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हिंदी - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

हिंदी

  • 197
  • 6 Min Read

स्वर और व्यंजन से देखो अपनी हिंदी चमक रही है।
माँ की माथे की बिंदी में अपनी एक बिंदी महक रही है।

हाथों की चूड़ी में उसकी मात्राओं का संसार है।
पायल की छन छन में देखो स्वरों का भंडार है।

इन श्रंगार से अधूरी अपनी मातृभूमि भी लगती है।
चमक धमक में अपनी हिंदी कभी कभी सिसकती है।

कौन कहाँ को जब हम सब हु और हाऊ कहते हैं।
भूल गए सब स्वर और व्यंजन अंग्रेजों को सहते हैं।

एक संकल में लिपटी खड़ी हिंदी की दुर्दशा होती है।
साड़ी से निकलकर जीन्स में मॉडर्न हिंदी रहती है।

हिंदी दिवस सब लोग मनाते पर भाषण अंग्रेजी में देते हैं।
लूट जाती इज्जत हिंदी की हम भी यही कहते हैं।

इन शब्दों में भी न जाने कितने शब्द और भाषा के हैं।
इस युग की हिंदी को हमने कुछ यूं तराशा है।

बच्चों को एक्स्ट्रा सब्जेक्ट अब हम हिंदी का दिलाते हैं।
पहले और भाषा सिखाते थे, आज स्पेशल हिंदी सिखाते हैं।

नेहा खो गया हिदुस्तान जहाँ हिंदी है हम वतन है कहती थे।
हर एक की जिव्हा पर तब हिंदी रहती थी।

नमन तुम्हे करती हूँ मैं भी अपने दोनों हाथों से।
सदा झलक तुम्हारी रहेगी हम सबकी इन बातों में। - नेहा शर्मा

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

विलक्षण

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

हिंदी तो बस हिंदी है

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत शानदार कविता.... मैम आपने बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किया है.....

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

बहुत सुंदर लयबद्ध कविता

प्रपोजल
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