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डर - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

डर

  • 442
  • 12 Min Read

पानी का   डर
मेरे बचपन का पर्याप्त समय ग्रहनगर हरदोई में संयुक्त परिवार में व्यतीत हुआ. बाबा दादी, चाचा चाची उनका परिवार आदि सभी रहते थे. बड़ा सा घर है. उसमें दो कुंए भी थे, एक घर के अन्दर जिसमें हैन्डपंप लगा था. साथ ही स्नानघर भी था. बाहर वाला कुंआ सिंचाई के, तथा हमारे गांव से आने वालों, और अन्य आगन्तुकों के काम आता था.
अन्दर कुंऐ के पास कुछ अन्धेरा सा रहता था. हम लोग हैन्डपंप से बाल्टियां भर के, बाथरूम में अक्सर इकट्ठे नहाते थे.नल भी थे लेकिन कुंए का पानी अच्छा लगता था.

मुझे पता नहीं क्यों,  पानी से  डर सा लगता था. रात में कुएं के पास जाना अवायड करता था, या किसी भाई बहन के साथ जाता था.
हालांकि कानपुर में सबके साथ गंगा जी में नहाता था,पर आंख बहुत कम समय के लिए बंद करता था.डुबकी भी कम लगाता था. डर, आयु बढ़ने के साथ, धीरे-धीरे कुछ कम तो हुआ पर पूरी तरह से गया नहीं.

बाद में बैंक में आने के बाद, एल टी सी पर एक दोस्त के साथ बम्बई और गोवा जाने का कार्यक्रम बना. तब दोनों का विवाह नहीं हुआ था. बम्बई में तो दिन में सबके साथ समुद्र से डर कम लगता था. रात में गेट वे आफ इंडिया के पास भी बहुत सी पब्लिक भी रहती थी और लाइट्स भी, तो कुछ अभ्यस्त हो गया था. डर कुछ कम लगने लगा, समुद्र, जीवन में, पहली बार देखा था..!

गोवा में लिए सोचा कि ट्रेन से जाएंगे,समुद्र अवायड हो जाएगा. . ट्रेन से  "वास्को " उतरे और वहां हम लोग एक होटल में ठहरे, साइटसीइंग के लिए एक मेटेडोर थी. दिन में तो बहुत सी जगहों पर गए.. शाम को वापसी पर, एक स्थान पर मान्डवी नदी पड़ी. वहां पर उसने मेटेडोर को एक बड़ी सी बोट (फेरी) पर चढ़ा दिया.यह मैंने सोचा भी नहीं था बहुत पहले की बात है. तब उतना एडवांसमेन्ट नहीं था.
लहरें थपेड़े मार रही थीं, मुझे डर भी महसूस हो रहा था. अभी सौभाग्य से पूरा अन्धेरा नहीं हुआ था.
दूसरे दिन हम लोग पन्जी और डोनापाला गए वहां शायद तीन साइड समुद्र है. दोपहर थी अतः ज्यादा महसूस नहीं हुआ.

काफी बाद में पत्नी और बेटे के साथ गोआ गया. बहुत परिवर्तन हो चुके थे. आधुनिक फेरी में लाइट्स, म्यूजिक, समुद्र में भी बहुत सी फेरी, अतः उतना असुरक्षित नहीं लगा, दूसरे यह लग रहा था कि पूरा परिवार साथ है.

इसके बाद' अन्डमान' जाना हुआ, वहां दूसरे आइलैंड्स, '' हैवलाक '' और ' रास' समुद्र से जाना हुआ. दिन का यमय था, परिवार भी साथ तो उतना महसूस नहीं हुआ. हालांकि सब तरफ समुद्र है. प्रयास किया कि कुछ भी न सोचूँ..!









एक बार रामेश्वरम जाना हुआ, लौटते समय समुद्र के बीच' पाम्बम ब्रिज' देखा. किन्तु दोपहर का समय था. अतः कुछ खास महसूस नहीं हुआ.

रात के समय अगाध जलराशि और कुछ अन्धेरे की कल्पना से अज्ञात सा डर अभी भी, महसूस होता है.

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सीमा वर्मा

सीमा वर्मा 2 years ago

सुंदर लेखन

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत धन्यवाद..!

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

Pratik Prabhakar

Pratik Prabhakar 3 years ago

अंधेरे में जल से डर का जो सजीव चित्रण किया है आपने ,वो इस संस्मरण को रोचक बनाता है। पर कई बार ऐसा लगा कि इसमें और कासबट आ सकती थी चूँकि बार बार स्थान परिवर्तन किया गया है इस संस्मरण में। बाकी बचपन से अब तक की स्थिति का जो बखान किया है इसे एकदम अलग बनाता है। शायद बालमन में छिपा भय ही अब तक व्याप्त हो।। शुभकामनाएं

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जी.. बहुत धन्यवाद 🙏

Anupma Anu

Anupma Anu 3 years ago

रचना बहुत अच्छी है पर इसे कहानी की जगह संस्मरण का नाम देना ज्यादा उचित रहेगा।

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

🙏🙏

Dr. Rajendra Singh Rahi

Dr. Rajendra Singh Rahi 3 years ago

जी रचना का भाव बहुत सुन्दर है।

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

जी. धन्यवाद

Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 3 years ago

इसे संस्मरण कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा और भी खूबसूरती से लिखा जा सकता है। कहीं कहीं शब्द छूट गए हैं या मैच नही कर रहे। पढ़ते वक्त महसूस हो रहा था जैसे हम भी भ्रमण कर रहे हैं। संस्मरण रोचक लिखा है।।डर तो डर होता है जिस चीज से डर लगने लगे। शुभकामनाएं

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जी. बहुत धन्यवाद 🙏

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

भ्रमण स्थलों का अच्छा वर्णन किया है।रोचकता बनाए रखी गईं है विवरण की शुरुआत से अंत तक। अंग्रेजी शब्दों का जहां-तहां प्रयोग खल जाता है। जगहों का नाम पढ़ते-पढ़ते मुझे जानी- पहचानी जगहों की स्मृति ताजा हो गई। यह संस्मरण की श्रेणी में अधिक उपयुक्त है ना की कहानी की श्रेणी में। भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

आपका बहुत आभार 🙏

Gaurav Shukla

Gaurav Shukla 3 years ago

रचना बहुत ही खूबसूरत थी...लेकिन मुझे जहाँ तक लगता है इसको और भी खूबसूरत बनाया जा सकता था और बीच में जब बैंक वाली लाइन से एकदम से मोड़ के साथ बहुत ही कम शब्दों में ज्यादा कह देने वाली बात,इसमें थोड़ी सी मुझे कमी लगी क्योंकि कुछ पढ़ने वालों के लिए इतने कम शब्दों में कहानी समझ पाना संभव नहीं हो पाता...बाकी रचना बहुत ही खूबसूरत थी ...जिसे हर कोई खुद से जोड़ पायेगा। धन्यवाद

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत धन्यवाद 🙏

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

डर मानो तो डर है। वरना कुछ भी नही अच्छा लिखा है आपने।

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत धन्यवाद..!

दादी की परी
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