कवितागजल
वो मेरा है
वो मेरा है मगर मेरा नहीं है
उसके चेहरे पे अब वो चेहरा नहीं है
तुम मुझे ज़ख्म देके इतनी पशेमां क्यों हो
ये ज़ख्म इतना भी गहरा नहीं है
तुम अभी खुद को संभाले रखना
ये तूफ़ान अभी ठहरा नहीं है
तुम को पाने का सफर और कितना बाकी है
इस सेहरा के बाद तो कोई सेहरा नहीं है