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व्वक्त - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

व्वक्त

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  • 3 Min Read

वक़्त की नजाकत को आओ कुछ यूं समझते हैं।
बैठते हैं पल भर पास, कुछ खुशी के फूल चुनते हैं।

अश्रुओं को अपने समन्दर में डूबा आते हैं।
चलों इन अरसे से बन्द पड़े दिलों की चाबी ढूंढते हैं।

खींचते हैं अम्बर पर एक और इंद्रधनुष की लकीर
चलो होंठों को बहाने से गालों तक फैलाते हैं।

रेत के बने घरों को सीमेंट की चादर ओढ़ा देते हैं।
आज झोपड़ी को अपनी हम महल बनाते हैं।

गुब्बारों में भरकर हवा आसमान में उड़ा देते हैं।
चलो मिट्टी को अपनी हवा और बादलों की सैर कराते हैं।

ठहरो तनिक वक़्त का हाथ पकड़ लूँ।
कहीं छूट न जाये हाथ से आज इसे अपना बनाते हैं। - नेहा शर्मा

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Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 3 years ago

Nice

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

जी,वक्त को थामे रहना है

Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

Nice

Anjani Tripathi

Anjani Tripathi 3 years ago

Very nice

प्रपोजल
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