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होली विरह गीत - पं. संजीव शुक्ल 'सचिन' (Sahitya Arpan)

कवितागीत

होली विरह गीत

  • 217
  • 6 Min Read

मुक्तक
_________
जलाओ द्वेष की होली, बनाओ यार होली में।
नहीं करना किसी से भी कहीं तकरार होती में।
जमाना हो भले कैसा, बहाओ नेह की दरिया-
चलो सबसे जरा कर लें अजि अब प्यार होली में।।

#होली_विरह_गीत
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होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?

साथ तेरा एक होना, रंग जीवन में भरेगा।
मद्य सेवन के बिना ही, इक नशा मुझ पर चढे़गा।
किन्तु साथी! मुश्किलों ने,घेर कर पथ आज मेरा,
कर दिया अवरुद्ध देखो, बोल पग कैसे बढ़ेगा।

पढ़ रहा खत आज तेरा, नेह नयनों से झरे है,
रो रहा मन आज देखो, बोल कर कैसे दिखाएं।

होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?

नेह की धारा में डूबें, या कठिन संघर्ष ले-लें,
बोल दो हम से प्रिये ! अब, और कितना दर्द झेलें।
जंग जीवन की कठिन है, आत्मा कहती रही है,
मन कहे सब छोड़कर चल,प्रीति की बंशी बजाएं।

संग तेरा है जरूरी, पर तनिक व्यवहार भी है।
बोल दो इनसे भला अब, नैन कैसे हम चुराएँ।।

होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?

✍️ पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण,
बिहार

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Meeta Joshi

Meeta Joshi 3 years ago

बहुत खूब

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन'3 years ago

सहृदय आभार

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत प्यारा सा गीत है संजीव जी 👌🏻

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन'3 years ago

सादर अभिवादन सहित नमन आदरणीया

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

बढ़िया

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन'3 years ago

सहृदय आभार

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