कविताअतुकांत कविता
थोड़ी सी खट्टी,
थोड़ी सी मीठी,
थोड़ी चटपटी,
हाँ ज़िन्दगी ही तो है,
थोड़ी खिली-खिली,
थोड़ी बासी,
थोड़ी नयी,
कुछ खुशियों से मिली,
कुछ उदासी भरी,
तो शिकवा क्यों करे!!!
क्यों आँखे भिगोयी!!!!
क्यो करे अनदेखी!!!!
क्यों बे बात,
ख्वाहिशें उपजायी!!!!
जिये खुद के हिसाब से,
क्यों बिन बात बात बढ़ायी!!!
हाँ ज़िन्दगी ही तो है,
थोड़ी सी डब्बे में बंधी,
थोड़ी सी उजली,
थोड़ीअचारी सी,
हाँ ज़िन्दगी ,
अनुभवों से भरी,
थोड़ी सी खट्टी,
थोड़ी सी मीठी,
फिर थोड़ी चटपटी,
बस यही ज़िन्दगी।-नेहा शर्मा