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"आ"
कविता
"आ अब लौट चलें "
"तुम लौट आओ"
ले आना
तारों को आंचल तक आना होगा
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
उस रात हुई बरसात बहुत
आज दिवस है काकोरी का
कवि हो जाना
#सावन_है_आया
मेरे घर भी आ जाना
सम्मान आज़ादी का (आज़ादी विशेषांक)
ये कैसी आज़ादी
गलतफहमी
है खोफ मंजर फैला हुआ
प्यार मोहब्बत जिंदाबाद by कुमार आशू
परंपरा और आस्था
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
सैनिक है नमन आपको
मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ।
अब आया है पन्द्रह अगस्त
चल खुसरो, घर आपने
इसलिए दुःखी हूँ
मेरी आज़ादी
अहम
किसकी आज़ादी...
तुम्हारे आंगन की तुलसी हो जाना चाहती हूँ
पहले के जैसे
मैं आ रहा हूँ ।
चित्र पर आधारित प्रतियोगिता
आना मेरी गली
चित्र आधारित प्रतियोगिता
"तेरे महलों को छूकर आती धूप"
दादी आयी ।।
कोविड आया है....
छुप कर वार न कर
आशावादी मन
ऐ! मेरे साए
छोटे आका
बादल
माँ आपकी पहली रोटी कैसी थी
पंछी
कभी नहीं आते
बदलता आपकी तरह रहा मेरा किरदार नहीं
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
आँखों की भाषा
प्रपोजल
कहीं आदत वो कभी आफत हो
पर हमें भी लिखना है
आत्महत्या
माँ की आँखों के तारों
दिले अहसास हमारे
माँ सीता
कुछ बात तुम्हें सुनाते हैं
सच बताना - कुमार आशू की ग़ज़ल
इंसान आज जमी पर आया है।
अबोली आँखें
क्या है आज के अखबार में
जोगन की यात्रा
मत करो जीवन नष्ट ये अद्भुत वरदान है
गुरु
आई चिडि़या
ये मजदूर नही है, सुनहरे भारत का अभिमान है
कौआ मामा
हे माधव, तेरा यह मानव
मुझे तू अपना सा लगता है
जब कोई धोखा देता है
मुझसे पूछो
कद
हाथों में आ जाती है कलम
मैं छाँव तेरे आँगन की
तेरी आँखें
कल और आज
आशिकी मत करना
ये फूफा भी कमाल करते है
जुगुनू
आज फिर.....
तब तुम मेरे पास आना प्रिय
जो असलियत है.......
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
हुआ जा रहा गड़बड़झाला
आँसुओं को पनाह नहीं मिलती
मुझे आसमां छूने दो
म्हारा आंगणिया में
अभिभूत
बँटे आज हम जाने क्यूँ
वो चली आ रही थी
यह आदि है या अंत
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
आओ माँ मन मंदिर में
आह!
आज कि रावण
मैं आश्चर्य करता हूँ
मुमकिन हो सफर हो आसां
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई
आलू का तो हाल न पूछो
नवंबर तेरा आना
दो चाँद उतर आए
वो बाते
उदासी
आंखों की पोर
पढ़ पाऊँ
वो चांद आज आना
आंखो का तारा
आँखों का तारा
कफ़न में लिपटकर आना है
आओ मिल कर दीप जलाएँ
राम तुम्हें फिर आना होगा
छठ महापर्व
तो आखिरी बार
माँ भारती--गीत
आंसू
आवाहन करती है ये वसुंधरा
आओ मेरे जीवन साथी
हम आगे बढ़ते जाएँगे
बटुआ की याद
बहरी क्यों सरकार आज है
इक उजाले का नयन में आस होना चाहिए
मुझे उनके आने का पैगाम देना
बहुत हुआ कि अब कुछ कहा नहीं जाता
आँखों का तारा
आँसू
आँसू
एक चेहरा नजर आया
आखिरी मोड की तरफ
ये वो शाम है
फिर से आँखें हुई सजल शायद
प्रेम एक अहसास
अच्छी आदतें
आराधना
एक आग सुलगने भर
आज भी पीछा करती हैं
आखिर मेरा क्या कसूर था
जीत जाएंगे हम....
चलो आज फिर.....
आवारगी
सांता क्लॉज आया है
माँ आओ
ये आग
आज का दिन
आत्मविश्वास.....
बेरुखी का आलम
स्वागत नव वर्ष
यह साल कैसा रहा #2020
देखो देखो नया वर्ष है आया
हुक्मरान आए हैं,
मखमली आँचल
आती रहती हैं
अच्छा हुआ
मेरा शहर
चाँद सा मुखड़ा
हाँ हम आम लोग हैं।
आहट साजन की
जग के उर्वर आँगन में
अपनो के सपने
भय
आंदोलन
जर्रानवाजी बनाम मेहमाननवाजी
आती रहती है
बाक़ी हो आज भी मुझमें
आदमी की मौत मरा कुत्ता
स्वयं छाया स्वयं आधार हूँ मैं
#इकरार
कलुआ....
# इकरार
जात आदमी के
आँसू, खून, पसीना
तुम याद आते
वीरों को समर्पित
नेताजी
पराक्रम दिवस
तुम याद आते
बहारें आ गई
आओ हम माँ के तिरंगे आँचल को सँवार दें
"आख़िर कौन हो तुम"
याद बहुत आते
आम सी ज़िन्दगी
#चित्र प्रतियोगिता
सपने में पापा आए
तुम और मैं
मैं चांद नहीं आफताब हूं
तड़पती हूँ
वसंत का आगमन
#चित्र प्रतियोगिता (बचपन के वो दिन)
बचपन -एक जमाना
मुझे कुछ कहना है
लो आ गया बसंत
बचपन की एक बात
बचपन -एक जमाना
#बचपन के पल...
बचपन
बचपन में
आयो बसंत
मन की आवाज़
हर वक्त बस है धोखा...
खुश है वो देखो कितना..
क्युं आँख तेरी भर आयी है ...
दिल खोल के लुटा देती है..
आज मिलेगी वो मुझसे...
ऋतुराज आया
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
लौट आइए पापा
आंदोलन जीवी
तेरी यादें।
संवेदना
एक चॉकलेट उनके लिए
मरती जा रही संवेदना
आनलाईन इश्क़ आफलाईन इश्क़
"आनलाइन इश्क"
ऋतुराज आया
बहारें आ गई
बसंत का आगमन
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है
"लव आजकल"
आखरी मोहबत..
