नहीं कहता मैं व्यक्ति विशेष हूँ,
बस गौरव के नाम में अभी शेष हूँ...
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मन के भाव चित्राक्षरी आयोजन 2021 | Certificate | |
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London is the capital city of England.
लेखसमीक्षा
रामधारी सिंह दिनकर जी की रचना में सर्वश्रेष्ठ रचना कोई है तो वह है #रश्मिरथी, दरअसल यह काव्य नहीं महाकाव्य है।
रश्मिरथी में आपको कुल 7 सर्ग मिलेंगे जिसमें प्रथम से लेकर सप्तम तक का समय आपको कहीं
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कवितालयबद्ध कविता
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा…
कैसे इ जाने कब होइ गवा,
ऊ आयी,
हमरा नजर खोई गवा,
दिल से ससुरा गज़ब होइ गवा,
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा-२
राते सपने में उहि होइके आवै,
भोरे-भोरे ऊ हमका जगावै,
घरवा में कह
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लेखअन्य
ज़िन्दगी एक रंगमंच है जहाँ हर कोई अपने किरदार की अदाकारी से तालियों की गड़गड़ाहट को कमाना चाह रहा है, और इस रंगमंच में रंग का उतना ही महत्व ही जितना कि एक विवाहित स्त्री के माथे पर सिंदूर.....अगर ये रंग
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बिल्कुल बेहतरीन तरीके से समझाया है आपने आपका यह लेख गौरतलब है और आज के समय में सभी को पढना चाहिये।
शुक्रिया मैंम आपका
सही कहा आपने ज़िन्दगी एक रंगमंच ही तो है।जितनी ज्यादा तालियां आपकी उतना आपका पक्ष मजबूत
आभार🙏
कवितालयबद्ध कविता
मैं कविता,
हर किसी के जज़्बात को समेटें सरिता सी बहती रहती हूँ,
किसी के अनगिनत किस्से को लिए रहती हूँ....
एक लफ़्ज़ से न जाने कितने कानों में हौले से आवाज़ दे जाती हूँ,
कभी मोहब्बत के अल्फाज़ में इतराती हूँ,
तो
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कवितालयबद्ध कविता
मैं कहीं खो रहा था उसकी यादों तले,
फिर कहीं आवाज़ मुझे यारों ने दी,
मैं डूब चुका इश्क़ के अश्क़ में,
हौले से आवाज बयारों ने दी,
मैं सुनाने लगा किस्सा प्यार का,
यारों की यारी,
और इज़हार का,
नहीं पता कब ख़्वाब
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कवितालयबद्ध कविता
माँ - मेरी ख्वाहिशें पूरा करती है,
सुबह वो बोझ लिए सबसे पहले उठती है....
बिना किसी शिकायत के काम वो हफ़्ते-महीने करती है..
सुकून में भी वो सबके बारे में सोचती है...
माँ ....मां की एक अलग दुनिया हुआ करती है...
जहाँ
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कवितागीत
गुनगुनाती है तेरी आवाज प्रियवर हो,
चहचहाती है तेरी आवाज़ प्रियवर हो,
कुछ तुम कहो,
कुछ हम कहें,
हमराज प्रियवर हो,
दिल की बात हो नईया पार,
जज़्बात खास प्रियवर हो,
धड़क उठे,
कभी फड़क उठे,
जब बजे दिल के तार प्रियवर
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सुविचारप्रेरक विचार
आशाएँ मरती नहीं जिंदा रहती हैं,
बूढ़े दादा-दादी को उनके नाती पोते में नज़र आता है उनका ख़ुद का बचपन,
बुढ़ापा क़मर तोड़ देती है
किंतु हौंसला नहीं,
जुबान लड़खड़ाने लगती है
किंतु सोच नहीं,
हिम्मत भले ही आख़िरी
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कवितालयबद्ध कविता
डायरी के पन्नों में सिमट न सका मेरा प्यार,
अनकहे किस्से का अंत नहीं होना था...
सोचते
सोचते जब गिरा तुम्हारी यादों के छाँव में,
तो मुझे ऐसे ही ख़ामोखा नहीं सोना था...
मुझे करना था सफ़र उस हमसफ़र के यादों
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कवितालयबद्ध कविता
बैठ कर सब कुछ देख रहा हूँ मैं,
उभरते भारत की राजनीति से ख़ुद को समेट रहा हूँ मैं,
धर्मनिरपेक्षता,
लोकतांत्रिका का समर्थन लेखा हूँ मैं,
हाँ,
एक सितारे की तरह भविष्य के चाँद का चहेता हूँ मैं,
फिर,
क्यों
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कवितालयबद्ध कविता
(राष्ट्रीय बालिका दिवस)
गर मैं गर्भ में न मारी जाती...!
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आज मैं भी तुम्हारी तरह इतराती ,
श्रृंगार और जोड़े को सजाती ,
शायद बहुत सारा नाम कमाती,
गर मैं गर्भ में ही न मारी जाती।
आज पापा की परी,
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कहानीसामाजिक
चारपाई पर लेटे हुए दादा जी ने आज फिर से एक दफ़ा अपने बेटे को आवाज़ लगाते हुए चिल्लाने लगे।
रोज कि तरह आज भी संजीव दादा जी कि आवाज़ को नजरअंदाज कर,ऑफिस के लिए निकल गया।
ऐसा नहीं था कि संजीव को दादा जी की
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कहानीप्रेरणादायक
गाँव माखनपुर...!
किसी भी फ़सल का नाम लीजिए!
