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किरदार - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

किरदार

  • 131
  • 2 Min Read

एक स्याह अंधेरे में एक कहानी उभर रही है।
किरदार में कितनी जिंदगियाँ ढल रही हैं।

देखा है कभी पर्दों को नकाब में छुपते हुए
नाटक सी जिंदगी नुक्कड़ पर भटक रही है।

ढल रही है हर किरदार में एक एक सांस
फिर किसी पन्ने पर कहानी बन रही है।

पकड़कर हाथ मे रस्सी जो खड़े हैं।
किरदारों की पहेली कठपुतली बन रही है।- नेहा शर्मा

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया

नेहा शर्मा3 years ago

shukriya aadarniy aap bhi bahut badhiya likhte h likhte rahe post karte rahe mai aksar aapki rachnaye padhti hu.

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