आशिक़ की अभिलाषा
आज प्रेम दिवस है
बहुत उम्मीद है
तुम हो तो
ज़जबात
आया बसंत झूम के
ऋतुराज आया
ऋतुराज बसंत
मीठी मीठी बातें
आह्वान
सावन गीत
आया बसन्त झूम के
ऋतुराज बसंत है आया
आया बंसत झूम के
'मधुमास'-ऋतुराज बसंत
मोहब्बत
प्रकृति की सुंदरता
तेरा आना
तेरी आंखों के पैमाने
मधुर मिलन
मनमीत
मेरी जिंदगी में चली आना
फोन ऐ मोहब्बत
दूर है
प्रणय मिलन की आकांक्षा
मेरी जिंदगी में चली आना
अस्तित्व की आवाज
अस्तित्व की आवाज
वो लड़की*
प्यार का मर्म
प्यार का मर्म
एक घने पेड़ की छांव
उस घने पेड़ की छांव
याद बहुत आए
अपना वह घर पुराना...
मन के आईने में
ओ सनम मेरे सनम
कामदेव राज
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
सावन की बूंदे
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
कुछ उल्टा सीधा
बदलते शक्ल
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
मेरा गांव मेरा आंगन
शायद ज़िन्दगी होना था...!
अंकुरण
अंजान पथ
इंतजार
याद बहुत आए
बहुत याद आए
जीवन गाथा
गरीबी की मार
गरीबी और परायापन
विरहिन
प्रणय मिलन
कशिश
*कसक*
*कसक*
खुशियाँ
प्यारा घर
Ajnabi Si Dastak
मन के भाव
मन से बचपन
दुष्कर ही श्रेयस्कर
अंधेरे का आकर्षण
वृद्ध
थम गई ताल
घर एक मंदिर
मन दर्पण
"अतीत की यादें"।
मन के भाव
Mera bharam
Khud se Rubru
मै आज भी वही हूं
जीने की ललक
कल्पनातीत प्रणय मनुहार
"मुझे मेरा वो गाँव याद आता है"
अंतिम यात्री
जीने का चाव
मन में आता ताव
जीने की कला
अन्नदाता
मेरी आह की आवाज
आखों में चमकता प्यार तेरा
सुनो मेरी कहानी
मौन स्वीकृति
आरम्भ का अंत
काजल
छलकते जज्बात *❤
"काली नैयना मदहोश शाम लगती है"
वह आदमी
बहुत बोलती हैं ये आंखे तुम्हारी
आँखों का पानी
किरकिरा हुआ काजल
येदिलकर रहा है तुम से ही बातें
काजल
काजल*
काजरारे नैन
काजल
कहती है आज की नारी
हलचल
आज कुछ नया लिखूंगी
Kajal Ka Badal
मन के जज्बात
काजल
तुम मेरे हो
मौन अभिव्यक्ति
इज़हार-ए-मोहब्बत
दीवानगी
इजहारे_मुहब्बत
बिटिया कहे
मधुर मधुर तेरी ये बोली
प्रियवर हो
तुमसे है प्यार
बिटिया कहे
मन फगुआ
आधुनिक नारी
आजकल जब भी
आप मेरी जिंदगी हो
आपके ढेरों उपकार हैं माँ
"काश मिले फिर तेरे आँचल का कोना"
रूह आसमान में रहती है
काश यह मेरा घर होता
माँ की एक अलग दुनिया हुआ करती है।
भूले-बिसरे चंद लम्हों के हवाले
पचपन में मन खोजे बचपन
मेरे दिल का फूल
बहुत याद आती
भूली बिसरी यादें
भूली बिसरी हसीन यादें
आव्हान
मिलन की बेला आई
"पुरानी डायरी के बंद पन्ने"
बचपन..
बीते हुए लम्हों में
घर की याद...
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है
सार छंद आधारित गीत "शिव बिन कौन"
दिल की आशा
चाँद आज छुट्टी पर है
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
धूप के आर पार
"अंतरात्मा की आवाज "
विरह वेदना
जुदाई*
"प्रेम में तेरे"
छलिया
#छलिया
संग की मूरत
अंतर्द्वन्द्व
*अधूरी कहानी"
✍️अनजान चेहरा सा हैं, मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,
इश्क़..फिर हार जाएगा
दे दे मिलाई।
बिछडो न तुम (गीत)
रात के आकाश में जागता एक चांद
हाय ये कैसी मजबूरियाँ
आहत मन....
ख़ता
आ भी जाओ गौरैया
जुदाई
मिट्टी के आँगन
रिश्ता प्यार का
निर्मला और उज्ज्वला
गूढ़ रहस्य
आज़ादी के दीवाने
होली आई
न्याय इतनी दूर क्यों ?
अदृश्य सी कोई आस
आलसी
"एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
यूँ तो मेरा क़त्ल हुआ है।
कभी जिये होते आकाश में
कोरोना वायरस और प्रकृति
चल उठ चल अब
विरह का अंत, अमित प्रारंभ
मैं आसमान तक जाकर
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
"गीत मिलन के"
मिलन रूत ❤
लो आज पूरी होगई हमारी अधूरी कहानी...
बेला मिलन की.....
मुरादों वाली रात
दीदार
डिजिटल जनरेशन
धुंध *
हाशिए पर सैनिक
आऊँ भरूँ तुझे अंक में
आ भरूँ तुझे अंक में
"प्रहरी"
मेरी माँ ख़ुश रहे
माँ भारती के गहने
आई चिडि़या
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
नवदुर्गा माँ जगदंबा 🌺
शौर्य गीत
जिंदगी की आखिरी शाम
कौन हूं मैं?
आपदा में अवसर
चल खुसरो घर आपने
मजा बहुत आता है।
वीर सिपाही
भारत देश और इंसान
कोरोना बोलो तुम्हे कब है जाना
आम और सच
आज शिक्षकों की व्यथा
चेहरे पर मुस्कान आएगा
प्रार्थना
आशा दीप जलाए रखना
माँ तू बहोत याद आती
माँ ऐसी ही होती है
जय हिंद
बीते दिन वापस नहींं आते
आज प्रेम दिवस है
सम्पूर्ण सृष्टि का प्यार
दिल एक तिजोरी है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
एक कड़वे सच के आईने में
हे कृष्ण! कितना आसान है
मैं एक तितली अंजानी सी
मन की आंख से
नव - प्राण हुआ
मैं अकेली
आशाएं
आशा एक किरण *
एक खुले आसमान की हवाओं की तलाश में
#तेरे मेरे सपने(प्रतियोगिता हेतु)
# तेरे मेरे सपने (प्रतियोगिता)
बददुआ
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
पितृ दिवस विशेष
बीते लम्हें
बचपन की डायरी
आशा की एक किरण ..
दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
वो बंद आखिरी मकान
मैं फिर आऊँगा
उसका होना
मेरे घर आई एक नन्ही परी
मेरा स्वाभिमान
पंछी निराले रंगीले।
जाग-जाग री ।
परछाईयाँ अगर बोल सकती
अधूरा सा प्यार था।।
सिले होंठ
आंसू
चांद
" अलग-माएने " 💐💐
विरह गीत
ये उदास-उदास सी आँखे
मेरे घर आना जिंदगी
तुम खो मत देना ये आज़ादी
मैं आज की व्यवस्था हूँ
गिल्लू
✍️गम भी जिंदगी को कितना कुछ सिखा देता है।।
मैं आज हूँ
नारी के जीवन में इतवार नहीं आता
तुम्हारा बदलना
" आहट प्यार भरी " 💐💐
आज दिल बदला बदला सा
नीलाम्बरी काया
आते होंगे रवि अभी...
स्वरलहरी
रूह की आँच…
आशाओ के दीप जलाऊँ
मैंने आज बस इतना किया
संबल
ममता की छाँव
कारी बदरी
श्याम थाम कलाई
मन था रीता
आकर्षण
ले कान्हा मैं आय गयी रे
आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त
आसमान के पार
कोई राह दिखला दो
रे मन
परिवर्तन कहीं आस-पास है
मेरे घर में माँ आयी है
कहो श्याम कैसे आये?
मुस्कुराइये कि आप आज......
मेरा अपना आप
*प्यार अपने आप से कर.....*
खुशी के आँसू बहा के देखो
आओ ऐसे दीप जलाओ
सच्चाई आज तो
हम हो जाएं
आईना
वक्त का मारा हुआ
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया
दिये तले अँधेरे
पुराने दोस्त याद आएं
आँखें
✍️You were the only one, my father
ये अलाव, ये आँसू
आ, जिंदगी, पास आ
ऐ चांद ठहर जा
मेरे घर आना जिंदगी
दरीचे
तुम्हारे सीने में मेरा दिल
आखिर कब तक
आसान नहीं हैं, किसी के साथ जीना
कवि तुम नहीं
आज अचानक
फागुन आया
कविता की आहट
मैं ख़ुद को बेकार समझता हूँ,
मैं आज हूँ
आज मैंने एक रोते हुए बच्चे को हँसा दिया
याद आती हो तुम .....
आस में हूं
अखबार ए खास
पता ही नहीं
कविता का आकार
एकता कपूर का फोन आया
ममता का आंचल
आत्म ज्ञान
यादों का कहर
आखिरी मुलाकात
ये बात आख़िरी है।
"आहट"
आओ और सराहा जाये
हवा
सफ़र
धरती और आसमां की तरह
ठंडी क्या आफत है भाई
चाहता हूं
माँ का आंचल
भारत रत्न
हिंदी गीत
आम आदमी बेजार-कृष्णाजाधव
आपकी इक आँख को तलवार होना चाहिए
किसी को ये ज़मी दे दो किसी को आसमाँ दे दो
आजकल मेरे महबूब सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं
हर किसी के हाथ में अब आंच है।
मरते किसान नहीं, मर रही हमारी आत्मा है।
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
शामो-सहर रोजो-शब आज और कल बदलते हैं
खून नस्ल-ए-आदम का बहा है
धूप कभी ठंड सूखा कभी बारिश
नैया आज आदमी की
हे आशुतोष !
आईना मग़र सच बताएगा
यादों का आभास हुआ मुझ में
दिल्ली दूर है
किसीको जीना आ जाता है बशर
ना दुआ काम आएगी ना दवा काम आएगी
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
हयाते-मुस्त'आर बशर कमाल की हो
तुम्हारे साथ गुजारा हुआ वक्त
पल-पल तिल-तिल मरता है आदमी
दश्त -ओ -शजर के साए क्या काम आए
सब्र कर
जीकर तो देख आज अपना
सुबह का खास महत्व
शाम ए हयात होने को आई
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
बशर तुझको जीना अभी आया ही नहीं
ख़ामोश रहकर बशर वो अश्आर हज़ार कह देते हैं
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
जिंदगी मिली है जीने के लिए
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
यायावर फकीरों के मुकद्दर में कभी कहीं घर नहीं आता
अपने आज की हिफ़ाज़त कर
आजमाइश
गुजारिश की बरसात की आसमान देखकर
किसी सयाने को ना इश्क़ करना आया
काश लूटने कोई हमारे रंजो -मलाल आ जाता
आगाज़े-सफ़र कर रहा है तू
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है
ऑंसू
दिल का बुरा नहीं बशर आदमी वक़्त का मारा है
कीमतों ने छुआ आसमान
औलाद की ख़ातिर सबकुछ कर जाता है आदमी
दुआएं उम्र ए दराज़ होने की न मांग
आदमी परेशान-सा रहता है
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
यौमे-आजादी से बड़ादिन हो नहीं सकता
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
सुधार आगे के लिए परिवेश
सुकून-ए-ज़ीस्त मयस्सर ही नहीं कहीं आदमजात में
किसी को चाहने से पहले ख़ुदको आजमा लेना
जी भरकर ख़्वाब देखो आपही की रात है
अश्आर तेरा काम लिखना है
धरातल की दशा से मुंह मोड़
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
उम्रे-ए-तमाम शबे-तन्हाई है
आज वतन की शान में करते थकते नहीं गुणगान
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
साहिल पे उफ़ान आता है
चलो चांद पे बसते हैं
निगाहें आज तक टिकी हैं बशर उसी तरफ़ मुंतज़िर तुम्हारी
आकर देख कभी क़रीब मेरे
रिश्ते याद तो आ जाते हैं
हमें न बताकर आए
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
अना के मरीज़ की बशर दवा क्या है
शाम की एक रात
चले आए हम सवाली की तरह
दुआ में हाथ हमारे उठ गए
आकलन करने को चाहिए सही तंत्र
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर आता नहीं
सवेरा हुआ सवेरा हुआ
सुलझी हुई मिली थी बशर हयात आदमी को
मन की आवाज
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
आरजू दिल की बशर कह कर बयाँ की नहीं जती
बोली भाषा मज़हब की दुहाई देनेके आदी लोग
जबर्दस्ती नज़र आती है
फ़िराक़े-हबीब
कोई और काम आ गया है
