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Start Date 22-Feb-21
End Date 26-Feb-21
Writer | Rank | Certificate |
---|---|---|
Gaurav Shukla | Certificate | |
Himanshu Samar | Certificate | |
Madhu Andhiwal | Certificate |
Competition Information/Details
सभी साहित्यिक स्वजनों को सादर नमस्कार..!
हर चित्र हमारे मन मे छिपे भाव को दर्शाता है। चित्रआधारित प्रतियोगिता में आज का चित्र आपके किस मनोभाव को स्पष्ट कर रहा है कीजिये अपने शब्दों में व्यक्त। तो लिख भेजिये इस चित्र के भाव अपनी कलम से। लेखन सम्बंधित विस्तृत जानकारी इस प्रकार है..
दिनाँक - 22 फरवरी से 26 फरवरी 2021
विषय - चित्र-आधारित
विधा - मुक्त (किसी भी विधा मे)
लेखन से सम्बंधित महत्पूर्ण नियम :-
1. रचनाएं विषयानुसार ही लिखे.. धार्मिक राजनैतिक भावनाओं को आहत करने वाली रचना न हो।
2. यदि रचना लम्बी है तो आप उसे भाग में विभाजित कर डाल सकते है।
3. वेबसाइट पर पोस्ट करने के उपरांत अपनी रचना या उसका लिंक सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं।
4. रचना पोस्ट करने के लिए एडिटिंग ऑप्शन में इवेंट का चुनाव करना न भूले।
5. रचना के साथ चित्र कोई भी सलंग्न अवश्य करें।
आप सबकी रचनाओं का स्वागत एवं इन्तज़ार रहेगा...
सार्थक लेखन हेतु अग्रिम शुभकामनाएं....
धन्यवाद
साहित्य अर्पण कार्यकारिणी।
सुविचारप्रेरक विचार
आशाएँ मरती नहीं जिंदा रहती हैं,
बूढ़े दादा-दादी को उनके नाती पोते में नज़र आता है उनका ख़ुद का बचपन,
बुढ़ापा क़मर तोड़ देती है
किंतु हौंसला नहीं,
जुबान लड़खड़ाने लगती है
किंतु सोच नहीं,
हिम्मत भले ही आख़िरी
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कविताअन्य
ढलती उम्र भी नए स्वप्न सजाती है
जीवन की पथरीली राहों में
जीने का हुनर सिखाती है
लाख रूकावटे आये भले
मुस्कुराने की कला बताती है
ढलती उम्र भी रंगीन स्वप्न सजाती है।
बीते लम्हों को फिर से जीना चाहती
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कविताअतुकांत कविता
माना की जिंदगी में साधन का आभाव है,
मेरे अंदर फिर भी जिंदा रहने का चाव है।
माना की शायद कभी सिनड्रेला नहीं हो सकती,
तो क्या हुआ अपने मन की परी तो हूं हो सकती।
खुश रहने के लिए साधन नहीं जुनून चाहिए,
पैर
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कविताअतुकांत कविता
शीर्षक :-
"मुझे मेरा वो गाँव याद आता है"
बरगद की छाँव में
बैठ के बूट्टे खाना,
संग दोस्तों के वहाँ
घंटों भर बतियाना,
नहीं भुलाये भूलता
वो गुजरा जमाना ,
माँ के डर से छुपके जाना,ठंड में ठिठुरता वो
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कवितालयबद्ध कविता
जीने की ललक
जीने की ललक आज भी है मुझमें,
बचपन की वह सौगात आज भी है मुझ में,
कभी पायल कभी घुंघरू की आवाज ,
तबले की थाप की सरगम आज भी है मुझ में।
जीने की ललक आज भी है मुझ में।।
जवानी की वो यादें आज भी है मुझ
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कविताअन्य
दिल में मेरे आज भी वही उमंग है
बस उम्र का तकाज़ा है,जिसने लाचार किया है
मै एक अदाकारा थी, ता उम्र रहूंगी
भले ही समाज ने आज, बहिष्कार किया है
तो क्या हुआ जो नहीं चल पाती
आज अपने कदमों पर
मेरी बेसाखी
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कवितालयबद्ध कविता
खुद से रूबरू
जिंदगी का फूल बार बार नहीं खिलता
खोया हुआ वक़्त वापिस नहीं मिलता
सपने कब मरे हैं दिल कब बूढ़ा हुआ
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कविताहरियाणवी रागिनी, रायगानी, नज़्म, अतुकांत कविता, भजन, बाल कविता, लयबद्ध कविता, गजल, दोहा, छंद, सोरठा, चौपाई, घनाक्षरी, अन्य, हाइकु, बाल कविता, गीत
भ्रम का टूट जाना ही अच्छा था
तेरा मुझसे रूठ जाना ही अच्छा था।
काश ख़बर होती कि अंजाम यूँ होगा
तो दिल को कहीं और लगाते,
कम से कम यूँ सताए तो ना जाते !
