Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
बोलती प्रकृति - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीएकांकीप्रेरणादायक

बोलती प्रकृति

  • 104
  • 26 Min Read

एक कहानी जो जानवरों के बारे में हो
बोलती प्रकृति
पात्र परिचय:
नदी
तालाब
समुद्र
पेड़ - पौधे
पहाड़
जीव - जंतु
पशु-पक्षी

स्थान :एक ओर घना जंगल, दूसरी ओर लहराता समुद्र,सुदूर नयनाभिराम ऊंची- ऊंची पर्वत मालाएं

(भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव- जंतु और पशु- पक्षियों का जमावड़ा है, मगर सभी निशब्द ,मौन बैठे हैं,
मौन को तोड़ने का बीड़ा उठाया बूढ़े बरगद ने)
बरगद:दोस्तो, आज हम सब इस विश्वव्यापी विपदा से चिंतित हैं अगर आज भी मनुष्य सचेत न हुआ तो आगे का अंजाम क्या होगा? कहने को मनुष्य हम वृक्षों को प्रकृति रूपी रूपसी के अलंकार कहते हैं। वह कहते हैं हम धरती का श्रृंगार हैं, हम जीवनदाता हैं। हम खुद वर्षा और गर्मी सह कर उनकी रक्षा करते हैं, हम गुणों से भरपूर हैं। औषधियां ,फल- फूल देते हैं, पशु- पक्षी को नीड और आश्रय देते हैं , स्वच्छ वायु देते हैं, इन्हें स्वास्थ्य और खुशहाली देते हैं, गगन से मेघ बुलाते हैं ?
वर्षा से जल बरसाने का माध्यम हैं, नदियां और तालाब जब जल से भरते हैं, कृषक खुश होते हैं, अधिक अन्न उगता है ...यह सब तो इसी मानव ने हमारे लिए कहा है, फिर मित्रो,यह हमारा ह्लास और विनाश क्यों कर रहे हैं, क्यों प्रकृति रक्षक न रहकर भक्षक सिद्ध हो रहे हैं? मेरी शाखाओं ने इन्हें पिता की भांति दुलराया है मेरी मंद- मंद हवाओं ने इन्हें मां की गोद में लोरी देकर सुलाया है।(कहते- कहते बूढ़ा बरगद हांफने लगा, उसके चुप होते ही नदी ने बोलना प्रारंभ किया)
नदी: मुझे तो इस मनुष्य ने इतनी मैली कर दिया कि अब खुद आचमन के लिए स्वच्छ जल को तरस रहा है। क्या- क्या नहीं मुझ में समाहित किया ? मेरी कलकल बहती धारा और गतिशील प्रवाह पर कितने ही अडंगे लगे; फूल, मूर्तियां ,दिए, तेल, मानव अपशिष्ट, शव, और फैक्ट्रियों के दूषित रसायन।
हां,इस महामारी का एक लाभ यह हुआ कि प्रदूषण खत्म हुआ, पर्यावरण शुद्ध हुआ ,मनुष्य को सीखने ,सुधरने और प्रकृति के नियमों का पालन करने के लिए शायद यह एक अवसर मिला है।( नदी के चुप होते हैं समुद्र ने बोलना प्रारंभ किया)
समुद्र: दोस्तो, यह अच्छा है कि हम इस विषय पर गंभीर हैं, किंतु कुछ लोग चर्चा में शामिल नहीं हुए हैं, झीलें, झरने, बर्फीली चोटियां और धरती का बंजर हिस्सा अनुपस्थित हैं। दोस्तो, मनुष्य पहले भी देख चुका है, सन 2004 में जब मेरी ऊंची गहरी लहरों में धनुष्कोटी डूब गया था, उसके बाद आई थी सुनामी,जिसकी 40- 40 फीट ऊंची लहरों ने एक लाख से अधिक लोगों को लील लिया था, और हाल में आए तूफान ने कितना कहर ढाया! किंतु मनुष्य है कि मानता नहीं, या मानकर भी जानता नहीं कि वह हमसे कितना खिलवाड़ कर रहा है!(क्रोध से समुद्र में ऊंची- ऊंची उठने लगीं, मानो धरती पर सर पटक रही हों)
समुद्र के शांत होते ही तालाब ने कहना शुरू किया) ।