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
"ऊंची आस"
*आँखों से नमी नहीं जाती*
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
*आदमी नामकी शय*
*आख़िर तेरे शहर में आना हुआ*
मानवीय संवेदना बनी रहे
बरसात और ठंडी हवा
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
*सफ़र नहीं है आसान मोहब्बत का*
करते नहीं हैं याद हमको हबीब हमारे
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
*याद आते हैं*
*ए'तिबार खुदपर ही रहा नहीं*
*गूंगी बिन आवाज़ ग़ज़ल*
बस एक आप
बस एक आप।
"ईमान आदमी का"
*दरीचों से देखते रह जाएंगे*
*याद आना क्या काफी नहीं*
घिर आए यादों के बदरा
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
कमी आशियाँ की रही
*आब -ए-हफ़त-दरिया की प्यास*
*मुस्कुराने में क्या जाता है*
*अदब से पेश आएं*
खुला है ख्वाजा का दरवाज़ा
आदमी ने ज़हर घोला है
जरुर अन्त होना है संसार का
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
*ख़त्म आदमी की पहचान हो गई *
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
*जीने का तरीक़ा बड़ा आसान है*
दृढ़ आत्मबल की दरकार
*तोलने की ज़रूरत क्या है*
विष बो रहे समाज में सरेआम
आपका माथा जाएगा घूम
आदमी को आदमी हि रहनेदो
*पीने आ जाया करो*
*ख़बर ताजा आज की*
*खो जाता है आदमी*
आखरी मुलाकात
*याद उस को भी हमारी आती होगी*
मुकद्दस आयतें हो गईं यादें हबीब की
"बशर" किरदार तेरा कितना महान है
छटपटाता रहता है आम इंसान
'बशर' को चालबाजियां कहां आती हैं
आदमी को आदमी नहीं क्या मज़ाक कहें
हरसू बेइंतहा रौशनाई है
उजालों के भी अदब हुआ करते हैं
रौशनाई के भी अपने उसूल ओ अदब हुआ करते हैं
बुरा वक्त
घुंघरू
आह निकली
आरज़ू
किरदार
अधिकांश होते हैं गुमराह
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
सलीक़ा
आंखें सजल हो गई
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
*मुस्कुराए हुए ज़माना हुआ*
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
उसीकी नज़र-ए-नायत दिखाई नज़र आती है
*ज़रूरी राब्ते निभाना हुआ*
आदमी मैं मरा हुआ हूँ
कन्या भूर्ण hatya
दीदार हबीब का काम आया
*रक़ीब काम आया*
क्या हुआ हासिल अमीर होकर
बरबाद और आबाद ❤️
आंखें कराती हैं पहचान
Love is the most valuable thing in the world
आदमी, आदमी रहा ही नहीं
*आस्मां छूने को बेताब हो गए*
किस मुकाम पर आ गए हैं हम
*सरपर कुछ नहीं आस्माँ के सिवा*
खुश नज़र आने लगे
*सराबों से आब चाहता है*
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
जाहिल बेवकूफ़ी से बाज नहीं आता
*हम हुए वैसा ग़रीब न हुआ*
खुदसे सुनना चाहता हूँ
*वक़्त वस्ले-यार में गजारा हुआ*
किस्मत से ❤️
आदमी ही आदमी के काम आता है
आना यहाँ दुबारा नहीं
आदमी खुदा बनने से बाज नहीं आता
कफ़न ओढ़कर
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
एक और साल गया
मौसम-ए-सर्द में बर्फबारी आम बात है
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
आदमजात के किरदार का सूरत-ए-हाल और है
विसाले-यार न हुआ
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
*साल नया सबको रास आए*
आने वाला साल अच्छा हो
आमाले-कमाल तेरा तुझपर है
साल ये बेमिसाल बदले
एक और बरस हयात से चला गया
मजनू बनजायें गर हमको लैला मिले
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
वो इल्मो-हुनर हमें नहीं आता दर्दे-जिगर जिससे बांटें
आगे की राहे-सफ़र
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
जान में जान आ जाती है
दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है
हुदूदे-ग़म हम पार कर आए हैं सारे
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
संस्मरण --खुली आंखों से देखा स्वप्र भी सच होते हैं
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
खेलते नज़र आते नहीं बच्चे आजकल
पूछते आना बशर चैनो-अमन के दाम
बशर की औक़ात क्या है
रंगों में रवानी है
खुद से बशर बेगाना होता चला गया
ज़माना आंसू बहाये
भूलना भी चाहे तो भूल न पाये
बदनामी शोर मचाकर आती है
बदनामी बड़ा शोर मचाकर आती है
टिम होर्टिन याद आ एगा
जिंदगी को देखकर पसीना आया
लोग-बाग बदल गए आवाज़
बदल गए कल और आज
होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
आ गए मां-बाप दहेज में
रोना-धोना क्या काम आएगा
मुतमईन हो जाना होगा आसान
राम आएंगे
सच को साबित हलाल करना
'बशर' नादान है
पल पल गुजारा सुहाना याद आता है
राम आयेंगे
खूबियाँ औरों की देख "बशर"
मेरी शायरी मेरी जज़्बात
जीना नहीं आया
चाह तुम्हारी न होगी
मरतीं आ कर साहिल पर
शिद्दत इस क़दर दुआओं ने कर ली
वक़्त को आते-जाते साल न समझ
इबादत करने आना
मछलियों को बहुत गुमान हुआ है
फ़ासलों का फ़ैसला आसान नहीं होता
सूना पड़ा बाज़ार
जर्द पत्ते समेटकर आग लगाने को
कहे अश्आर तमाम मग़र अपनेही शिफ़ा-ए-मर्ज़ पर
जिंदगी की आँधी
आईना ख़राब
आसमान पाना चाहता है
कहनेको अश्आर नहीं है
बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया
हौसला खुदही का काम आता है
बचपन याद आता है
छू कर देखूँ क्या आसमान!!
