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परिवार - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकलघुकथा

परिवार

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  • 7 Min Read

आज उनको गए तीन महीने होने को आए। हंसता खेलता परिवार था। बेटा- बहू ,दो प्यारे बच्चे;एक पोती,एक पोता।बेटी बड़ी थी। शादी- शुदा थी। मां के साथ 15 दिन रही। समझदार थी, जाते-जाते मां को समझा गई कि ,मां तुम्हारा दुख अब तुम्हारा ही है। कोशिश करना कि स्थिति सामान्य कर सको, क्योंकि तुम अगर रोती रहोगी, शिकायत करती रहोगी, तो धीरे-धीरे भैया- भाभी तुमसे दूर हो जाएंगे।उन्होंने बेटी की सलाह को गांठ में बांध लिया।
अब वे अपने पोते-पोती के साथ पहले की तरह खेलती हैं। बच्चे भी उनके साथ अच्छा समय बिताते हैं। देखने वालों को जरूर आश्चर्य और तकलीफ होती है किंतु वह जानती हैं परिवार के सुख का मूल मंत्र क्या है!
उनकी नजदीकी मित्र ने उनको इतना खुश देख कर अचंभित होकर पूछ ही लिया ,वह दिन कैसे बिता रही है!
तब उन्होंने उसे अपने मन की बात कही। यह मेरा गम है। मैं किसी को क्यों परेशान और दुखी करूं? दुख मेरे दिल में है, लाख खुशी के माहौल में भी इस दुख का बोझ दिल से कम नहीं हो सकता, मगर मैं बच्चों को क्यों हर समय अपने दुख से दुखी करूं? हंसते का ज़माना है, रोते के पास कौन बैठना चाहता है?
जिंदगी अपने ढर्रे पर चलती रहेगी, वह किसी एक के लिए नहीं रुकेगी। साथी मेरा गया है, मैं सबको क्यों दुख दूं? माना कि हम परिवार हैं और परिवार मैं मां और पिता का ही यह फ़र्ज़ होता है कि वह अपने बच्चों को खुश देखें, खुश रखें। बस, यही प्रयास में कर रही हूं।
गीता परिहार
अयोध्या

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बेटी की बहुत अच्छी सलाह..! अपना दुख अपने तक

Gita Parihar3 years ago

जी, धन्यवाद

दादी की परी
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