कवितागीत
मुक्तक
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जलाओ द्वेष की होली, बनाओ यार होली में।
नहीं करना किसी से भी कहीं तकरार होती में।
जमाना हो भले कैसा, बहाओ नेह की दरिया-
चलो सबसे जरा कर लें अजि अब प्यार होली में।।
#होली_विरह_गीत
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होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?
साथ तेरा एक होना, रंग जीवन में भरेगा।
मद्य सेवन के बिना ही, इक नशा मुझ पर चढे़गा।
किन्तु साथी! मुश्किलों ने,घेर कर पथ आज मेरा,
कर दिया अवरुद्ध देखो, बोल पग कैसे बढ़ेगा।
पढ़ रहा खत आज तेरा, नेह नयनों से झरे है,
रो रहा मन आज देखो, बोल कर कैसे दिखाएं।
होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?
नेह की धारा में डूबें, या कठिन संघर्ष ले-लें,
बोल दो हम से प्रिये ! अब, और कितना दर्द झेलें।
जंग जीवन की कठिन है, आत्मा कहती रही है,
मन कहे सब छोड़कर चल,प्रीति की बंशी बजाएं।
संग तेरा है जरूरी, पर तनिक व्यवहार भी है।
बोल दो इनसे भला अब, नैन कैसे हम चुराएँ।।
होलिका में आप आना, मिल गया पैगाम तेरा,
पर प्रिये ! ऐसी दशा है, क्या कहें कैसे बताएं ?
✍️ पं.संजीव शुक्ल 'सचिन'
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण,
बिहार
बहुत प्यारा सा गीत है संजीव जी 👌🏻
सादर अभिवादन सहित नमन आदरणीया