पिंजर अम्बर
सूना है फ़लक महताब के बग़ैर
प्रिया ब्हावरी
चाहे भी कोई तो किस क़दर चाहे
जीना हमको गवारा न हुआ
आंसू आंखों से बाहर नहीं आ पाते हैं
आदमियत खोने पर
आसमानों से बाते करने लगे हैं
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
मरना जीने की आदत से कम नहीं
दुश्मनी सरेआम किया करो
इन्सान तो आख़िर इन्सान होता है
आज की बात है
प्रेम
साहिल तक आ गए
आज पुराना ख़त मिल गया...
तिश्नालबी छुपानी नहीं आती
वक़्त नहीं हमको
परेशानियाँ हर-बात में
अंदेशा ए फुर्क़त का मलाल आता है
जिंदा होने का अहसास हुआ
प्यारे गिरधर गोपाल नज़र आए
दवा से ज्यादा असर दुवा से हुआ
आजाद मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है
आदमियत का धरम देखा
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
दूर खुद से भागता रहा आदमी
कहाँ गया आदमी
जानवर आदमी से प्यार करता है
यादों से बिछुड़ना ना आया
अपने आप पर ए'तिमाद ओ एहतराम की इब्तिदा करें!
अक्ल आती है ठोकर खाकर
फ़सादी के पास होता दीमाग आधा है
मंहगी यहाँ जमीनें कमबख़्त हो गई
आते जाते रहेंगे लोग
अहसासात और जज़्बात यहाँ
शराब हदें भूल जाती है
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
जफ़ाओं की हम कहेंगे
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
राह-ए-सफ़र मिलने वाले रहबर नहीं हुआ करते
वक्त के विरुद्ध
फिर उन्हीं का ख़्वाब आएगा
बेहतर ख़ामोशी तेरी आज
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
जिंदगी लाजवाब है
आदमी
नज़र नहीं आता
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
पीरी में सब साफ नज़र आता है
दुआसे बढ़कर दवा क्या है
आसान नहीं है
तन्हाई की ख़ामोशी से गुफ़्तगू होती है
आते कल का सपना देखा था
बाद-ए-आज कल भी होते हैं
बोले कब
ये दौर अलग
आलिम सालिम फ़ाजिल का साथ है मंज़ूर
जिंदगी आसान होती
आईने से डरते हैं
आपको अपनी खूबियाँ मुबारक
जुबान अनपनी ख़ामोश रखनी पड़ी
अर्थार्जन का सुखद संयोग
चंद अशआर -ख़्वाब
नींद को आने में देर हो जाती है
हम फिर भी सलामत हैं
आवाज़ वही है
आईने में मिलने वाला है
हौंसले काम आते हैं
हयात इक ख़ूबसूरत ख़्वाब है
आलिंगन
हिंदुस्तान नज़र आता है
हर कोई आम खाना चाहता है
सफ़र-ए-हयात-ए-मुस्त'आर
पास आ रहा है
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
डर किस बात का,कौन सा,हकीकत मे आना था
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
जब रखवाला ही जुआरी था
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
ईद भी आकर चली गई
आसमां से आती है मौत कैसे
ईद की बधाई
आदमी परेशान रहता है
दुआ
इंतज़ार-ए-हबीब ताक़यामत रहेगा © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
यादों का सफर
जीना सिखाकर ही दम लेगी
आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर
बेमिसाल है ये जात आदमी की
फ़ितरत काफिराना हमारी
अपने तेरे तुझको जगाने नहीं आए
हयात का आदमी अज़ीम किरदार होता है
मंज़िल ख़्वाब नज़र आने लगे
बीते हुए दिनों का लौटकर आना
मुफ्त आमदानी और आय
आईने पे क्या गुज़री
यारों की महफ़िल में आया करो
मुफ़लिस की बस्ती में चलकर दुआ करें
दुआओं का भागीदार ज़रूर
हुआ मशहूर हयात में
बताएं क्या नुक़्स आपको मय के बशर
सोता ही नहीं है आदमी आठों पहर
खरा आदमी
जोर आता है निभाने में
परिंदा कहीं भी जाए शामको वहीं लौट आएगा
ज्यादातर बेबात सोचते हैं
खुद के साये से भी हैं महरूम
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
नींद रात-भर आती नहीं है बशर
आरज़ू क्या रह जाएगी
खुदको जाना बना कलंदर है
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
हरहाल में हिट जाते हैं
वक़्त ए तकलीफ़ नज़र आते हैं
व्यापकता असीमित हो जाती है
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
तहरीर कहीं नज़र न आई
आजमाइश उसूल-ओ-ईमान वालों की ही होती है
धुआं 🔥
आंखों ने मेरी कोई सपना नहीं देखा
खुले आसमान में जीना चाहता हूँ
आदमजात झुक जाएगी
हम फिर रोज़मर्रा में खो जाएंगे
मुश्क़िल है घरको घर करना
सियासत कमाल है
लाख आवाजें लगाया करना
खुदको धोखा देना आसान है
तन्हा रहने की आदत डाल लीजिए
बंदे हम काम आने वाले हैं
आज किसी का दिल टूटा है
मुझको आंखों में बसाने वाले
लौट कर नहीं आऊंगा
खुशियाँ अपने पास नहीं आती
अपने दिल की आवाज सुनी
तैयार सुख-दुख में इक आवाज़ पर
आंसू का कतरा
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
है शिफ़ा मग़र मां की दुआ में
आओ मतदान करें हम।
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
ज़िन्दगी को ठहरा हुआ देखा है
जनाजे में नहीं आने वाला
अभ्यागत"....तुम आए जब से, हो उदासीन.....
आंखों में समंदर
सफ़र ज़िन्दगी की आसान हो गई होती
बर्बाद ज्यादा हुआ बचा कम है
जीवन" ओ तू जरा साथ तो चल.......
सहर की आस में
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
मन मेरा ऐसे ही बरबस बिहंस गया........
ग़रीब इत्ती सी दुआ करे
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
मिलने हमसे अहबाब पुराने ले आ
सपने का प्रतिबिंब हृदय पर अब-तक छाया......
