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Sahitya Arpan Competition - कविताओं की नगरी
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कविताओं की नगरी

Competition Stats

  • #Entries 17

  • #Likes 10

  • Start Date 17-Mar-21

  • End Date 25-Mar-21

  • Competition Winners

    Writer Rank Certificate
    Kumar Sandeep First Certificate
    Gaurav Shukla Second Certificate

    Competition Information/Details

    सभी साहित्यिक स्वजनों को सादर नमस्कार...! हमारी आज की प्रतियोगित कविताएं ही है। जिसके अंतर्गत आपको भेजनी है आपकी लिखी हुई कोई भी कविता। कोई विषय नही है कोई बंधन नही है। सिर्फ कविता लिखनी है और नीचे दिए गए थोड़े से नियम हैं। तो जल्दी से लिख भेजिये।

    लेखन से सम्बंधित महत्पूर्ण नियम :-
    1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
    2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
    3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
    4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में इवेंट का चुनाव करना न भूले।
    5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।

    आप सबकी रचनाओं का स्वागत एवं इन्तज़ार रहेगा...
    सार्थक लेखन हेतु अग्रिम शुभकामनाएं....

    धन्यवाद
    साहित्य अर्पण कार्यकारिणी।

    कविताछंद

    शब्दों की महिमा

    • Edited 3 years ago
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    विषय : शब्द
    विधा : सार ललित छंद
    ——————————————————————————————-
    ऐसे शब्द कहाँ से लाऊं, जो पीड़ा दर्शायें।
    इस पीड़ा के वशीभूत सब, नेह सुधा बरसायें।।

    शब्द शब्द में भाव छिपे हैं, इनसे मिले मिठाई।
    कुण्ठा,
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    कवितालयबद्ध कविता

    मैं कविता हूँ...!

    • Edited 3 years ago
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    मैं कविता,
    हर किसी के जज़्बात को समेटें सरिता सी बहती रहती हूँ,
    किसी के अनगिनत किस्से को लिए रहती हूँ....
    एक लफ़्ज़ से न जाने कितने कानों में हौले से आवाज़ दे जाती हूँ,
    कभी मोहब्बत के अल्फाज़ में इतराती हूँ,
    तो
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    कविताअतुकांत कविता

    गूढ़ रहस्य

    • Edited 3 years ago
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    तीव्र वेदना,
    मस्तिष्क में अंतर्द्वंद
    विवशता कैसी,
    संवेदनाओं पर प्रश्न
    गूढ़ रहस्य.....

    प्रेम भी क्या बंधन है,
    विचारों के दास हो तुम
    या फंसे हो किसी
    मृग-मरीचिका में
    गूढ़ रहस्य.....

    अस्वीकार कर आत्मा
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    कविताअतुकांत कविता

    कविता जन्म लेती है तब,जब

    • Edited 3 years ago
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    कविता
    जन्म लेती है तब, जब
    कोई निर्धन बालक शहर के जगमग पथ पर
    भूख से बिलखता है अत्यंत।।

    कविता
    जन्म लेती है तब, जब
    कवि करता है यह महसूस कि
    संवेदना न केवल सजीव प्राणियों में
    होती है, बल्कि निर्जीव प्राणियों
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    कविताअतुकांत कविता

    सफ़र यादों का ❤

    • Edited 3 years ago
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    सफ़र यादों का
    ❤❤❤❤❤❤
    एक सफ़र वो था,
    जिसमे जिन्दगी के खूबसूरत ख्वाब बुनते
    हमराही हम साथ थे !
    एक सफ़र आज है
    तुम्हारी यादें हमसफर हैं ••• सफ़र तो अब तक जारी है ,
    उन
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    कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता

    बन्द दरवाजे

    • Edited 3 years ago
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    अपने से न कभी बातें करते ,
    धूल को अपने मे समेटे रहते ।

    सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
    कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।

    तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
    चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।

    दीवारें ताकती
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    कवितालयबद्ध कविता, गीत

    जिंदगी मिली मुझे

    • Edited 3 years ago
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    जिंदगी मिली मुझे इक तेरे ही साथ से
    चलना यू ही साथ मेरे
    छोड़ न देना कही हाथों को हाथ से

    मेरे ख्वाबों का आशियाना तू हैं
    मेरे गीतों का सफर सुहाना भी तू  हैं
    साथ तेरा इतना क्यों भाए मुझे
    तेरे आगे अब
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    कविताअतुकांत कविता, लयबद्ध कविता

    "क्यो प्यासा रह जाता है"?

    • Edited 3 years ago
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    #क्यों_प्यासा_रह_जाता_है
    =================
    जल तट पर भी रहा पथिक ,
    क्यों वह प्यासा रह जाता है?