पैदावार में सबसे ऊपर माखनपुर का नाम ही आएगा...!
अरे !
अरे !
ये मैं नहीं कह रहा....ये ख़बर तो आज के अख़बार में लिखी हुई थी...!
मैं तो बस दादा जी को पढ़ का बता रहा था।
मूंछों
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तभी कहते हैं, सब्र करना चाहिए,"धीरे- धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय"
सही कहा मैंम आपने लेकिन समझते कहाँ है?
कविताअन्य
किसान दुर्दशा
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"सूखी मिट्टी,
बंजर खेती,
होंठ हमारे सूखे हैं,
पानी को तरसे,
न मेघा बरसे,
नयन हमारे रोते हैं,
तपती धूपें ,
जलती धरती,
इरादे हमारे ऊँचे हैं,
जब भी मौसम दस्तक देता,
सपने हम अपने
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कविताअन्य
मन के अंदर उठे बवंडर को,
इन शब्दों ने ख़ुद में कैद कर लिया,
हम बोले तो बत्तमीज,
न बोले तो गुस्सा,
हम रोये तो कमज़ोर,
न रोये तो सख़्त,
हम उदास नहीं हो सकते,
हमें दूसरों के लिए कंधा बनना है,
हम सुकूँ को कमा कर
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लेखअन्य
इतने साल गुजर गए
हो सकता है तुम्हें याद हो भी ....या न हो
लेकिन मुझे बख़ूबी याद है...जब हम मिले थे ....पहली दफ़ा.... जब मुझे ख़ुद पर ये विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे हाँथ में वो तुम्हारा ही हाँथ था ...जैसे कैद कर
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अच्छी है मगर कुछ अधूरी सी लगी
जैसे ज़िन्दगी साल दर साल बढ़ती जाती है,ठीक वैसे ही डायरी में छिपे हर एक पन्नें की अपनी ही एक कहानी है,शायद इसीलिए अधूरी लगी...शुक्रिया आपका मैंम❣️
Very nice sir 👌👌 aapne kamal ka likha hein heart touching lines
शुक्रिया आपका 🌺
वाहहहहह आपकी कविता दिल को छू गई सर। बधाई हो
शुक्रिया सर❣️
कहानीअन्य
ये कहानी है एक लड़के की जो जॉब कर रहा है उसके पूरे एक साल बाद आज यानि की 24 जनवरी को छुट्टी मिली।
आइए मिलवाते हैं इस कहानी के पात्रों से,
लखनऊ के अनुज जो इस कहानी के हीरो हैं...और इलाहाबाद शहर कि रश्मि
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कविताअन्य
🔷
चूल्हे की आँच से तपते चिमटे कि गरमाहट कभी अपने हाँथों से महसूस करना,
कभी चौखट,घर कि दीवारों से की गई बग़ावत के इतिहास को पढ़ना,
और
बिस्तर के सिलवटों से समेट लेना एक स्त्री की आबरू को,
और पढ़ लेना ,
उसके
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लेखअन्य
समाज : "सुनों !मुझे कैंसर हो गया है !"
लोग : "लेकिन कैसे ? सब तो ठीक है ! "
समाज : " ये पुरुषवादिता और ये स्त्रीवादिता...!!!! ये...मेरे लिए कैंसर ही हैं,जो मुझे अंदर से खोखला कर रहीं है।"
लोग : " लेकिन अगर ऐसा नहीं करेंगे
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कहानीसंस्मरण
उम्र!!!
बहुत कुछ याद दिला देती है।यक़ीन न हो तो कोई नंबर लीजिए और उम्र आपको याद दिलाएगा उस नंबर की उम्र के अनगिनत किस्से..
और हर याद के साथ कभी चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है तो कभी ख़ुद पर अफ़सोस,कभी मन
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बचपन की मासूमियत भरी यादें संजोकर प्रस्तुत रचना रोचक है।
???
शुक्रिया मैम??
गौरव यह कहानी है संस्मरण नही है। संस्मरण खुद को इसके अंदर महसूस और कहानी में उतरते हुए लिखा जाता है। जहाँ ऋषभ है। वहां मैं शब्द होता तब यह संस्मरण कहलाता।
शुक्रिया मैम,आगे से ख्याल रखूँगा?
थी ये संस्मरण ही ,लेकिन मैंने ही इसे कहानी के रूप में ढाल दिया❣️
कहानीप्रेम कहानियाँ, सस्पेंस और थ्रिलर
एक सिसकियों से भरी आवाज़ ने राहुल के कानों में दस्तक दी!
राहुल ने अपनी डायरी को अपनी एक अलग दुनिया ही बना ली थी।वही राहुल, जो बचपन से ही अपनी आवाज़ को सुनने को तरस गया था,या यूँ कहूँ कि शायद उसकी आवाज़
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कविताअन्य
तुमने कहा स्कर्ट पहन लो,
तुम्हें मेरी बात अच्छी लगती है,
तुम मेरे पास बैठ कर सब दर्द समझते हो,
तुम्हें मेरी जात अच्छी लगती है,
तो बताओ,
ये आज़ादी देने का जो दिखावा करते हो,
क्या ये किसी की अमानत है,
वर्षों
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बहुत खूब गौरव शुक्ला। आज़ादी का मतलब इसी से लगा लिया जाता है आजकल की हमने ऐसे करने दिया।
हम उस जगह आ गए जहाँ हमनें आपसे जो छीन लिया है उसी को वापस करना ही आज़ादी समझतें हैं ।दुर्भाग्य है।