अपना ना रहे साथ तो याद आती है
समझदार सभी इन्सान हो जाए
भला किया अच्छा किया उसका सिला क्या
मतलब-परस्त लोगों का रिश्ता बेमानी होता है
ख़बर में आते हैं
सितम लोगों ने कलसे ज्यादा आज किया
जज़्बातों की उम्र हुआ करती है
फ़जूल हुआ स्कूल जाना
शजर बड़ा उदास हुआ
मोहक उनका दीदार ज्यादा हुआ
धोखे खाने का आदि जो हो गया है
आज और कल बिगाड दिए
सुब्ह भी दोपहर लगती है
रूतबा उसकी पहचान नज़र आता है
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
उदासियां उन्हें नज़र नहीं आतीं कभी
आदमी को अपना मेयार नहीं खोना चाहिए
आदमी अकेला है
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
इक ज़माना अपने आप में हर शख़्स है
आवाज़ को ख़ामोशी से समझा जा सकता है
भिखारी का आशीष
रोना तमाम उम्र का तेरा बेकार हो जाएगा
मनसे अंधा अपने अंदर क्या देखे
व्यर्थ न जाने पाएं तौला हो के मण
आख़री सांस तक काम आएगी
पढ़े नहीं जाते हैं लिखे हुए अल्फ़ाज
आप पर हमें ऐतबार है
आग बरस रही है आसमान से
उम्रभर हमको काम आईं माँ की दुआएं
जीतने वाला साबित हुआ
ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया
कलभी अपना है गर आज अपना है
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
गजल
रूह फिर लौट आती है
आँखों देखा मंज़र
माशूक रब नज़र आने लगे
हयाते-मुस्त'आर हमारी बिन तुम्हारे न गुज़रेगी
ख़ामोशियों से मिले घाव भी जल्द नहीं भरते
दुआ में हम क्या मांगें
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
आने जाने के दरमियाँ ज़ालिम ज़माना पड़ता है
तू देख, मेरा कृष्णा आ गया!
आप खुद हैं
चाहत नहीं रहती कुछ कहने की
पल-पल नाशाद आए
आराम की जिंदगी बसर करोगे
दोज़ख से कम नहीं हुआ करता है
हालाते-हयात आदमी को ना मज़बूर करे
मां की दुआ का असर
आवाज़
हमारा प्यार
पहला प्यार
पहला प्यार
दिल की आवाज़
आशियाना
आत्मविश्वास
आख़िरी ख़्वाहिश
होता है स्वाभिमान
इश्क़ 💔🥀
दोस्ताना कृष्ण सुदामा जैसा किसी को आया नहीं
हरेला आने वाला है,
घर में हुआ आलोक
चमके सितारे नसीब के
मैं तेरा दीवाना हुआ
लोग अपना रंग दिखाने लगे हैं
बिनआग के ही आग जला देते हैं
बाद मरने के क्यूं ज़माना मेरा दीवाना हुआ
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
आसमानों तक साथ चलने की दुवा करने में लगे हैं
आंखें ही बेच देंगे तुमको ऐनक देने का वादा करके
कमियाँ निकाल रहे हैं हमारे किरदार में
सुकून-ए-क़ल्ब मयकदे में आकर मिला
अपना पीछा करते हुए अरसा हुआ
अगर मुस्कुरायेंगे
भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फ़ायदा
कोई भी जुस्तजू बाक़ी न रहे
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
जुस्तजू बाक़ी है
लिखा हुआ बदल नहीं सकते
आस्माँ में आशियाँ नहीं होता
थक गए हैं आराम करते करते
कांटोभरा रहगुज़र नहीं देखा
दफ़्तर दफ़्तर आना-जाना माथा थाम लेना
साया अखबारों में नाम हुआ करते थे
अन्दरूनी ताक़त
आपने कोशिश की
हरगिज़ नहीं बशर बेखुदी की रहगुज़र होता
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
मन नहीं भरता 🥰
माँ का आँचल
उसके आने के बाद बरस
आनेवाले हैं बहोत
किसीके काम आएंगे तुने बनाए मकां ये सदन
चराग़ फिर भी जला करते हैं
हौसला हो तो आसमान कम पड़ जाता है
रक़ीब ही आते रहे क़रीब हमारे
न हबीब का कोई पयाम है
बे-शक मरजा
आजादी गाथा लिख दे,- पहाड़ी हिन्दी शौर्य कविता
तू मिला हैं 🥹
शुक्रिया आपका 🥰🥰
तुमसे आगे कुछ नहीं
तुमसे आगे कुछ नहीं
दूसरों की जान बचाने के लिए 🥹🥀
याद आते हैं
कविता
कल दिन अच्छे भी आएंगे
लोग सच्चे भी आएंगे
मेरे दिल में पीर न होगी
उम्र-ए-तमाम शब-ए-तन्हाई है
आँखें दिखा रहा है
तुम हों 💖
हमको न हुआ नसीब साया-ए-सुकूने-क़ल्ब
तू दीवानी हैं 🥰🦋
रात आख़री हो
तक़दीर से 🦋🙌
दम निकला हैं 🥀🥹
पता ही नहीं चला कब आगया बुढापा जवानी से
ख़ुश रहना बेहद आसान और सरल है
हमारे बग़ैर भी आबाद थी दुनिया
भरोसा करने की आदत नहीं छूटी
अगर हम मुस्कुराएंगे तो
मुस्कुराना औरभी ज्यादा मुश्क़िल है
मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है
उठा रखा आसमान है
तुझे पहचानू मैं 🥹
आस्मां का सातवां मीज़ान हिन्दी
सूरज भी उफ़क पर उतर आता है
जीतीहुई बाजी कोभी हमें हार जाना आ गया
लानत है औलाद की आलमगीरी में
राह पे आस टिकने दे
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
आंखों में बड़े - बड़े सपने रखते हैं
उड़ने की हिम्मत चाहिए
मीर सा नहीं काबिले-बिल-क़स्द ओ कामिल हुआ
चिंतन मनन वांछित से आधा हुआ है
राधा काँधा
पिआ जिन ए भइआ
इश्क़ हमारा 😇✌️
कोशिश की आस काम आती है
बचपन अक़्सर याद आता है
बचपन अक़्सर बहुत याद आता है
कविता
खाली हाथों ही आना पड़ता है
शामोसहर गरीब के घर आम होती है
आईने को ज़रूरत नहीहै आईना साबित करने की
गृह आभारी रहेगा तेरा
औक़ात होना ज़रूरी है
अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر
ठोकरें खाता है उतनी ही ज्यादा अक्ल आती है
नया रिश्वतखोर आएगा
रखे ऊंची आवाज़
