान्हा की छठी है,घर में कढ़ी चावल का प्रसाद बनाने की तैयारी करो।"
"क्या कह रही हैं मां.."
"चलो,कौस्तुभ कान्हा जी का मोरपंख देखो मंदिर में कहां है?
बहु, ठाकुर जी को पहले पंचामृत से फिर शुद्ध जल से स्नान कराना होगा,नीरज कहां है? राजीव बेटा,शंख से गंगाजल द्वारा भगवान को स्नान कराओ।मेरा कौस्तुभ कान्हा को मोर पंख का मुकुट पहनाएगा और स्नान करने के बाद तो आज कान्हा को पीले रंग के वस्त्र पहनाएंगे और उनका पूरा शृंगार करेंगे। "सब प्रफुल्लित हो कर मां का यह रुप देख रहे थे।
"दादीजी,बुआ श्रृंगार के बाद कान्हा को मिश्री और माखन का भोग लगाती थीं, इसके बाद कान्हा का नामकरण करती थीं।"
"हां, हां सब कुछ ठीक वैसे ही होगा। इसके अलावा जो तुम्हारी बुआ को नहीं पता वह है,ठाकुर जी को अपने घर की चाबी सौंप देना..."
"चाबी सौंपी देना..!सब एक साथ चौंक उठे।
"हां, चाबी सौंपी देना और उनसे प्रार्थना करना कि, अब आप ही इस घर के स्वामी हैं। घर पर आपका स्नेह और कृपा सदैव बनी रहे।"
"हम कीर्तन भी करेंगे ?"
"हां, कीर्तन भी और ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप भी,इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।"
"बहु, तुम तो मेरे कौस्तुभ को कान्हा जी की तरह सजा दो,आज हमारे इस कान्हा की वजह से ही तो हम इस अवसर को मना रहे हैं।वो क्या कहते हैं सोशल मीडिया पर फोटो भी तो डाल देना।"मृणालिनी मुस्कुरा दी, सबने ठहाका लगाया,"हमारी अम्मा किसी से कम नहीं।"
गीता परिहार
अयोध्या
सुन्दर निर्णय..!
हार्दिक आभार
धन्यवाद