कविताअतुकांत कविता
एक खत इच्छा के नाम
ओ इच्छा
तुम मेरे मन को क्यों घेरे रहती हैं
क्यों बच्चो की तरह शोर मचाती रहती हैं।।
एक इच्छा पूरी होते ही क्यों दूसरी पैदा हो जाती हैं
तुझे पूरा करने के लिए ना जाने
तू क्या क्या नाच नचाती हैं।।
माना ज़िंदगी मे तेरा होना जरुरी हैं
क्योंकि तेरे बिना ज़िंदगी अधूरी हैं,
इच्छा तेरे लिए ही तो हर इंसान जिये जा रहा हैं।
कैसे ना कैसे तुझे पूरी करने
की कोशिश में दिन रात कमाए जा रहा है,
अब थोड़ा थम जा मन को थोड़ा समझा।।
तेरा असीमित होना मेरे मन को बहका रहा हैं।
इच्छा अब तुझ को सीमित
रखने के लिए ये "मन "शिकंजा कस रहा हैं।।
ओ इच्छा बस अब तू थम जा।
मैने मन को समझा लिया है।।
ममता गुप्ता✍️
सुन्दर... कविता... इच्छा ही जो हमे जीने का मक्सद देती है...
जी धन्यवाद
बेहतरीन इच्छा को भी खत लिखा जा सकता है और वह भी इतना प्यारा सा। क्या कहने। बहुत खूब