मुझको मुझमें रहने ही नहीं दिया आख़िरी तक
किसी और दरगाह पर जा कर करें दुआ
अपने आपसे भी रहता है नाराज़ आदमी
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
अपना हमदर्द समझते हैं
आज में गुज़रा हुआ कल ढूंढते हो
आदमी आवारा और मक्कार
साथ उसके शराफ़त रहे
गांव आजभी है दिल में मेरे बसा हुआ
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
तुरबत में आराम फर्माना अच्छा
बच्चा बातें सारी आज समझता है
दर्दे-दिल ने बड़ा आघात भी सहा है
भरा मन हल्का हल्का
फोन पर बात होगई मान लियाकि मुलाक़ात होगई
सुनने वाले को सब्र- ओ- क़रार आ जाए
गुस्से में इन्सान
लाजवाब लगता हूं 🔥🔥
अब जी चाहता हैं मेरा 🤐🤐
सुकूनदायक ज़हन नहीं बनाते
धनत्रयोदशी का मिले वरदान बुलन्द हो नाम आपका
उनकी हैं मुंतज़िर कबसे हमारी आंखें
मुहब्बत के चराग़ जलाते चलें! @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ"बशर"
घर आंगन के हर इक कोने कोने महका दिए
आशिक़ी अक़्ल के बोझतले दम तोड़ जाती है
आते हैं कैसे जाते है कैसे चांद सूरज और दिन-रात
पहचान अपनी बनानी पड़ती है
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
मज़हब ही में मज़हब हो गया है
उजाला हो भी नहीं सकता दीपक में अगर आग नहीं
डूबेंगे सभी साहिल पर आकर
आबो-हवा हमने दुनिया-भर की देखी
हमेशा शिकायतों के समाधान ढूंढते रहें
हमारे लिए दुआ मांगने वाले ही हमारे क़ातिल निकले
आ गया मौसम बहार का
पहले किसी ज़माने में इन्सान था
आपके नाप के नहीं रहे हैं
हम इंसान भी न हुए वो खुदा हो गए
उससे न जा सकाहै आजतलक कहीं कोई बचकर
खुश रहोगे तो दुश्वारियां मिट जाएंगी
कोई किसीका आसक्त नहीं होता
दौराने-हिज्रे-ए-यार की बेपनाह याद आती है
मु'आफी मांगने में मत शरमाओ
भीड़ में खोने की बजाय अकेले चलने का हुनर रखो
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
मायूसियां उदासियां छाई इस क़दर नहीं होती
आपके अलावा आपके साथ कोई नहीं
मै भी किसीको याद आना चाहता हूँ
किसीको याद आना चाहता हूँ
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
आईना सदा हक़ीक़त अयाँ करता है
अपना ही तमाशा फिर क्यूँ बनाएं हम
अपना ही तमाशा क्यूँ बनाएं हम
दुनिया सारी हमारी आनी-जानी लगती है
मुफ़लिस की सल्तनत में धनदौलत आसपास नहीं आती
सिर्फ़ दुआएं काम आएँगी
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
दुआ की बरसात की
दाख़िल घर में ठंडक लेकर दिसम्बर हुआ
ठंडा हरेक मंज़र हुआ
किरायेदार उस के मकान में है
आईने के समने सबको खुदका दीदार होगा
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
हमारी उनसे वस्लो-मुलाक़ात ही दवा है
हमें इंतज़ार है इकत्तीस दिसम्बर आने की
बेहतर मुस्तक़बिल केलिए
कल था न आज है 'बशर' ये ज़माना आपका
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
वो ना आने पर अड़ी हैं
झूठ के पांव नहीं होते मग़र चलता खूब है
तन को निखारने से क्या होगा
मु'आफ़ी मांग लेना ही तहज़ीब की निशानी नहीं होती
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
ज़िम्मेदार है आदमी खुद अपने हाल का
वाना निकल पड़ा आगके दरिया की जानिब
ख़ामुशी मेरी उड़ाकर रखदेगी नींद तुम्हारी रातों में
जनवरी आएगी तो माहे दिसम्बर जाएगा
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
जानेवाले साल तुझे विदाई का पयाम आख़री
क्या उम्मत का हाल बदल गया
मुझे प्यार आता है तो बेशुमार आता है
जिंदगीसे भागकर आगे निकलने की न होड़कर
बूंद में समन्दर
हम लौटकर नहीं आएंगे
जिंदगी तुझसे क्या गिला करें
मुसाफ़िरत का वलवला
आया बसंत
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
आसान नहीं दिलों का खेल यारों
बच्चे आजकल कब किसीको सजदा करते है
प्यार आया हैं 💓
खुद को हया आती है
तेरी सोच तिरे ख़्याल बेलिबास बे-हिजाब आए
किन्नर – एक अनकहा सच
आपकी हयात को आपसे मुहब्बत हो जाएगी
हयात मौका देती हैकि आप खुदको नया जन्म दे पायें
अपना हो के न हो पल आने वाला
बादल कभी टिकसका है आस्मानों में
अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर
आदमी इन्सान हो जाए
पाने की खुशी ना कुछ खोने की ही फिकर
कहानी
आसान शिकार
कातिल
रचयिता का धर्म
"माँ का आँचल"
बरसात की लास्ट लोकल (भाग - 2)
बरसात की लास्ट लोकल (अंतिम भाग)
कहानी
दिल की बात शब्दो के साथ #बारिश वाला प्यार
"बातों के परिन्दे"
कन्या पूजन( छटा और आखिरी भाग)
यह आजकल की छोरियां
यह आजकल की छोरियां (दूसरा और आखिरी भाग)
दोहरे मापदंड
खलिश
ऊँट कंकड़ के नीचे
गोल गप्पे
गृहस्थ आश्रम (लघुकथा)
आमदनी का जरिया
मन की शान्ति
डर
आपके बाद
शीर्षक- बरसात की एक रात
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
स्वयंसिद्धा
विजय तिलक
धोखा
आनंदना
नमन वीर जवानों को
आत्मसम्मान
यशोदा माँ
आसमाँ
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
अलविदा
अभागे की परिभाषा
सागर जैसी आंखों वाली
मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम
आज का दौर
आखिर क्यूँ ? कब तक ?