    क्यों न मिटती उसकी तृषा ,
    क्या मृदु जल अब खारा है?

    अनंत चाह की तिक्ष्ण प्यास में ,
    क्यों अपनो को भूल जाता है?

    नित्य को
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बहुत सुंदर

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बहुत खूब 👌🏻

    सोभित ठाकरे

    Rajesh Kr. verma Mridul3 years ago

    सादर आभार आदरणीया

    कविताअतुकांत कविता

    कविताएं और कविताएं

    • Edited 3 years ago
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    कविताएं और कविताएं
    अन्तरह्र्दय के अनगिनत भावों को समेटे हुए
    भाव जो सागर समान गहरे
    नदियों समान चंचल
    झरनों समान उत्साहित
    पर्वत समान कठोर
    फूलों समान कोमल
    चाँदनी समान शीतल
    धरती समान पवित्र
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    कविताअतुकांत कविता

    कविता का दरबार

    • Edited 3 years ago
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    यूं ही चलते चलते एक दिन
    पहुंचे हम कविता की नगरी
    सुंदर सा दरबार सजा था
    कवियों का अंबार लगा था,

    मन में भी जागा उत्साह
    रुकते रुकते कदमों से
    धीरे-धीरे आगे बढ़कर
    पहुंच गए हम भी सीमा द्वार,

    भिन्न भाव भंगिमा
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    कविताअन्य

    ✍️अनजान चेहरा सा हैं, मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,

    • Edited 3 years ago
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    ✍️अनजान चेहरा सा हैं,
    मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,
    आंखों का मुस्कुराना सीख रहा हैं।।

    अजीब सी कश्मकश निगाहें हैं,
    इन हसीन से निगाहों पर।।

    नजारे झुका कर यूं किसी को न देखना,
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    कवितालयबद्ध कविता

    "एक कविता"

    • Edited 3 years ago
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    कविताओं की नगरी है बेहद ही अद्भुत
    हर तरह की चाक चौबंद वायु बिल्कुल शुद्ध
    हर रंग के रंग में कविताओं का खिलना
    आपस में ना कोई बैर काटों से भी मिलना

    चांद जहां ठंडा भी है और गरम हो जाता
    बारिश की भीनी
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    कविताअन्य

    ​"अंतरात्मा की आवाज "

    • Edited 3 years ago
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    नमस्कार
    हर हर महादेव 🙏

    "अंतरात्मा की आवाज "

    ओह री सखी सुन मेरी बात
    सुन सुनले री सखी तू मेरी भी बात
    मैं हूँ तेरे अन्तर आत्मा की आवाज़
    अब तक मुझको अनसुना करती आई है तू

    जैसे सबके लिए वक्त है
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    कवितालयबद्ध कविता

    तेरे मेरे दरमियां

    • Edited 3 years ago
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    तेरे मेरे दरमियां
    *****************

    तेरे मेरे दरमियां न जाने कब एक रिश्ता बन गया..
    दोस्ती के सफर में न जाने कब हमसफ़र बन गया..

    पता नही कब औऱ कैसे गलतफहमियां बढ़ गई...
    छोटी-छोटी सी बातें क्यों राई का पहाड़ बन गईं..

    कुछ
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    कवितालयबद्ध कविता

    आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग

    • Edited 3 years ago
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    आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग...
    शायद गिरगिट को भी फेल कर रहे है लोग..

    बढ़ रहा है, दिन-ब-दिन लोगों का अभिमान।
    एक दूसरे का शौक से अपमान कर रहे है लोग..

    प्रेम शब्द के नाम पर, समर्पण का दिखावा कर..
    न जाने क्यों
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    कवितालयबद्ध कविता

    कचरे वाला बच्चा

    • Edited 3 years ago
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    *नमन मंच
    कचरे वाला बच्चा
    *********************
    हाथ में थैला लिए जब वह निकलता ,
    आंखों में सपने हजार लिए चलता
    डगर डगर गली गली वह घूमता ,
    कचरे वाला बच्चा कचरा बीनता ।

    ढूंढता है खाली बोतल, ढक्कन में सपने,
    नंगे पांव
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    कविताअतुकांत कविता

    साड़ी का पल्लू

    • Edited 3 years ago
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    *साड़ी का पल्लू*

    माँ पहनती थी सूती साड़ी
    उसे धोती कहा जाता था
    और माँ की साड़ी का वह प्यारा सा पल्लू
    उसकी पीठ व सर की शोभा बनता
    काँधे से उतर सामने ही
    लटका रहता हरदम
    मानो खूँटी पर लटका तौलिया ही हो
    आँखे
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