कहानीसामाजिकअन्यलघुकथा
ठीठुरन
प्रिय रवि
सुखी रहो
मैं यहाँ कुशलपूर्वक हूं और तुम सबकी कुशलता की शुभकामना करती हूँ ।आगे समाचार यह है कि जबसे ठंड पड़नी शुरू हुई है ,तुम्हारी मां के जोड़ों के दर्द भी बढ़ गया है, पुराना दमा भी उभर आया है।दिन-रात खांसती हैं। दवाई को कहो तो टाल जाती हैं, शायद पैसों के अभाव में।खपरैल की भी मरम्मत करने का समय आ गया है। गंगा के गौने के लिए भी उसके ससुराल जोर दे रहे हैं। मुकेश सुबह से शाम मेहनत करता है मगर दवाई और पुराने कर्ज चुकाने के बाद पैसे नहीं बच पाते हैं।
रवि, जीज्जी को बिना बताए मुझे तुम्हें यह खत लिखना पड़ रहा है।तुम तो जानते ही हो,अब इन सब का बंदोबस्त तुमको ही करना है।अब उन्हें तुम्हारे सम्बल की जरूरत है।
तुम्हारी अच्छी नौकरी और शादी के बाद जीज्जी ने क्या-क्या सपने नहीं संजोए थे!
लेकिन उनकी जिंदगी में कोई विशेष परिवर्तन हुआ ? नहीं न? सुबह से देर रात तक वह काम में लगी ही रहती हैं।इन बातों का वह जरा-सा भी रंज नहीं करतीं।तुम सबकी खुशियों को देख कर ही वह खुश हैं।
अभी भी वह तुमसे कुछ नहीं चाहतीं, मैं ही चाहती हूं, बस घर की कच्ची दीवारें और खपरैल किसी तरह ठीक हो जाएI जाड़े की बरसात यह खपरैल संभाल नहीं पाएगा।बरसात में चारों ओर पानी ही पानी हो जाता है। फिर जीजाजी की खराब होती सेहत!
सुलक्षणी यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि रवि इस पुराने घर पर कुछ भी खर्च ना करेगा उसे यह तीसरा पत्र लिख रही थी। रवि ने शहर में अपनी जमीन खरीदकर मकान बनवा रहा है।मां,बहन और छोटे भाई की चिंता करने जैसा अनावश्यक काम नहीं करेगा,फिर भी ।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
तुम्हारी मौसी
सुलक्षणी
और वही हुआ जो अपेक्षित था। इस तीसरे पत्र का भी उत्तर नहीं आया। गंगा के ससुराल वाले नाराज हो गए हैं।अपने बेटे की दूसरी शादी की धमकी दे गए हैं। जाड़े की पहली बारिश की बूंदों ने खपरैल की पोल खोल दी है। जाड़े की ठीठुरन और बढ गई है।
रिश्तों में आए ठंडेपन का क्या? कमबखत सौ चूल्हों की आंच भी इस ठिठुरन को दूर करने में नाकाम होगी।