तालाब: भाइयो,मेरा दुखड़ा तो पूछो ही मत, मुझ पर तो इन्होंने अवैध निर्माण करा लिए ,मेरा अस्तित्व ही नकार दिया !जहां थोड़ा बहुत मैंने खुद को संभालने की कोशिश की, वहां जलकुंभी मुझ पर सवार हो गई। मेरी साफ -सफाई, मरम्मत का कोई हिसाब रखने वाला नहीं है, अब भुगत रहे हैं। उसी जल में जानवर नहलाते हैं, कपड़े धोते हैं और उसी जल को पीते हैं और बीमार पड़ते हैं! (अब तक शांत बैठे पशु- पक्षी और जीव- जंतु भी कुलबुलाने लगे)
(सब एक साथ) ठीक है जैसा किया, वैसा भरें।
गौरेया: मुझे तो लगभग इन्होंने गायब ही कर दिया है! हां, कुछ हमारे रक्षक भी हैं जो इस और प्रयास कर रहे हैं, कि हम सुरक्षित रहें।
जीव- जंतु: हमारे जीवन का इनके लिए कोई महत्व नहीं है, जब तक हम इनके काम के हैं, यह हमें चारा देंगे, वरना यह हमें भूखों मरने के लिए छोड़ देंगे।(अब तक पहाड़ निश्चल हाथ बांधे अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, अब बोला)
पहाड़: मुझे खोखला करने में मानव कहां पीछे रहा? नहीं जानता कि खोखली धरती भूकंप लाती है? भूल जाता है बहुत जल्दी, स्मरण शक्ति क्षीण है। 2001 26 जनवरी का भूकंप! देश झंडारोहण की खुशियां मना रहा था कि कच्छ और भुज में प्रकृति का कहर बरपा हुआ, देखते ही देखते शहर ,खंडहरों में तब्दील हो गए! आज 2020 में सारा जगत महामारी का शिकार है,यह खुद घर के अंदर कैद है, चारों तरफ सन्नाटा है, खौफ है, लाभ किसे हुआ?किसी को नहीं, इसने हमसे दुर्व्यवहार किया हमारे हर संसाधन का दुरुपयोग किया, मुझे तो इसने ढहा दिया ,किंतु यह नहीं जानता कि अनावृष्टि और अतिवृष्टि को इसने न्योता दे दिया!(पहाड़ का रोष देखकर नदी भी तड़प उठी और बोली)
नदी: मैं भी तड़प उठती हूं तो राह के सारे बंधन तोड़ देती हूं। फिर मुझे कोई रोक नहीं पाता, जो कुछ मेरे रास्ते में आता है, मैं उसका सर्वनाश करती चलती हूं। तुम मुझे माता कहते हो और कष्ट पहुंचाते हो, तो अब तुम्हें अनुशासित करने के लिए ही मैंनेने यह दंड उठाया है माता हूं ना, गलती पर दंड तो दूंगी ही!(नदी के मौन होते ही पेड़ ने गंभीरता से कहा)
पेड़: मनुष्य ने विज्ञान का दुरुपयोग किया, अत्याधुनिक मशीनों से वनों के वन काट लिए,वृक्षारोपण की ओर ध्यान नहीं दिया। इन्होंने हमसे दुर्व्यवहार किया।हम,जो प्रकृति के संरक्षक और नियंत्रक हैं, इन्होंने हमारी अवहेलना की। अति भोगवाद और भौतिकवाद में इन्होंने विकास के नाम पर विनाश किया। कल तक हम हाथ मल रहे थे आज यह हाथ मल रहे हैं! इन्होंने यह भी नहीं सोचा कि यह विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे!(तभी कहीं से एक बालक की गुहार सुनाई देती है, सभी चुप होकर उसी दिशा में कान लगा देते हैं)
बालक: मैंने आप सब की बातें बहुत ध्यान से सुनी हैं। मैं आपको वचन देता हूं कि हमारे बड़ों की अब तक की की गई गलतियों का प्रायश्चित, हम बच्चे करेंगे। मुझे आशा है कि आप सभी हमें क्षमा करेंगे।
मैं जानता हूं कि प्रकृति का नियम ही परिवर्तन है, तो इसमें हृदय परिवर्तन भी तो शामिल है , है ना?
(सभी अपने -अपने अंदाज में मुस्कुरा उठते हैं।कोयल कू- कू करती है , झींगुर नृत्य करने लगता है ,वृक्ष की डालियां मंद मंद बयार से हिलने लगती हैं, पहाड़ से ठंडी हवा का झोंका आता है, नदी भी मचल उठती है)
गीता परिहार
अयोध्या

logo.jpeg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG