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आँसू - शशि कांत श्रीवास्तव श्रीवास्तव (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

आँसू

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  • 2 Min Read

*आँसू*
********
ये झील सी नीली आँखें
बोझिल सी...,
सूनापन लिए,
थकी हुई सी थी,
जो..,
डूबी हुई थी
यादों के भवंर में गहरे तक,
अचानक,
एक टीस -सी उभरी अंतस से
और ,
छलक पड़ी बूंद आँसू बनकर
इन झील सी नीली आँखों से ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
07-12-2020 - 23:25hr.

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