कहानीसंस्मरण
पानी का डर
मेरे बचपन का पर्याप्त समय ग्रहनगर हरदोई में संयुक्त परिवार में व्यतीत हुआ. बाबा दादी, चाचा चाची उनका परिवार आदि सभी रहते थे. बड़ा सा घर है. उसमें दो कुंए भी थे, एक घर के अन्दर जिसमें हैन्डपंप लगा था. साथ ही स्नानघर भी था. बाहर वाला कुंआ सिंचाई के, तथा हमारे गांव से आने वालों, और अन्य आगन्तुकों के काम आता था.
अन्दर कुंऐ के पास कुछ अन्धेरा सा रहता था. हम लोग हैन्डपंप से बाल्टियां भर के, बाथरूम में अक्सर इकट्ठे नहाते थे.नल भी थे लेकिन कुंए का पानी अच्छा लगता था.
मुझे पता नहीं क्यों, पानी से डर सा लगता था. रात में कुएं के पास जाना अवायड करता था, या किसी भाई बहन के साथ जाता था.
हालांकि कानपुर में सबके साथ गंगा जी में नहाता था,पर आंख बहुत कम समय के लिए बंद करता था.डुबकी भी कम लगाता था. डर, आयु बढ़ने के साथ, धीरे-धीरे कुछ कम तो हुआ पर पूरी तरह से गया नहीं.
बाद में बैंक में आने के बाद, एल टी सी पर एक दोस्त के साथ बम्बई और गोवा जाने का कार्यक्रम बना. तब दोनों का विवाह नहीं हुआ था. बम्बई में तो दिन में सबके साथ समुद्र से डर कम लगता था. रात में गेट वे आफ इंडिया के पास भी बहुत सी पब्लिक भी रहती थी और लाइट्स भी, तो कुछ अभ्यस्त हो गया था. डर कुछ कम लगने लगा, समुद्र, जीवन में, पहली बार देखा था..!
गोवा में लिए सोचा कि ट्रेन से जाएंगे,समुद्र अवायड हो जाएगा. . ट्रेन से "वास्को " उतरे और वहां हम लोग एक होटल में ठहरे, साइटसीइंग के लिए एक मेटेडोर थी. दिन में तो बहुत सी जगहों पर गए.. शाम को वापसी पर, एक स्थान पर मान्डवी नदी पड़ी. वहां पर उसने मेटेडोर को एक बड़ी सी बोट (फेरी) पर चढ़ा दिया.यह मैंने सोचा भी नहीं था बहुत पहले की बात है. तब उतना एडवांसमेन्ट नहीं था.
लहरें थपेड़े मार रही थीं, मुझे डर भी महसूस हो रहा था. अभी सौभाग्य से पूरा अन्धेरा नहीं हुआ था.
दूसरे दिन हम लोग पन्जी और डोनापाला गए वहां शायद तीन साइड समुद्र है. दोपहर थी अतः ज्यादा महसूस नहीं हुआ.
काफी बाद में पत्नी और बेटे के साथ गोआ गया. बहुत परिवर्तन हो चुके थे. आधुनिक फेरी में लाइट्स, म्यूजिक, समुद्र में भी बहुत सी फेरी, अतः उतना असुरक्षित नहीं लगा, दूसरे यह लग रहा था कि पूरा परिवार साथ है.
इसके बाद' अन्डमान' जाना हुआ, वहां दूसरे आइलैंड्स, '' हैवलाक '' और ' रास' समुद्र से जाना हुआ. दिन का यमय था, परिवार भी साथ तो उतना महसूस नहीं हुआ. हालांकि सब तरफ समुद्र है. प्रयास किया कि कुछ भी न सोचूँ..!
एक बार रामेश्वरम जाना हुआ, लौटते समय समुद्र के बीच' पाम्बम ब्रिज' देखा. किन्तु दोपहर का समय था. अतः कुछ खास महसूस नहीं हुआ.
रात के समय अगाध जलराशि और कुछ अन्धेरे की कल्पना से अज्ञात सा डर अभी भी, महसूस होता है.
अंधेरे में जल से डर का जो सजीव चित्रण किया है आपने ,वो इस संस्मरण को रोचक बनाता है। पर कई बार ऐसा लगा कि इसमें और कासबट आ सकती थी चूँकि बार बार स्थान परिवर्तन किया गया है इस संस्मरण में। बाकी बचपन से अब तक की स्थिति का जो बखान किया है इसे एकदम अलग बनाता है। शायद बालमन में छिपा भय ही अब तक व्याप्त हो।। शुभकामनाएं
जी.. बहुत धन्यवाद 🙏
रचना बहुत अच्छी है पर इसे कहानी की जगह संस्मरण का नाम देना ज्यादा उचित रहेगा।
🙏🙏
जी रचना का भाव बहुत सुन्दर है।
जी. धन्यवाद
इसे संस्मरण कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा और भी खूबसूरती से लिखा जा सकता है। कहीं कहीं शब्द छूट गए हैं या मैच नही कर रहे। पढ़ते वक्त महसूस हो रहा था जैसे हम भी भ्रमण कर रहे हैं। संस्मरण रोचक लिखा है।।डर तो डर होता है जिस चीज से डर लगने लगे। शुभकामनाएं
जी. बहुत धन्यवाद 🙏
भ्रमण स्थलों का अच्छा वर्णन किया है।रोचकता बनाए रखी गईं है विवरण की शुरुआत से अंत तक। अंग्रेजी शब्दों का जहां-तहां प्रयोग खल जाता है। जगहों का नाम पढ़ते-पढ़ते मुझे जानी- पहचानी जगहों की स्मृति ताजा हो गई। यह संस्मरण की श्रेणी में अधिक उपयुक्त है ना की कहानी की श्रेणी में। भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं
आपका बहुत आभार 🙏
रचना बहुत ही खूबसूरत थी...लेकिन मुझे जहाँ तक लगता है इसको और भी खूबसूरत बनाया जा सकता था और बीच में जब बैंक वाली लाइन से एकदम से मोड़ के साथ बहुत ही कम शब्दों में ज्यादा कह देने वाली बात,इसमें थोड़ी सी मुझे कमी लगी क्योंकि कुछ पढ़ने वालों के लिए इतने कम शब्दों में कहानी समझ पाना संभव नहीं हो पाता...बाकी रचना बहुत ही खूबसूरत थी ...जिसे हर कोई खुद से जोड़ पायेगा। धन्यवाद
बहुत धन्यवाद 🙏
डर मानो तो डर है। वरना कुछ भी नही अच्छा लिखा है आपने।
बहुत धन्यवाद..!