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कवितानज़्म
औसाफ़-ए-हमीदा-ए-मलकी से मुत्तसिफ़ मुहब्बत जन्नत की हवा खिलाती है परवाज़े-इश्क़ गर औसाफ़-ए-ज़मीमा-ए-बशरी हो तो बड़े पापड़ बिलवाती है @"बशर"