यूँ रुलाए तो ना जाते !
बात बे बात तड़पाए तो ना जाते।
तेरी
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आपकी रचना में इतने सारे genre कैसे हो सकते हैं? कृपया genre का चुनाव सही से करें।
सुविचारप्रेरक विचार
"ज़िंदगी "
ऐसे ही जिंदादिली से जीवन जीना है मुझको
क्या हुआ जो अभी शरीर साथ नही दे रहा है मेरा
जब तक जिंदा हूं मैं की जब तक ये सांसे चल रही है मेरी
तब तक इस जिंदादिली को मैं मरने नही दूंगी मैं
की मरने
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कवितालयबद्ध कविता
आयोजन - मनोभाव चित्राक्षरी
22 फरवरी - 2021
काव्य - रचना
"अतीत की यादें"।
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अतीत की यादों को आज
अपनी तस्वीर में उतारी थी
ढूंढ रही थी उन लम्हों को
जो ख्वाबों को सजाई थी
स्मृतियों की उन लम्हों को
फिर
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कहानीप्रेरणादायक, लघुकथा
कमरे की पूरी दीवार पर मालती जी की पुरानी फोटो लगी थी। वो अपने समय की बहुत प्रसिद्ध नृत्यांगना रही हैं।एक दुर्घटना में अपनी टांगे गँवा बैठीं और फिर कभी चल ही ना पाईं। बिस्तर से वॉकर की दुनिया भी
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कहानीलघुकथा
सुन्दर सपना ---
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रमा व्हील चेयर पर बैठ कर अपनी बेटी सांची को निहार रही थी । सोच रही थी उन बीते दिनों को सब कुछ सही चल रहा था । रमा गांव में जन्मी पली बड़ी हुई पर बहुत होशियार थी । जब बड़ी हुई तो गांव
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कहानीप्रेम कहानियाँ, प्रेरणादायक
‘एक मिनट नानी, आप बताते-बताते ज़रा आगे चली गयी।’
‘अच्छा! हां शायद मैं मुलाकात तक चली गयी थी। वैसे मैं थी कहां?’
‘ परफॉर्मंस वाले दिन।’
‘ हाँ … कॉलेज का सेकंड ईयर। मेरी नृत्य कला के उन दिनों खूब चर्चे
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कविताअतुकांत कविता
पिछले दिनों की चिंता के बाद आज
बोझ जो सीने पर ही नहीं
मेरे मस्तिष्क की गहराई में भी समाया था
उतार कर फेंकते ही
गहन सुकून महसूस हुआ
दबाए रखा था जिसने मेरे व्यक्तित्व को
हो गई थी मेरी ही नजरों में
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कवितागीत
#दुष्कर_ही_श्रेयस्कर
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कठिन डगर या दुष्कर जीवन, तनिक नहीं घबराना रे|
साध लिया है उर को जिसने, उसका हुआ जमाना रे||
संघर्षों की बजे मुरलिया, गीत सफलता की गाये|
कर्म किए अति दुष्कर जिसने,
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बहुत सुंदर रचना... मेम नई की जगह नही कर लीजिए..!
जी
कवितागीत
दिए गए चित्र के आधार पर मेरे द्वारा रचित कविता,,,
शीर्षक-मन से बचपन
दीवारें थी ईंटों की पर
उनमें भी अपनापन देखा,
अपनी ही बूढ़ी छाया में
नया नवेला बचपन देखा।
ख़्वाबों नें पहचान सजाए
आँखों नें उन्वान
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