कवितालयबद्ध कविता
एक स्याह अंधेरे में एक कहानी उभर रही है।
किरदार में कितनी जिंदगियाँ ढल रही हैं।
देखा है कभी पर्दों को नकाब में छुपते हुए
नाटक सी जिंदगी नुक्कड़ पर भटक रही है।
ढल रही है हर किरदार में एक एक सांस
फिर किसी पन्ने पर कहानी बन रही है।
पकड़कर हाथ मे रस्सी जो खड़े हैं।
किरदारों की पहेली कठपुतली बन रही है।- नेहा शर्मा
बढ़िया
shukriya aadarniy aap bhi bahut badhiya likhte h likhte rahe post karte rahe mai aksar aapki rachnaye padhti hu.