आपसी तालमेल
"एक अधूरा सफ़र"
आरोही
आत्मग्लानि
आबोहवा
चाय के बहाने
आशंका
एक आख़िरी फ़ोन कॉल
जीत
आओ अपने गौरवशाली इतिहास को जाने
मेरी भुलक्कड़
फ़ेहरिस्त
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
वक़्त
आशंका
खुला आसमान
आत्मसम्मान
शेरनी
मेरी प्यारी दीदी
सुख
टोटका
आशय
और सूरज निकल आया
मेरी कहानी
बन्दिनी
आई लव यू
यशोदा माँ
और सूरज निकल आया
रोटी और चंद सिक्के
सपनों की दीवार
उजाला
प्रेम की इति
कटी पतंग
मेरा पिया घर आया
गरीबी और ठंड
लाँग कोट
किलकारी
संकल्प
हरे हरे नोट
वह वृक्ष
थप्पड़
अबे ये तो अंधा है
बसंती सपने
अहम सबूत
अहम सबूत
हमारी साइकिल
महल
इस घर में मां की ममता बसी है...
चूक
मन के भाव
संकल्प
एहसासों की तस्वीर
ड्राइवर
सुन्दर सपना
नृत्यांगना
स्क्रीनशॉट
समर्पण
आखिरी मुलाक़ात
ब्यूटी विथ ब्रेन
कर्ण का दर्द
काजल
काजल
काजल
प्रेम-पत्र
आउट ऑफ स्टॉक
माई की कत्थई साड़ी
वह खत....!!
लौटते कदम
कम्बल
पिता की सीख
भूली बिसरी यादें
सही या ग़लत
आ घर लौट चलें...
अनाथ
सोने में सुहागा
बूढ़ा आत्मसम्मान
अंत या आरंभ
परछाईं
मुझमें संस्कार है पर आप मैं नहीं???
स्वयंसिद्धा
नकारा
नकारा
लोकडाउन के वीर भाग -1
लोकडाउन के वीर भाग -2
मौत दिखाती आँखें
विम्मो बूआ
ऐसा कौन आ रहा है
आख़िर क्यूँ, कब तक
आस्था श्रम में 💐💐
आगे की राह 💐💐
कल्हरे आलू
कच्चे रास्ते (भाग ४) साप्ताहिक धारावाहिक
"आशा की किरण"
"आधा मुनाफा"
दुआ
धूप के आर-पार
संक्रमण
मुकाबला 💐💐
खफा आदमी
" बादलों से घिरा आसमान "
स्मिता आंटी 💐💐
" प्रेस वार्ता "
"खोया हुआ आदमी "
" आशा की किरण "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ७) साप्ताहिक धारावाहिक
चिट्ठी आई है
" महज बता रही हूँ "💐💐
" संध्या का उजाला " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १०) साप्ताहिक धारावाहिक
नयी जिन्दगी
कच्चे रास्ते (भाग ११ ) साप्ताहिक धारावाहिक
"मैं गलत तो नहीं "💐💐
" नाऊ वी आर फ्रेंड " 💐💐
Beti Huyi Hai
Bholi
Jamindoz
आज़ादी
नन्हे कदम
"सिरीज़ , 'नन्हीं मिनी 'की हसीन दुनिया 💐💐
नाटक की आखरी कड़ी
आजादी अम्मा
" आंटी जी " 💐💐
कल आज व कल
डर के आगे जीत है
दुआओं की दवाई
आ अब लौट चले
"आ अब लौट चलें " 💐💐
छुआ छूत
छुआ छूत भाग _2
भाग 3 छुआ छूत
"डबल इनकम " 🍁🍁
" आस्था " 🍁🍁
डर आजादी का
गुरु जी आशीर्वाद बनाये रखना
आप भी याद रखना
“पंजाब से आये हैं..”
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
असफलता से सफलता की ओर
लेख
हौसला हो यदि बुलंद तो मुश्किल नहीं करेगी तंग
काषुरुष...
ह्यूमन सायकोलोजी
#ममता
राम नाम जीवन आधारा
टूटती आस
पहला सुख आलसी काया
आलेख
दुनिया का आखिरी इंसान
काश से आस तक
झूठ बोले, कौआ काटे ?
एक पाती माँ के नाम
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ-मीडिया
आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
एकांत
संस्मरण,,, भूलने की आदत
" चाय भी क्या चीज़ है "
आ अब लौट चलें
बस्तर के आदिवासी खेल
मैं आसमानी चदरिया
मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं
यात्रा वृतांत माउंट आबू
आगरा
आयुर्वेद की ओर दुनिया के बढ़ते कदम
हमारे तीन अचूक अस्त्र -आस, प्रयास और विश्वास
पहली आज़ाद सरकार
सारंडा के आदिवासी
"हुनर की अहमियत आज भी"
आखिर आप कर सकते हैं तो हम क्यों नही।
आज की जरूरत महात्मा गांधी
आज़ाद भारत में एक राजा की फर्जी मुठभेड़
हैं शिकायतें बहुत..
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
आस्था कि प्रतीक हमारी नदियां
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
भूली बिसरी यादें
मेरा दसवीं का परीक्षाफल
आपका मंथन , मेरा सृजन
सकारात्मकता की नमी
पहला सुख आलसी काया
मैं आसमानी चदरिया
आइए, मन के सूरज को जगाएं।
विवाह कहीं आह ना बन जाए
धरती का आवरण है पर्यावरण
धरती का आवरण
" बैलगाड़ी की यात्रा"
बचपन की मधुर स्मृतियाँ
मैं तो नहीं कर पाऊँगी
सहमा हुआ इतिहास
Wo Chaar Log
आदर्श गुरु मेरी नज़र में
शिक्षक बच्चों के भविष्य के लिए अपना आज और कल कुर्बान करते हैं
क़दर
आज से आप मेरी माँ हैं.
फूटपाथ
बेटी एक पंछी
20 मई आज का इतिहास
तरीक़े आपने ख़ुद ढूँढने हैं …..
आचार्य रामानंदाचार्य जी
आत्महत्या - एक बहुत बड़ी समस्या
ईमानदारी से सिर्फ़ १०० के आगे तीन जीरो ही लगा पाया .
परीक्षाओं की तैयारी
आशा की किरण के रूप में, प्रकाश की किरण
फिल्म “आर्टिकल (अनुच्छेद)-370” समीक्षा
बैक्टीरिया को मेथेन पसंद है
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