कवितानज़्मअतुकांत कवितालयबद्ध कवितागजलदोहाचौपाईगीत
आंसू का क़तरा
मैं वो आंसू का क़तरा हूँ
तेरी आँखों से उतरा हूँ
ढलक कर तेरे गालों से
ज़मीं पे गिर के बिखरा हूँ
मैं वो आंसू का क़तरा हूँ
ना अब सपना है कोई
ना अब अपना है कोई
ना अब बस्ती है मेरी
ना अब हस्ती है मेरी
तेरी यादों के दर्पण में
मैं वो ग़म हूँ जो निखरा हूँ
मैं वो आंसू का क़तरा हूँ
मैं वो बादल का टुकड़ा हूँ
कहीं भी जो न बरसा हूँ
तेरा होके भी जो हरदम
तेरा होने को तरसा हूँ
मैं बनके टीस एक ग़म की
तेरे सीने में उभरा हूँ
मैं वो आंसू का क़तरा हूँ
हर तरफ ग़म ही ग़म है
खुश्क लब आँख नम है
फ़िज़ा भी भीगी भीगी है
तेरी यादों का मौसम है
मैं बनके दर्द का मंज़र
ज़र्रे-ज़र्रे में बिखरा हूँ
मैं वो आंसू का क़तरा हूँ
By Miraaj
From my Book "Khali Khali Sa Jahan"